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    April 22, 2025

    यासीन मलिक ने बताया खुद को ‘गांधीवादी’, ट्रिब्यूनल ने कहा- दलील बेमानी, बैन रहेगा बरकरार।

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    अलगाववादी नेता और आतंकी गतिविधियों के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद यासीन मलिक ने खुद को ‘गांधीवादी’ बताया है. ट्राइब्यूनल की सुनवाई में मलिक ने दावा किया वह हिंसा का रास्ता छोड़कर अब गांधी के रास्तों पर चल रहा है.

    जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के चीफ यासीन मलिक ने यूएपीए ट्रिब्यूनल से अपनी सफाई में कहा है कि वो सशस्त्र संघर्ष का रास्ता तीस साल पहले ही छोड़ चुका है. उसने यह भी दावा किया कि वो अब गांधीवादी हो गया है. मलिक का कहना है कि साल 1994 से वो जम्मू-कश्मीर में भारत के कब्जे और प्रभुत्व का विरोध करने के लिए गांधीवादी तरीके का पालन कर रहा है. हालांकि विरोध करने के लिए गांधी का तरीका इस्तेमाल करने के चलते उसे उन अलगाववादी सगठनों से जान से मारने की धमकी मिल रही है, जो अब भी हथियार का दामन थामे है.

    नहीं चली गांधीवादी होने की दलील
    यासीन मलिक ने ये सफाई UAPA ट्रिब्यूनल के सामने दिए अपने बयान और लिखित जवाब में दी है. मलिक ने गांधीवादी होने की दलील देकर अपने संगठन जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (वाई) पर पर सरकार की ओर लगे बैन को हटवाने की पूरी कोशिश की पर केंद्र सरकार की ओर से रखी दलीलों और सबूतों के मद्देनजर उसकी ये दलील बेमानी हो गई. ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में यासीन मलिक के संगठन जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट पर सरकार की ओर लगाए बैन को बरकरार रखा है. सरकार ने पहले 2019 में JKLF (Y) को UAPA के तहत गैरकानूनी संगठन घोषित कर 5 साल के लिए बैन किया था. 15 मार्च 2024 में सरकार ने इस बैन को अगले 5 साल के लिए बढ़ा दिया था. अब UAPA ट्रिब्यूनल ने यासीन मलिक के संगठन पर लगाए बैन की मियाद बढाने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा है.

    यासीन मलिक की सफाई
    फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद यासीन मलिक ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए यूएपीए ट्रिब्यूनल के सामने बयान दिया था. मलिक ने कहा कि शुरुआत में उस यकीन दिलाया गया था कि कश्मीरी युवाओं और कश्मीरी आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सशस्त्र संघर्ष ही एकमात्र तरीका था. लेकिन बाद में उसने गांधीवादी तरीका अपना लिया.1994 के बाद से केंद्र सरकार के बड़े राजनीतिक और सरकारी अधिकारियों ने उनसे संपर्क किया है ताकि अलगाववादियों द्वारा उठाए गए कश्मीर मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सके. यासीन मलिक ने अपनी सफाई में जहूर अहमद शाह वटाली से पैसे मिलने की बात का खंडन किया.

    यासीन मलिक ने बैन को ग़लत बताया
    मलिक ने सफाई देते हुए कहा कि 1994 में, राज्य अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे कश्मीर विवाद का समाधान संवाद के माध्यम से करेंगे, बशर्ते वह एकतरफा सीजफायर की घोषणा करे. इसके बाद उसने और उसके संगठन ने 1994 में सीज फायर की घोषणा की. इसके चलते उन्हें TADA से जुड़े 32 केस में जमानत दी गई.

    सीज फायर एग्रीमेंट के चलते 1994 से 2018 के बीच उसके खिलाफ कोई केस नहीं चला. मलिक ने दलील दी कि 1994 के बाद उसके या उसके संगठन से जुड़े उसके सहयोगी के खिलाफ कोई ऐसा आरोप सामने नहीं आया है कि उसने खुलेआम या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकी गतिविधि को समर्थन दिया हो. ऐसे में उसके संगठन के खिलाफ बैन का कोई आधार नहीं बनता.

    मुखौटे का इस्तेमाल पैसा जुटाने में – केंद्र सरकार
    केंद्र सरकार ने ट्रिब्यूनल के सामने जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट-वाई पर लगे बैन को सही ठहराया. सरकार ने कहा कि 1994 में रिहा होने के बाद यासीन मलिक ने हथियारबंद प्रतिरोध से तो खुद को दूर तो कर लिया, लेकिन वो और उसका संगठन आतंकवाद का समर्थन करने और उसे जारी रखने से पीछे नहीं हटा. उसने अपने इस गांधीवादी मुखौटे का इस्तेमाल कश्मीर में हिंसक अभियान के लिए पैसा जुटाने में किया. श्रीनगर के रावलपोरा में वायुसेना कर्मी की सनसनीखेज हत्या और तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सैयद की बेटी डॉ. रुबैया सैयद केअपहरण में जेकेएलएफ-वाई से जुड़े लोग शामिल रहे है.

    सरकार ने कहा कि 2019 में जेकेएलएफ-वाई पर लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद, इस संगठन के कार्यकर्ता अभी भी भारत की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा बने हुए है. संगठन का मकसद राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को कमजोर कर अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा देना है. जेकेएलएफ-वाई लगातार जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों को समर्थन प्रदान कर रहा है.

    UAPA ट्रिब्यूनल का फैसला
    जस्टिस नीना बंसल कृष्णा कीअध्यक्षता वाले यूएपीए ट्रिब्युनल ने केन्द्र सरकार के फैसले को बरकरार रखते कहा कि देश में ऐसे संगठनों के लिए कोई जगह नहीं है, जो खुले तौर पर अलगाववाद को बढ़ावा देते हों और भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को कमजोर करते हों. ट्रिब्यूनल ने कहा कि 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में जो स्थिरता आई है और आतंकी घटनाओं में कमी आई है, उसे जेकेएलएफ-वाई की निरंतर गैरकानूनी गतिविधियों के कारण खतरे में नहीं डाला जा सकता है.

    ‘गांधीवादी होने की दलील बेमानी’
    ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा है कि हालांकि यासीन मलिक ने सुनवाई के दौरान बार-बार ये दावा किया कि उसने हथियार छोड दिया है और 1994 से अपने घोषित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वो संघर्ष के गांधीवादी तरीके का पालन कर रहा हैं, लेकिन हिंसक संगठनो और व्यक्तियों के साथ उसका जुड़ाव इस कदर है कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यासीन मलिक ने न केवल वांटेड आतंकवादियों के साथ संपर्क बनाए रखा है, बल्कि उसने पीओके में एक आतंकवादी शिविर का दौरा करने की बात को भी कबूला है. यही नहीं, उस शिविर में उसे सम्मानित भी किया गया था.

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