खजाना खाली होने पर देश को गिरवी रखना पड़ा था सोना, मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री बनकर ऐसे पलट दी बाजी।
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वित्त मंत्री के तौर पर जब पहली बार जुलाई 1991 में मनमोहन सिंह ने भाषण दिया तो उन्होंने अपने तेवर साफ दिखा दिये थे. उनकी तरफ से लिये गए फैसलों का असर पांच महीने बाद ही देश की इकोनॉमी पर दिखाई देने लगा.
26 दिसंबर की रात पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली. साल 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को आर्थिक उदारीकरण के जनक के रूप में जाना जाता है. 1991 में जब मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाला तो देश गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था. देश के खजाने में महज 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा रह गई थी. इससे केवल दो हफ्ते का आयात का खर्च चल सकता था. ऐसे समय में वित्त मंत्रालय की बागडोर संभालने वाले मनमोहन सिंह ने अपने फैसलों से आर्थिक मोर्चे पर देश को मजबूत किया.
काफी उम्मीद के साथ सौंपी थी वित्त मंत्रालय की कमान
तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने देश के कठिन आर्थिक परिस्थिति में होने के दौरान काफी उम्मीद के साथ मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी थी. इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर के कहने पर नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया था. जिस समय देश के पास 89 करोड़ डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा तो उन्हें कई कठोर फैसले लेने पड़े. उस दौर में देश को अपने आयात का खर्च पूरा करने के लिए अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था. उस दौर में डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान 1991 में आर्थिक उदारीकरण (Economic Liberalization) को शुरू किया और मुश्किल में फंसी अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने में कामयाब हुए.
इकोनॉमी को मजबूती देने के लिए कई कदम उठाए
वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक सुधारों को शुरू करने वाले मनमोहन सिंह ने इकोनॉमी को मजबूती देने के लिए कई कदम उठाए. उन्होंने सरकारी कंट्रोल को कम करने, एफडीआई (FDI) को बढ़ावा देने समेत कई फैसले लागू किये. देश की इकोनॉमी को ग्लोबल मार्केट के लिए खोल दिया गया. लाइसेंस राज खत्म करने और मनरेगा व आधार जैसे अहम बदलाव में प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह का अहम योगदान रहा. 1991 में देश का विदेशी कर्ज 35 अरब डॉलर से बढ़कर दोगुना 69 अरब डॉलर हो गया था. उस समय आपातकालीन उपाय के तौर पर आरबीआई ने बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास सोना गिरवी रखकर 400 मिलियन डॉलर जुटाए.
आर्थिक उदारीकरण का जनक कहा गया
इसके बाद मनमोहन सिंह ने इंडियन इकोनॉमी के सुधार की एक सीरीज शुरू की. मनमोहन सिंह के इन सुधारों के दम पर देश आर्थिक संकट से बाहर निकलने में कामयाब रहा. वित्तीय संकट से गुजरने के लिए जुलाई 1991 के बजट में भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिया गया. उनके इस कदम का असर कुछ ही महीने में दिखाई देने लगा. दिसंबर 1991 में भारत सरकार ने विदेशों में रखे गिरवी सोने को छुड़वाकर आरबीआई को सौंप दिया. इसी कारण मनमोहन सिंह को देश में आर्थिक उदारीकरण का जनक कहा जाता है.
पहले बजट भाषण में क्या कहा?
24 जुलाई 1991 को बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘विक्टर ह्यूगो ने कहा था कि जिस बात का वक्त आ गया, समझो उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. दुनिया में भारत का एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना ऐसा ही विचार है. पूरी दुनिया साफ-साफ सुन ले, भारत अब जाग गया है. हम इस हालात से उबरेंगे, हम जीतेंगे.’ उन्होंने भारत को दुनिया के बाजार के लिए खोलने के साथ ही निर्यात और आयात के नियमों को भी आसान किया. देश में लाइसेंस राज खत्म करने का क्रेडिट भी उन्हें ही जाता है. प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने ही मनरेगा और आधार कार्ड की शुरुआत की.
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