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    February 11, 2025

    BJP को जिद मंजूर नहीं… CM पर तब अड़े थे उद्धव, क्या अब शिंदे को भी पड़ेगा भारी?

    1 min read
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    महाराष्ट्र में सत्ता की कमान को लेकर अब भी सस्पेंस बना हुआ है. एकनाथ शिंदे के सीएम पद की रेस से बाहर निकलने के बावजूद भाजपा अब तक फैसला नहीं ले सकी है.

    महाराष्ट्र में सत्ता की कमान को लेकर अब भी सस्पेंस बना हुआ है. एकनाथ शिंदे के सीएम पद की रेस से बाहर निकलने के बावजूद भाजपा अब तक फैसला नहीं ले सकी है. कहा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे की नाराजगी के कारण ही भाजपा अब तक सीएम का ऐलान नहीं कर सकी है. सरकार गठन को लेकर 2019 में भी ऐसी ही रस्साकशी देखने को मिली थी. तब उद्धव ठाकरे सीएम पद के लिए अड़ गए थे.. और भाजपा ने उनकी जिद को सिरे से खारिज कर दिया था. अब सवाल यह उठता है कि क्या एकनाथ शिंदे के साथ भी भाजपा उद्धव वाला ट्रीटमेंट करेगी या फिर बातचीत से हल निकाला जाएगा.

    2019 की यादें ताजा, फिर सामने पुराना सियासी संकट
    महाराष्ट्र में सियासत का खेल फिर से दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है. 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद की स्थिति और आज के हालात में कुछ समानताएं नजर आती हैं. तब भी मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान ने सरकार गठन में देरी कराई थी, और आज भी हालात कुछ वैसे ही दिख रहे हैं. इस बार मामला एकनाथ शिंदे और भाजपा के बीच है.

    2019: उद्धव की जिद और भाजपा की रणनीति
    2019 में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा और शिवसेना ने बहुमत हासिल किया. लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद के लिए 2.5-2.5 साल के फॉर्मूले का दावा किया. भाजपा ने इस दावे को खारिज कर दिया. इसके बाद शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और शरद पवार की एनसीपी व कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली. यह गठबंधन “महाविकास अघाड़ी” के नाम से जाना गया.

    एकनाथ शिंदे की मुश्किलें बढ़ीं
    2024 में परिस्थितियां बदल चुकी हैं. शिवसेना अब दो हिस्सों में बंट चुकी है.. एकनाथ शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट. शिंदे के लिए भाजपा का समर्थन अनिवार्य है, लेकिन भाजपा मुख्यमंत्री पद पर अभी अपना निर्णय नहीं ले पा रही. शिंदे के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं और पार्टी में अंदरूनी खींचतान की खबरें सामने आ रही हैं.

    2024: नंबर गेम और बदले समीकरण
    2019 और 2024 में बड़ा अंतर नंबर गेम का है. 2019 में एनसीपी और शिवसेना (अविभाजित) के पास मजबूत आंकड़े थे. लेकिन इस बार शिवसेना और एनसीपी के बंटवारे के बाद समीकरण भाजपा के पक्ष में है. भाजपा अकेले 132 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. इसके बावजूद मुख्यमंत्री पद पर फैसला करने में देरी भाजपा की रणनीति को लेकर सवाल खड़े कर रही है.

    शिंदे के साथ उद्धव जैसा ट्रीटमेंट?
    2019 में भाजपा ने उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री पद की मांग को सिरे से खारिज कर दिया था. अब सवाल यह है कि क्या भाजपा एकनाथ शिंदे के साथ भी वैसा ही रुख अपनाएगी? शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए रखना भाजपा के लिए आसान फैसला नहीं है, खासतौर पर तब, जब पार्टी अपने दम पर सरकार चला सकती है.

    शिंदे की नाराजगी
    शिंदे के समर्थकों का दावा है कि उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन कर उद्धव ठाकरे के खिलाफ बड़ा दांव खेला था. लेकिन भाजपा की चुप्पी उनके लिए निराशा का कारण बन रही है. शिंदे की नाराजगी के कारण भाजपा नेतृत्व पर दबाव है कि वह जल्द से जल्द स्थिति स्पष्ट करे.

    भाजपा की रणनीति.. समय का इंतजार?
    भाजपा अपने हर फैसले को बेहद सोच-समझकर लेने के लिए जानी जाती है. 2019 में देरी के बावजूद भाजपा ने महाराष्ट्र में विपक्ष की भूमिका मजबूती से निभाई थी. इस बार भाजपा के पास बहुमत के करीब आंकड़े हैं, लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए उसका कोई स्पष्ट रुख सामने नहीं आया है. यह रणनीति क्या शिंदे को कमजोर करने के लिए है या पार्टी कोई नया चेहरा लाना चाहती है, यह अभी साफ नहीं है.

    महाराष्ट्र की सियासत पर नजरें गड़ीं
    महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम देशभर की नजरों में है. भाजपा का हर कदम न केवल राज्य की राजनीति बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर डाल सकता है. सवाल यह है कि क्या भाजपा अपनी पुरानी शैली अपनाएगी या इस बार कुछ नया करेगी. शिंदे की राजनीतिक भविष्य की राह इसी पर निर्भर है.

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