क्या है नियम 267 जो राज्यसभा में बना विपक्ष का ‘हथियार’, नोटिस मिले तो सभापति धनखड़ बिफर पड़े।
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राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का कहना है कि विपक्ष ने नियम 267 को हथियार की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. इस नियम के तहत, राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर चर्चा के लिए बाकी सारे काम रोक दिए जाते हैं.
संसद का शीतकालीन सत्र लगातार हंगामे की भेंट चढ़ रहा है. शुक्रवार को भी दोनों सदन नहीं चल पाए. राज्यसभा की कार्यवाही तो शुरू होते ही सोमवार तक के लिए स्थगित करनी पड़ी. सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि विपक्षी दल व्यवधान पैदा करने व सामान्य कामकाज बाधित करने के लिए नियम 267 को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. धनखड़ ने यह टिप्पणी विपक्षी सदस्यों की ओर से हर दिन नियम 267 के तहत नोटिस दिए जाने और पूर्व-निर्धारित एजेंडे को निलंबित कर उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर चर्चा की मांग किए जाने के मद्देनजर आई. नियम 267 राज्यसभा की कार्यवाही में बेहद अहम है. अगर इस नियम के तहत चर्चा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाए तो सदन के बाकी सारे काम रोक दिए जाते हैं.
नियम 267: आज भी मिले 17 नोटिस
सोमवार से शुरू हुए संसद सत्र में अभी तक कोई खास विधायी कामकाज नहीं हो सका है और पहला सप्ताह हंगामे की भेंट चढ़ गया. एक भी दिन न तो शून्यकाल हुआ और ना ही प्रश्नकाल चल सका. विपक्षी सदस्यों ने इस दौरान अदानी समूह के खिलाफ भ्रष्टाचार और मणिपुर तथा संभल में हिंसा सहित कुछ अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए नोटिस दिए और हर बार सभापति ने इन्हें खारिज कर दिया.
सभापति ने शुक्रवार को बताया कि उन्हें विभिन्न मुद्दों पर नियम 267 के तहत चर्चा के लिए कुल 17 नोटिस मिले हैं लेकिन वह इन्हें स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हैं. सभी नोटिस अस्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि सदस्य इन मुद्दों को सप्ताह के दौरान बार-बार उठाते रहे हैं और इस वजह से सदन के तीन कार्यदिवस बर्बाद हो गए.
धनखड़ ने कहा, ‘ये वे दिन थे जो हमें सार्वजनिक हित के लिए समर्पित करने चाहिए थे. हमारे द्वारा ली गई शपथ का पालन करते हुए हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए था. समय का नुकसान, अवसर का नुकसान, और विशेष रूप से प्रश्नकाल का न होना, लोगों के लिए बहुत बड़ा झटका है.’ उन्होंने सदस्यों से ‘गहन चिंतन’ का अनुरोध करते हुए कहा, ‘नियम 267 को व्यवधान और हमारे सामान्य कार्य से विचलन के एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. यहां बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं, और यह स्वीकार्य नहीं है.’
छलक उठा सभापति का दर्द
अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए धनखड़ ने कहा कि ऐसा करके एक बहुत ही ‘बुरा उदाहरण’ पेश किया जा रहा है और देश के लोगों का अपमान किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हम उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं. हमारे कार्य जन-केंद्रित नहीं हैं. वे जनता की पूरी तरह से नापसंदगी के पात्र हैं. हम अप्रासंगिक होते जा रहे हैं, लोग हमारी हंसी उड़ा रहे हैं. हम व्यावहारिक रूप से हंसी का पात्र बन गए हैं.’
क्या है नियम 267?
नियम 267 राज्यसभा सदस्य को सभापति की मंजूरी से सदन के पूर्व-निर्धारित एजेंडे को निलंबित करने की विशेष शक्ति देता है. नियम 267 के तहत कोई भी चर्चा संसद में इसलिए बहुत महत्व रखती है क्योंकि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर चर्चा के लिए अन्य सभी कामों को रोक दिया जाता है. अगर किसी मुद्दे को नियम 267 के तहत स्वीकार किया जाता है तो यह दर्शाता है कि यह आज का सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है.
राज्यसभा की नियम पुस्तिका में कहा गया है, ‘कोई भी सदस्य सभापति की सहमति से यह प्रस्ताव कर सकता है. वह प्रस्ताव ला सकता है कि उस दिन की परिषद के समक्ष सूचीबद्ध एजेंडे को निलंबित किया जाए. अगर प्रस्ताव पारित हो जाता है तो विचाराधीन नियम को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया जाता है.’
सभापति ने पिछले दिनों सदन में बताया था कि विगत 36 वर्षों में नियम 267 को केवल छह अवसरों पर ही अनुमति दी गई है और केवल असाधारण परिस्थितियों में ही इसकी अनुमति दी जा सकती है.
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