प्रधानमंत्री को ही फांसी पर लटका दिया! मार्शल लॉ आखिर है क्या? PAK बहुत भोग चुका, अब दक्षिण कोरिया लपेटे में आया.
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वैसे तो मार्शल लॉ दुनियाभर के कई देशों में लग चुका है लेकिन पाकिस्तान इसको लेकर काफी बदनाम है. बार-बार लगने वाले मार्शल लॉ ने दिखाया है कि यह कानून कैसे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर कर सकता है. इस बारे में एक नजर मारना जरूरी है.
राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए दुनिया का राजनीतिक मानचित्र रोज नए-नए घटनाक्रम पेश कर देता है. इसी कड़ी में अचानक दुनिया भौचकक्की रह गई जब दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति यून सुक-योल ने ‘इमरजेंसी मार्शल लॉ’ की घोषणा कर दी. देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हलचल मच गई. हालांकि वहां की संसद में भारी विरोध के बाद इसे रद्द करना पड़ा. 1980 के बाद यह पहला मौका था जब दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ लागू हुआ था. इस घटना ने एक बार फिर मार्शल लॉ को चर्चा का विषय बना दिया. ऐसे में बतौर भारतीय हमें पाकिस्तान का इतिहास याद आता है, जो इस कानून का सबसे अधिक शिकार रहा है. आइए इस बारे में समझते हैं.
आखिर क्या है मार्शल लॉ?
असल में मार्शल लॉ एक ऐसी स्थिति है जिसमें देश की पूरी सत्ता सेना के हाथों में चली जाती है. इसे आमतौर पर देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति के पूरी तरह बिगड़ जाने पर लागू किया जाता है. यह देश के किसी खास हिस्से या पूरे देश में लागू हो सकता है. इसके तहत नागरिक प्रशासन खत्म हो जाता है, और सेना कानून व्यवस्था से लेकर न्यायिक व्यवस्था तक सभी चीजों को अपने नियंत्रण में ले लेती है.
मार्शल लॉ कब और कैसे लागू होता है?
मार्शल लॉ उन परिस्थितियों में लागू होता है जब सरकार जनता पर नियंत्रण पाने में पूरी तरह असफल हो जाती है. यह जंग, तख्तापलट, या बड़े प्राकृतिक आपदाओं के समय लागू हो सकता है. इसके तहत सेना विशेष ट्रिब्यूनल बनाती है, जो न्यायिक फैसले भी करती है. कई बार इसे सत्ता पर कब्जा करने का भी जरिया बनाया गया है, जैसा कि पाकिस्तान में बार-बार देखा गया है.
अब पाकिस्तान में मार्शल लॉ का इतिहास समझते हैं..
पाकिस्तान में मार्शल लॉ का इतिहास बेहद कड़वा रहा है. अब तक यहां चार बार मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है. पहली बार 1958 में राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने देश की राजनीतिक अस्थिरता का हवाला देकर मार्शल लॉ लगाया था. इसके बाद सत्ता पर सैन्य जनरल अयूब खान ने कब्जा कर लिया. इसके बाद से देश में सैन्य और राजनीतिक सत्ता के बीच संघर्ष का सिलसिला शुरू हो गया.
1977 में जिया-उल-हक का मार्शल लॉ
पाकिस्तान में तीसरी बार मार्शल लॉ 5 जुलाई 1977 को जनरल जिया-उल-हक ने लगाया. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को गिरा दिया. जिया ने देश की नेशनल असेंबली को भंग कर दिया और खुद को प्रमुख शासक घोषित कर दिया. यह दौर पाकिस्तान के लिए बेहद कठिन था, क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ आम जनता की आज़ादी भी छिन गई थी.
मुशर्रफ का सैन्य शासन 1999 में..
1999 में पाकिस्तान में चौथी बार मार्शल लॉ लगा. तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को हटाकर जनरल परवेज मुशर्रफ ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. इस बार भी राजनीतिक अस्थिरता का हवाला दिया गया. इस शासन में लोकतंत्र का दम घुट गया और देश पर सैन्य तानाशाही की छाया लंबे समय तक बनी रही.
अन्य देशों में भी लागू हुआ है मार्शल लॉ
दुनिया के अन्य देशों में भी मार्शल लॉ लागू हो चुका है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी और जापान में सेना ने शासन संभाला. श्रीलंका में आर्थिक संकट के दौरान, और यूक्रेन में युद्ध के दौरान मार्शल लॉ लगाया गया. हालांकि, पाकिस्तान उन गिने-चुने देशों में है जहां इसे बार-बार लागू किया गया है.
मार्शल लॉ को लेकर PAK ज्यादा बदनाम..
वैसे तो दुनियाभर के कई देशों में यह लग चुका है लेकिन पाकिस्तान इसको लेकर काफी बदनाम है. बार-बार लगने वाले मार्शल लॉ ने दिखाया है कि यह कानून कैसे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को इतना कमजोर कर सकता है. दक्षिण कोरिया में हालिया घटना से भी यह साफ है कि दुनिया के देशों को मार्शल लॉ जैसे कड़े कदम उठाने से पहले उसके दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार करना होगा. अच्छी बात रही कि वहां की संसद ने तत्काल गलती सुधार ली है.
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