नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे +91 8329626839 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें ,

Recent Comments

    test
    test
    OFFLINE LIVE

    Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

    April 24, 2025

    दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास कौन सी पावर होती हैं? कैसा है कैपिटल का एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर।

    1 min read
    😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊

    2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 239AA के अस्तित्व के बावजूद दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश बना हुआ है, जिससे एलजी को एनसीटी का कार्यकारी प्रमुख बना दिया गया.

    दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 फरवरी को घोषित किए जाएंगे, जिसमें 70 सीटों के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और आम आदमी पार्टी (आप) मुख्य दावेदार हैं. केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में कई सालों से कानून-व्यवस्था का मुद्दा इसके पूर्व मुख्यमंत्री उठाते रहे हैं.

    पिछले दस साल में दिल्ली सरकार के लिए कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर आरोप-प्रत्यारोप एक सामान्य बात हो गई है, जब से दिल्ली में कांग्रेस की जगह आप ने ले ली है और केंद्र में भाजपा ने कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीन ली.

    वायु और जल प्रदूषण, कानून-व्यवस्था और राजस्व कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर भाजपा और आप के बीच पिछले कुछ साल से तकरार चल रही है. आइये दिल्ली के मुख्यमंत्री और राजधानी के कुछ उल्लेखनीय राजनेताओं की विकसित होती पावर पर नजर डालें.

    स्वतंत्रता के बाद पावर डायनेमिक्स कैसे बदले
    1947 में, संविधान सभा ने दिल्ली, अजमेर, कुर्ग आदि जैसे केंद्र प्रशासित प्रांतों की संवैधानिक स्थिति के बारे में चर्चा की. पट्टाभि सीतारमैय्या के नेतृत्व में सात सदस्यीय समिति ने लगभग तीन महीने का अध्ययन करने के बाद एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें दिल्ली में एक अलग स्वशासन की सिफारिश की गई थी.

    पूर्व लोकसभा सचिव एस.के. शर्मा ने फ्रंटलाइन में लिखा है कि इस सरकार में तीन सदस्यीय मंत्रिपरिषद, 50 सदस्यीय विधानसभा और एक उपराज्यपाल शामिल होंगे, जिससे देश की राजधानी एक अर्ध-राज्य बन जाएगी.

    लेकिन संविधान सभा के अधिकांश सदस्यों ने इस सिफारिश को खारिज कर दिया था. द हिंदू की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल और डॉ राजेंद्र प्रसाद जैसे अधिकांश कांग्रेसी नेताओं का मानना ​​था कि केंद्र के पास दिल्ली पर विशेष अधिकार होना चाहिए.

    अंत में, समझौता हुआ और 1951 में दिल्ली को पार्ट ‘सी’ राज्य (पूर्व मुख्य आयुक्त के प्रांत) बना दिया गया. इसके वर्गीकरण के मुताबिक, दिल्ली को 48 सदस्यीय विधान सभा, एक विधान परिषद और एक मुख्यमंत्री दिया गया.

    ये रहे 1956 कर दिल्ली के सीएम
    1952 में कांग्रेस ने 34 साल के ब्रह्म प्रकाश को अपना पहला मुख्यमंत्री चुना और वे 1956 तक इस पद पर बने रहे.

    1956 में जब भारत को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में रीऑर्गेनाइज्ड किया गया, तो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक द्वारा दिल्ली को यूटी बनाया गया. विधानसभा और परिषद को खत्म करके इसका विधायी नियंत्रण छीन लिया गया.

    लेकिन दिल्ली में लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग बढ़ती रही और 1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम पारित किया गया, जिसके तहत एक अंतरिम दिल्ली महानगर परिषद की स्थापना की गई, जिसमें एक कार्यकारी परिषद थी, जिसका नेतृत्व उपराज्यपाल (एलजी) करते थे.

    उपराज्यपाल को दिया गया ये अधिकार
    उपराज्यपाल को छह महीने के अंतराल में मेट्रोपोलिटन काउंसिल को बुलाने और स्थगित करने का अधिकार था.

