क्या भारत ने विभाजन के समय गांधीजी के आग्रह पर पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिये थे? आज इस राशि का मूल्य क्या है?
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भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने के साथ ही कई पुराने संदर्भ चर्चा में आ गए हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव नाटकीय रूप से बढ़ गया है। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में 26 पर्यटक मारे गए थे। इस हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को रद्द कर दिया, पाकिस्तानी नागरिकों को जारी किए गए वीजा रद्द कर दिए और उन्हें तुरंत वापस भेज दिया। कहा जा रहा है कि दोनों पक्षों द्वारा लिए गए कुछ निर्णयों का असर दोनों देशों के बीच व्यापार पर भी पड़ेगा। इस बीच, इस तनाव की पृष्ठभूमि में कुछ ऐतिहासिक संदर्भों पर चर्चा हो रही है। इनमें से एक संदर्भ यह है कि जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो भारत ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिए थे। दिलचस्प बात यह है कि गांधीवाद का विरोध करने वाले लोग अक्सर दावा करते हैं कि महात्मा गांधी ने यह धन देने पर जोर दिया था।
हालांकि, इस संबंध में घटनाओं का सटीक क्रम महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने 2018 में बीबीसी के लिए लिखे एक विशेष लेख में बताया था। 30 जनवरी, 2018 को लिखे गए इस लेख में, जिस दिन महात्मा गांधी की हत्या हुई थी, उसी दिन तुषार गांधी ने महात्मा गांधी को 55 करोड़ रुपये देने के सरकार के फैसले पर अपना विरोध जताया है। आइये इस अवसर पर जानें कि इस लेख में वास्तव में क्या कहा गया है…
दोनों देशों के बीच धन का भी वितरण किया गया।
अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि ‘गांधीजी ने भारत सरकार को पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए मजबूर किया।’ तुषार गांधी ने कहा है कि यह आरोप झूठा है। तुषार गांधी ने बताया, “जब भारत और पाकिस्तान के विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार किया गया था, तो राज्यों के स्वामित्व वाले सभी संसाधनों को समान रूप से साझा करने का निर्णय लिया गया था। यह तय किया गया था कि भौतिक वस्तुओं के साथ-साथ नकद धन भी दोनों देशों के बीच समान रूप से साझा किया जाएगा। विवरण पर बातचीत की गई और वितरण किया गया।”
गांधीजी का मानना था कि यह जनता के साथ विश्वासघात होगा।
तुषार गांधी ने महात्मा गांधी द्वारा 55 करोड़ रुपये के फंड का विरोध किए जाने का मुद्दा उठाते हुए कहा, “12 जनवरी को महात्मा गांधी ने भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिए जाने के फैसले पर नाराजगी जताई थी। उस समय भारत सरकार ने महात्मा गांधी को बताया था कि फैसला बदल दिया गया है। गांधी ने कहा था कि बंटवारा एक पाप था और नागरिकों से किया गया वादा न निभाना इस पाप को और बढ़ाने जैसा है। तत्कालीन कैबिनेट ने संकेत दिया था कि जब तक भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के मुद्दे हल नहीं हो जाते, तब तक पाकिस्तान को कोई सहायता नहीं दी जाएगी। यह समझौता तोड़ने जैसा था। यह स्वतंत्र भारत का पहला समझौता था। इसलिए समझौता न निभाना दिया गया वादा तोड़ने जैसा था।”
अचानक भारत सरकार ने घोषणा की
तुषार गांधी ने इस लेख में दावा किया है, “महात्मा गांधी के अनशन के अगले ही दिन भारत सरकार ने अचानक दिल्ली में घोषणा की कि वह पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देगी। यह घोषणा बिड़ला हाउस से की गई। इससे असंतोष फैल गया। यह फैलाया गया कि गांधी ने खुद पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने के लिए मजबूर किया।”
नाथूराम गोडसे के भाई की किताब
तुषार गांधी यहीं नहीं रुके, उन्होंने यह भी कहा, “नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने इस संबंध में ’55 करोड़ के पीड़ित’ नाम से एक किताब लिखी थी। यह किताब नाथूराम द्वारा अदालत में दी गई जानकारी के आधार पर लिखी गई थी।” 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी।
उस समय के 55 करोड़ रुपए का मूल्य आज कितना है?
देश का केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक 1960 से ही रुपए का मूल्य मुद्रास्फीति दर के आधार पर मापता आ रहा है। मुद्रास्फीति दर की गणना करने वाली ‘ईजीटैक्स डॉट इन’ वेबसाइट के अनुसार, यदि हम गणित के हिसाब से 1960 को लें तो उस समय के 55 करोड़ रुपए आज की दरों पर 318 करोड़ 66 लाख 45 हजार रुपए होंगे। यदि इसमें से 12 वर्ष घटा दिए जाएं तो यह कहा जा सकता है कि 1948 में दिए गए 55 करोड़ रुपए आज की दरों पर लगभग 350 करोड़ रुपए होते हैं।
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