चुनाव कोई भी जीते शेयर बाजार में क्यों होती है उठापटक? आसान भाषा में समझिए.
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चुनाव का रिजल्ट शेयर बाजार को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. एग्जिट पोल के आंकड़े आने के बाद सोमवार को शेयर बाजार में तेजी देखी गई थी लेकिन मंगलवार को जब मतगणना का रुझान आया तो बाजार धराशायी हो गया.
1 जून की शाम को एग्जिट पोल के नतीजे आए तो सोमवार को शेयर बाजार हवा बन गया. सोमवार को कारोबारी सत्र के अंत में सेंसेक्स 2507 अंक और निफ्टी 733 अंक चढ़ गया. लेकिन अगले ही दिन चुनावी रुझान एग्जिट पोल से उलट आए तो शेयर बाजार में हड़कंप मच गया. सेंसेक्स ने 4390 और निफ्टी ने 1379 अंक का गोता लगाया. बाजार में आई आंधी से निवेशकों के 30 लाख करोड़ डूब गए. एग्जिट पोल के आंकड़ों में एनडीए के 350 सीटें जीतने का दावा किया जा रहा था. इस बार के चुनाव में एनडीए को 292 और इंडिया गठबंधन को 234 सीट मिली हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, चुनाव कोई भी जीते शेयर बाजार में उठा-पटक क्यों होती है? आइए जानते हैं कारण।
सरकार की नीतियों को लेकर अनिश्चितता
चुनाव के बाद जब भी कोई नई सरकार आती है तो निवेशक आने वाली सरकार और उसकी नीतियों को लेकर अनिश्चित होते हैं. निवेशक नई सरकार के आर्थिक रुझानों, उद्योगों को मिलने वाले समर्थन और संभावित कानूनी बदलावों को लेकर चिंतित रहते हैं. निवेशकों की इस चिंता के असर से शेयर बाजार में अस्थिरता आती है. इस बार के चुनावी परिणाम के आधार पर फिर से गठबंधन सरकार बनेगी. मजबूत सरकार से हमेशा शेयर बाजार को मजबूती मिलती है.
राजनीतिक विचारधारा
अलग-अलग राजनीतिक दलों की आर्थिक नीतियां और इंडस्ट्री के प्रति रुझान अलग-अलग होते हैं. यदि बाजार को लगता है कि चुनाव परिणाम उनके लिए अनुकूल नहीं हैं तो निवेशक कई बार घबरा जाते हैं और उनका फोकस बिकवाली पर रहता है. मंगलवार को शेयर बाजार में बिकवाल हावी रहने से पीएसयू और बैंकिंग शेयर की कीमत में गिरावट देखी गई.
आर्थिक नीतियां
चुनाव के बाद नई बनने वाली सरकार की आर्थिक नीतियां शेयर बाजार पर सीधा असर डालती हैं. यदि सरकार की नीतियां बाजार को सपोर्ट करने वाली और उद्योगों के विकास को बढ़ावा देने वाली हों तो इसका असर शेयर बाजार की तेजी के रूप में देखा जाता है. लेकिन यदि नीतियां उद्योगों के फेवर की नहीं और ज्यादा टैक्स लगाने वाली हो तो शेयर बाजार में गिरावट आती है. जिस सरकार की आर्थिक नीतियां इंडस्ट्री को सपोर्ट करती हैं, उसके कार्यकाल के दौरान शेयर बाजार तेजी से बढ़ता है.
विदेशी निवेशक
विदेशी निवेशकों की चाल का शेयर बाजार पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है. चुनाव परिणाम पर नजर रखने वाले विदेशी निवेशक देश की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता का आकलन करने ही निवेश करते हैं. यदि उन्हें लगता है कि चुनाव परिणाम के आधार पर आने वाली सरकार अस्थिर है और नीतिगत बदलाव हो सकते हैं तो वे अपना निवेश वापस ले सकते हैं. इससे शेयर बाजार पर दबाव पड़ता है और यह नीचे आता है.
इसके अलावा वैश्विक आर्थिक स्थिति, ब्याज दर, महंगाई दर और कंपनियों का प्रदर्शन भी शेयर बाजार की चाल को प्रभावित करता है. चुनावों के अलावा दूसरे कारक शेयर बाजार पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तक के प्रभाव डालते हैं. कल के चुनाव परिणाम में यदि निवेशकों को फिर से देश में मजबूत सरकार (गठबंधन से अलग) आने का संकेत मिलता तो बाजार में तेजी आ सकती थी. मजबूत सरकार से देश की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा.
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