    61 सदस्यों वाली महानगर परिषद में 56 निर्वाचित सदस्य और पांच मनोनीत सदस्य थे. परिषद का नेतृत्व चेयरमैन करता था जो परिषद की अध्यक्षता करता था और इसकी कार्यवाही पर फाइनल फैसला (अध्यक्ष की तरह) लेता था. सदन का नेता, जो मुख्य कार्यकारी पार्षद भी था, यूटी से संबंधित सभी विधायी मामलों पर एलजी और उनकी तीन सदस्यीय कार्यकारी परिषद को सलाह देता था, द हिंदू की रिपोर्ट में बताया गया है.

    विपक्ष के नेता को आश्वासन समिति का अध्यक्ष भी नामित किया गया. 1967 से 1990 के बीच, कांग्रेस परिषद की सत्तारूढ़ पार्टी रही, सिवाय 1977-80 के, जब जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार केन्द्र में सत्ता में आई.

    संशोधन करके जोड़े गए 2 नए अनुच्छेद
    1991 में संसद ने संविधान में संशोधन करके दो नए अनुच्छेद, अनुच्छेद 239AA और 239AB जोड़े, जिससे दिल्ली का नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ (NCT) कर दिया गया. इसने NCT को पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था तथा भूमि को छोड़कर राज्य और समवर्ती सूचियों के मामलों पर कानून बनाने की अनुमति दे दी.

    दिल्ली के एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर में सुधार करके उसे एक मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद दिया गया जो उपर्युक्त विषयों पर विधानसभा द्वारा बनाए गए कानूनों पर उपराज्यपाल को सलाह देंगे. उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विवाद की स्थिति में राष्ट्रपति हस्तक्षेप कर सकते हैं.

    दूसरे संशोधन में राष्ट्रपति को अनुच्छेद 239AA (अर्थात निर्वाचित दिल्ली विधानसभा और मंत्रिपरिषद) के संचालन को निलंबित करने की अनुमति दी गई, यदि उपराज्यपाल उन्हें सूचित करते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रशासन नहीं चलाया जा सकता है.

    किसने किया कितना शासन
    शीघ्र ही, इन संवैधानिक संशोधनों को लागू करने के लिए संसद द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 पारित किया गया. 1993 से इस नए स्ट्रक्चर के तहत भाजपा ने पांच साल, कांग्रेस ने 15 साल और अब आप ने 10 साल तक दिल्ली पर शासन किया.

    2014 में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की कमान संभाली जबकि पीएम नरेंद्र मोदी केंद्र में प्रधानमंत्री बने. 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 239AA के अस्तित्व के बावजूद दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश बना हुआ है, जिससे एलजी को एनसीटी का कार्यकारी प्रमुख बना दिया गया.

    लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आप सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया कि मुख्यमंत्री राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कार्यकारी प्रमुख हैं और उन सभी मामलों पर उपराज्यपाल से परामर्श किया जाना चाहिए जहां विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन उनकी सहमति की जरूरत नहीं है.

    2021 में फिर हुआ नया संशोधन

    2019 में, लोकसभा में भाजपा के भारी बहुमत और राज्यसभा में लगभग बहुमत के बाद, 2021 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन अधिनियम में संशोधन किया गया. अधिनियम ने सरकार को सभी कार्यकारी निर्णयों पर उपराज्यपाल की राय प्राप्त करने का आदेश दिया और विधानसभा को एनसीटी के दैनिक प्रशासन से संबंधित मामलों पर चर्चा करने से रोक दिया गया.

    11 मई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से एनसीटी में प्रशासनिक सेवाओं पर दिल्ली सरकार की शक्ति को बरकरार रखा. इसने जोर देकर कहा कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई दिल्ली सरकार को केंद्र द्वारा उसकी विधायी और कार्यकारी शक्तियों से वंचित नहीं किया जा सकता है.

    लेकिन केंद्र ने एक सप्ताह के भीतर ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नकारते हुए अध्यादेश पारित कर दिया. इसने एलजी को दिल्ली का प्रशासक नियुक्त किया, जो दिल्ली में नौकरशाहों की नियुक्ति में फाइनल फैसला लेता है. इसने राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) की भी स्थापना की, जिसमें दिल्ली के सीएम और केंद्र द्वारा नियुक्त दो अधिकारी – दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव शामिल हैं.

    About The Author


    Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

    Advertising Space


    स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

    Donate Now

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Copyright © All rights reserved for Samachar Wani | The India News by Newsreach.
    5:26 PM