क्या संसद के पास है सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की पावर? जानें क्या कहता है संविधान।
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हमारे देश में जजों को हटाने की प्रक्रिया थोड़ी कठिन है. इसके लिए संसद से लेकर राष्ट्रपति तक की परमिशन की जरूरत होती है.
पिछले कुछ वक्त से जजों के मामले चर्चा में हैं. कभी जस्टिस यशवंत वर्मा घर में मिले नोटों के बंडल को लेकर सुर्खियों में आ जाते हैं, तो कभी कोई मुजरिम खुलेआम किसी जज को धमकी देने लगता है. ऐसे में अगर किसी जज के खिलाफ कोई आपराधिक मामला सामने आया है तो उनके खिलाफ कार्रवाई भी होती है, फिर वो जज चाहें हाईकोर्ट के हों या सुप्रीम कोर्ट के. जजों के खिलाफ संविधान के अनुसार उनको हटाने के लिए प्रक्रिया चलाई जाती है. लेकिन यह सब कैसे होता है, किसके पास ऐसा करने का अधिकार है. इस बारे में जान लेते हैं.
मनमाने तरीके से नहीं हटा सकते
न्यायपालिका देश के लोकतंत्र के की एक जरूरी संस्था है, ऐसे में इसके निष्पक्ष और स्वतंत्र संचालन को लेकर संविधान में प्रावधान साफ तरीके से दिए गए हैं. जज चाहें सुप्रीम कोर्ट के हों या फिर हाईकोर्ट के, उनका कार्यकाल आजीवन नहीं हो सकता है, लेकिन उनको मनमाने तरीके से पद से हटाया भी नहीं जा सकका है. किसी जज को पद से हटाने की प्रक्रिया को Impeachment Process कहा जाता है, जो कि बड़ी जटिल प्रक्रिया होती है.
संविधान में जजों को हटाने का क्या है प्रावधान
संविधान का अनुच्छेद 124 (4) सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने की बात करता है. संविधान के अनुसार जज को सिर्फ दो कारणों से हटाया जा सकता है, एक है अयोग्यता के आधार पर, जिसमें कोई जज अगर भ्रष्टाचार में शामिल है या फिर अपने पद का दुरुपयोग कर रहा है या फिर गंभीर नैतिक गलती करता है. वहीं दूसरा कारण है अक्षम्यता, जिसमें जज शारीरिक या फिर मानसिक रूप से काम करने में सक्षम नहीं रह जाता है.
क्या है हटाने की प्रक्रिया
जजों को हटाने की प्रक्रिया में एक के बाद कई कदम होते है, जिसमें संसद में प्रस्ताव पेश करना शामिल होता है. अगर किसी जज को हटाना हो तो संसद में एक महाभियोग प्रस्ताव पारित किया जाता है. लोकसभा में इस प्रस्ताव को पेश करने के लिए 100 सांसद और राज्यसभा में पेश करने के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है. इसके बाद जांच समिति का गठन होता है. प्रस्ताव मिलने के बाद लोकसभा के अध्यक्ष या फिर राज्यसभा के सभापति तीन सदस्यीय समिति का गठन करते हैं. इसमें सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज, हाई कोर्ट के एक मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं.
अंतिम मुहर राष्ट्रपति की
यह समिति जांच करती है और फिर रिपोर्ट सौंपकर बताती है कि जज दोषी हैं या फिर नहीं. इसके बाद संसद में मतदान की प्रक्रिया होती है. अगर समिति ने पाया कि जज दोषी है तो संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव को पास करना होता है. इसे विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिए. यानि संसद के कुल 50% से अधिक और उपस्थित सदस्यों में से कम से कम दो तिहाई सांसदों को इसके पक्ष में वोट करना होगा. अगर संसद से यह पारित हो जाता है तो फिर इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद जज को हटाया जा सकता है.
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