मौत के वक्त क्यों पछता रहा था औरंगजेब, क्या थी उसकी आखिरी इच्छा? जो रह गई अधूरी, छावा की धूम के बीच जानना जरूरी।
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छावा की धूम है, क्या प्रधानमंत्री और संसद सब छावा-छावा कर रहे हैं. बच्चा-बच्चा छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की जय-जयकार कर रहा है. आइए आपको ‘छावा’ संभाजी महाराज के हवाले से ही बताते हैं कि औरगंजेब की आखिरी इच्छा क्या थी, जो अधूरी रह गई.
‘छावा’ फिल्म की धूम मची है, प्रधानमंत्री समेत कई नेता सब छावा-छावा कर रहे हैं. बच्चा-बच्चा छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की जय-जयकार कर रहा है. आइए ‘छावा’ के हवाले से ही बताते हैं कि मुगल बादशाह औरगंजेब की आखिरी इच्छा क्या (Aurangzeb last wish) थी, जो अधूरी रह गई. छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) और शंभाजी (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) जैसे मां भवानी के सपूतों की वीरता और मात्रभूमि पर मर मिटने का जज्बा जानकर करोड़ों भारतीय हिंदू युवाओं को भारत माता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान देने की प्रेरणा मिलेगी.
पहले छावा को जानिए फिर जानिए औरंगजेब की आखिरी इच्छा
छत्रपति शिवाजी मराराज और उनके सुपुत्र छत्रपति शंभाजी मराठा साम्राज्य के अप्रतिम योद्धा थे. संभाजी महाराज का जन्म 24 मई 1657 की सुबह 10:01 बजे पुरंदर किले में हुआ था. छत्रपति शिवाजी के बेटे छत्रपति शंभाजी के जन्म का विवरण ऐतिहासिक दस्तावेज शिवापुरकर वही में दर्ज है. उनके दौर के आचार्यों और पुरोहितों ने उनकी कुंडली का विचार करते समय देख लिया था वीर बालक बहादुरी से इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अपना नाम दर्ज कराएगा. माना जाता है कि बर्थ चार्ट में मौजूद लग्न कुंडली में ग्रहों की स्थिति की वजह से वो ऐसे शूरवीर और धुरंधर योद्धा बने जिनके नाम से औरंगजेब जैसा मुगल बादशाह (Mughal emperor Aurangzeb) खौफ खाता था.
छत्रपति शंभाजी कहलाते थे छावा
जिसने अपने अल्प जीवन-काल में सैकड़ों लड़ाइयां लड़ीं और एक भी नहीं हारे. आज के मध्य भारत, पश्चिमी भारत यानी महाराष्ट्र, कोंकण और गोवा से लेकर दक्षिण भारत तक छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके सुपुत्र छावा यानी छत्रपति शंभाजी महाराज की वीरता की गूंज थी. छावा का अर्थ शावक यानी शेर का बच्चा होता है. संभाजी महाबाली थे. वो मातृभूमि के सच्चे सपूत थे
इतिहास की किताबों में हम सबने छत्रपति शिवाजी महाराज की पूरी जीवनी पढ़ी होगी, लेकिन उनके पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज के बारे में हमें ज्यादा पढ़ने को नहीं मिलता. ऐसे में डायरेक्टर लक्षमण उतेकर की मूवी ‘छावा’ छत्रपति संभाजी महाराज की उस वीरता को दर्शाती है, जिसके कारण उनका नाम छावा (शेर का बच्चा) पड़ा. वो सपूत छावा जिसने पूरे नौ साल तक औरगजेब की नाक में दम करके रख दिया था.
आखिरी ख्वाहिश जो रह गई अधूरी
औरंगजेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर लगभग आधी सदी राज किया. वो अकबर के बाद सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला मुगल शासक था. औरंगजेब के शासन में मुगल साम्राज्य अपने विस्तार के शिखर पर पहुंचा. उसने अपने जीवनकाल में दक्कन या डक्कन यानी दक्षिण भारत को भी जीतने का सपना देखा था, पर मराठा योद्धाओं खासकर ‘छावा’ छत्रपति शंभाजी और उनकी वीरांगना पत्नी येशुभाई की वजह से वह पूरे भारत पर राज नही कर सका और इस तरह उसकी ये आखिरी ख्वाहिश अधूरी ही रह गई. वहीं उसकी मौत के बाद मुगल सल्तनत सिकुड़नी शुरू हो गई थी.
औरंगजेब का आखिरी दिन
उसकी अंतिम इच्छा के बारे में इतिहासकार ये भी लिखते हैं कि औरंगजेब बहुत कट्टर शासक माना जाता था. अपने शासनकाल में उसने जितने लोगों पर जुर्म किए, अंत समय में उतना पछतावा भी उसे था. औरंगजेब की इच्छा थी कि उसके मकबरे पर छाया ना दी जाए. औरंगजेब ने अपनी मौते के दिन अपने बेटे कामबख़्श को बुलाकर चिंता जताते हुए कहा, ‘मेरे मरने के बाद मेरे लोगों से बुरा सलूक होगा. जो मैंने लोगों के साथ किया, वो अब मेरे अपनों के साथ होगा.’ इसके बाद उसने अपने सबसे चहेते बेटे आजम शाह को बुलाकर उससे रूबरू होते हुए कहा, ‘बादशाह के तौर पर मैं नाकाम रहा. मेरा कीमती जीवन किसी काम नहीं आया. अल्लाह चारों ओर है, लेकिन मैं बदनसीब कि जब उनसे मिलने की घड़ी आ रही है तब मैं उनकी मौजूदगी महसूस नहीं कर पा रहा. मैं पापी हूं. शायद मेरे गुनाह ऐसे नहीं, जिसे माफ किया जा सके.’
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