आखिर नदी-तालाब में खड़े होकर ही क्यों दिया जाता है छठ पर सूर्य अर्घ्य? यमुना को लेकर इस साल भी फैसला बरकरार।
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छठ पूजा प्रारंभ हो चुकी है और यमुना नदी में जहरीले झाग का मुद्दा छाया हुआ है. दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना घाट पर छठ मनाने को लेकर अनुमति देने से इंकार करते हुए अपना बीते साल का फैसला बरकरार रखा है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना घाट पर छठ मनाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है. साथ ही कहा है कि यह लोगों की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है, क्योंकि नदी में प्रदूषण की मात्रा ज्यादा है. ऐसे में छठ पूजा करने वालों को निराशा हाथ लगी है. कोर्ट ने पहले ही दिल्ली में यमुना नदी में छठ पूजा करने पर बैन लगाया हुआ है. आइए जानते हैं कि छठ महापर्व में नदियों-जलाशयों का कितना महत्व है.
कमर तक पानी में खड़े होकर देते हैं अर्घ्य
छठ पूजा में नदी या तालाबों के किनारे कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. यदि ऐसी सुविधा ना हो तो लोग कृत्रिम जलाशय बनाकर पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं. ऐसा करने के पीछे कई कारण हैं. एक प्रमुख कारण यह है कि कार्तिक मास के दौरान श्री हरि जल में ही निवास करते हैं और सूर्य ग्रहों के देवता माने गए हैं. इस कारण नदी या तालाब में कमर तक पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने से भगवान विष्णु और सूर्य दोनों की ही पूजा एक साथ हो जाती है.
सूर्य पुत्र कर्ण देते थे ऐसे ही अर्घ्य
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ पर्व महाभारत काल के समय से मनाया जा रहा है. सूर्य पुत्र कर्ण ने ही सबसे पहले छठ पर्व पर सूर्य पूजा करके इसकी शुरुआत की थी. कवच-कुंडलधारी कर्ण के लिए कहा जाता था कि वे रोजाना घंटों तक नदी में कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे, पूजा करते थे. इसलिए आज भी छठ पूजा पर सूर्य को अर्घ्य देने के लिए यही प्रक्रिया अपनाई जाती है.
पैरों पर नहीं पड़ने चाहिए छींटे
सूर्य को अर्घ्य देते समय इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है कि पैरों पर छींटे नहीं पड़ें. इसलिए भी नदी या जलाशय में कमर तक खड़े होकर सूर्य को जल देना उचित माना जाता है.
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