हिंदी से इतनी नफरत क्यों? स्टालिन ने PM मोदी को लिखा खत, बोले-गैर हिंदी भाषी राज्यों में…
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एमके स्टालिन ने पीएम मोदी से अनुरोध किया है कि वह केंद्र के उस फैसले पर दोबारा गौर करें, जिसमें गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी से जुड़े आयोजनों पर दोबारा विचार करें. उन्होंने कहा कि ऐसी पहल से अलग-अलग भाषाई पहचान वाले क्षेत्रों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखा है. इसमें उन्होंने कहा है कि हिंदी भाषी समारोह गैर हिंदी भाषी राज्यों में आयोजित नहीं होने चाहिए. इससे बचा जा सकता है.
खत में स्टालिन ने लिखा, ‘अगर केंद्र सरकार फिर भी ऐसे समारोह आयोजित करना चाहती है तो मेरी सलाह है कि उस राज्य में लोकल लैंग्वेज मंथ को भी उतने ही जोर-शोर से मनाया जाना चाहिए. इसके अलावा, मेरा सुझाव है कि भारत सरकार उन सभी शास्त्रीय भाषाओं की समृद्धि का जश्न मनाने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित कर सकती है जिन्हें उसने संबंधित राज्यों में मान्यता दी है. इससे सभी के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बढ़ सकते हैं. ‘
‘फैसले पर दोबारा गौर करे केंद्र’
एमके स्टालिन ने पीएम मोदी से अनुरोध किया है कि वह केंद्र के उस फैसले पर दोबारा गौर करें, जिसमें गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी से जुड़े आयोजनों पर दोबारा विचार करें. उन्होंने कहा कि ऐसी पहल से अलग-अलग भाषाई पहचान वाले क्षेत्रों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है.
सीएम ने कहा, “जैसा कि आप जानते हैं कि भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. इंग्लिश और हिंदी दोनों को सिर्फ आधिकारिक कामों जैसे कि कार्यपालिका और न्यायपालिका और केंद्र व राज्य सरकारों के बीच बातचीत के लिए इस्तेमाल किया जाता है.”
‘नीचा दिखाने का प्रयास लगेगा’
दक्षिण के राज्यों में हिंदी से जुड़े आयोजनों के खिलाफ स्टालिन ने कहा, ”ऐसी स्थिति में भारत जैसे बहुभाषी देश में हिंदी को विशेष स्थान देना और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी मंथ मनाना अन्य भाषाओं को नीचा दिखाने का प्रयास माना जाता है.”
सीएम ने कहा, ”इसलिए, मेरा सुझाव है कि गैर-हिंदी भाषी राज्यों में ऐसे हिंदी भाषा से जुड़े आयोजनों को टाला जा सकता है या अगर केंद्र सरकार अभी भी ऐसे आयोजन करना चाहती है, तो मेरा सुझाव है कि संबंधित राज्यों में लोक लैंग्वेज मंथ का उत्सव भी समान गर्मजोशी के साथ मनाया जाना चाहिए. इसके अलावा, मेरा यह भी सुझाव है कि भारत सरकार संबंधित राज्यों में मान्यता प्राप्त सभी शास्त्रीय भाषाओं की समृद्धि का जश्न मनाने के लिए विशेष आयोजन कर सकती है. इससे सभी के बीच रिश्ते और भी मजबूत होंगे.”
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