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    May 6, 2025

    पाकिस्तान हो या चीन, समंदर में भारत के सामने नहीं टिकेगा कोई देश! INS विक्रांत और राफेल-M के कॉम्बिनेशन से बनेगा सुपर पावर।

    1 min read
    😊

    राफेल-एम 4.5 जनरेशन के राफेल लड़ाकू विमान का नेवी वैरियंट है और इसे फ्रांसीसी एयरोस्पेस फर्म डसॉल्ट एविएशन ने विकसित किया है.

    नौसेना की ताकत और बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने फ्रांस से 26 राफेल-मरीन लड़ाकू जेट खरीदने के लिए 64,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. ये फाइटर जेट भारत के पहले घरेलू एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत से ऑपरेट होंगे. इसे सितंबर 2022 में कमीशन किया गया था.

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की ओर से स्वीकृत इस सौदे में 22 सिंगल सीटर कैरियर-सक्षम राफेल-एम जेट और चार ट्विन-सीटर ट्रेनर वैरिएंट शामिल हैं. इस डील पर हस्ताक्षर होने के साढ़े तीन साल बाद डिलीवरी शुरू होगी और 2031 तक पूरी होने की उम्मीद है.

    ये सौदा क्यों है अहम?
    राफेल-एम 4.5 जनरेशन के राफेल लड़ाकू विमान का नेवी वैरियंट है और इसे फ्रांसीसी एयरोस्पेस फर्म डसॉल्ट एविएशन ने विकसित किया है. यह पहले ही अपनी लड़ाकू क्षमता साबित कर चुका है, यह परमाणु-सक्षम मिसाइलों सहित कई तरह के हथियार ले जाने में सक्षम है. भारतीय वायु सेना (IAF) पहले से ही राफेल जेट के दो स्क्वाड्रन संचालित कर रही है. 2016 में 59,000 करोड़ रुपये में 36 विमान खरीदे गए थे.

    भारतीय नौसेना की ओर से किए गए व्यापक परीक्षणों के बाद राफेल-एम ने अपने विरोधी बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉर्नेट को पछाड़ दिया. इनमें महत्वपूर्ण स्की-जंप टेस्ट भी शामिल था, जो STOBAR (शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) सिस्टम का उपयोग करके भारतीय विमान वाहक से छोटी उड़ान भरता है. राफेल-एम ने असाधारण प्रदर्शन किया. भारतीय वायुसेना के मौजूदा राफेल बेड़े के साथ इसकी अनुकूलता ने इसे और भी बेहतर बना दिया.

    यूरेशियन टाइम्स के लिए लिखते हुए ग्रुप कैप्टन एमजे ऑगस्टीन विनोद (सेवानिवृत्त) ने कहा, “भारतीय वायुसेना और नौसेना के राफेल विमानों के बीच साझा एयरफ्रेम, एवियोनिक्स, प्रशिक्षण सिमुलेटर और युद्ध सामग्री से रसद संबंधी बोझ कम होगा और संचालन में संयुक्तता सुनिश्चित होगी, जिससे आपात स्थितियों में क्रॉस-सर्विस तैनाती संभव होगी.”

    ये डील सिर्फ नए जेट खरीदने के लिए नहीं बल्कि इसकी कमियों को दूर करने के साथ हुई है. नौसेना के मिग-29K विमानों के मौजूदा बेड़े को विश्वसनीयता, लगातार रखरखाव की मांग और सीमित उपलब्धता की वजह से परेशानी हुई है. ये विमान INS विक्रमादित्य पर तैनात हैं.

    क्या है इसकी खासियत?
    इसको परमाणु क्षमताओं के साथ जोड़ा जा सकता है, जिससे भारत को समुद्र से हवाई मार्ग से परमाणु हथियार ले जाने का विश्वसनीय विकल्प मिल जाएगा. यह एक ऐसा आयाम है जिसे कोई भी क्षेत्रीय विरोधी नजरअंदाज नहीं कर सकता. ये फाइटर जेट कई मौकों पर अपनी क्षमता साबित कर चुका है. अफगानिस्तान, लीबिया, इराक और सीरिया में स्ट्राइक मिशन को भी अंजाम दे चुका है.

    कैसे बनेगा अजेय कॉम्बिनेशन
    भारत का स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत और राफेल मरीन एक साथ होंगे तो अपनी जगह से दूर हुए बिना भारत पूरे दक्षिण एशिया में किसी भी खतरे से निपट सकता है. जिस तरह तरह चीन पिछले कई सालों से हिंद महासागर में भारत को घेरने की कोशिश कर चुका है, उससे निपटने में भी ये शक्ति कारगर साबित होगी. भारत भी चीन की गतिविधियों पर नजर रख सकेगा और पकड़ मजबूत होगी.

    उधर पाकिस्तान के पास कैरियर ऑपरेशनल पावर बहुत कम है. राफेल मरीन से अगर तुलना की जाए तो पड़ोसी देश बहुत पीछे है, उसके पास ऐसी कोई समुद्री ताकत नहीं है. हिंद महासागर में निगरानी करने की क्षमता भी न के बराबर है. ऐसे में जरूरत पड़ने पर भारत कराची से ग्वादर तक पाकिस्तानी पोर्ट का घेराव कर सकता है.

    अब राफेल मरीन जेट से भारत को समुद्र में ऐसी ताकत मिलेगी जो सिर्फ चुनिंदा देशों के पास थी. उनमें फ्रांस, अमेरिका और चीन जैसे देश शामिल हैं. इन फाइटर जेट के आने के बाद भारत अपनी रक्षा करने में तो सक्षम होगा ही साथ ही संकट में अपने मित्र देशों को भी मदद दे सकता है.

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