बुध वक्री होने के पीछे का विज्ञान क्या है? 5 अगस्त से बदल रही सबसे छोटे ग्रह की चाल!बुध वक्री होने के पीछे का विज्ञान क्या है? 5 अगस्त से बदल रही सबसे छोटे ग्रह की चाल!
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ज्योतिष में बुध की वक्री चाल को तमाम समस्याओं की वजह माना जाता है. इलेक्ट्रॉनिक्स में गड़बड़ी से लेकर उड़ानों में देरी, जीवनसाथी से झगड़ा और न जाने क्या-क्या. हर साल में कुछ बार बुध वक्री होता है. इस साल 5 अगस्त से 27 अगस्त के बीच बुध वक्री होगा. बुध हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा और सूर्य का सबसे करीबी ग्रह है. यह आकार में पृथ्वी के लगभग एक तिहाई हिस्से के बराबर है. भला इतनी छोटी चीज, वह भी इतनी दूर से इतना कहर कैसे बरपा सकती है? समझिए बुध वक्री होने के पीछे का विज्ञान.
‘बुध वक्री’ होने का मतलब?
बुध वक्री’ होने का मतलब पृथ्वी से देखे जाने पर ग्रह की पीछे की ओर गति से है. यानी वक्री होने पर बुध उल्टा चलता है.
बुध वक्री: क्या सच में ऐसा होता है?
एक शब्द में जवाब दें तो ‘नहीं’. पृथ्वी से देखने पर तारे रात भर एक ही दिशा में घूमते नजर आते हैं. ऐसे में सोचिए, बिना किसी टेलीस्कोप के इंसानों के लिए यह देखना कितना मुश्किल रहा होगा कि कोई चीज गलत दिशा में जा रही है. ‘बुध वक्री’ के मामले में भी ऐसा ही है.
बुध की वक्री चाल का विज्ञान
बुध की वक्री चाल असल में बेहद पूर्वानुमानित ब्रह्मांडीय घटना है. इस दौरान ग्रह वास्तव में पीछे की ओर नहीं बढ़ रहा होता, बल्कि हमें ऐसा लगता है. यह एक तरह का ऑप्टिकल इलूजन है. साल में अलग-अलग समय पर कुछ ग्रह, अन्य ग्रहों के पास से गुजरते हैं, जिससे ऐसा भ्रम पैदा होता है कि कोई ग्रह उल्टी दिशा में जा रहा है.
कैसे पता चलेगी बुध की वक्री चाल?
केपलर का तीसरा नियम कहता है कि कोई ग्रह सूर्य से जितना दूर होगा, वह अपनी कक्षा में उतना ही धीमा चलेगा. चूंकि बुध सूर्य के सबसे नजदीक है, यह सिर्फ 88 दिनों में परिक्रमा पूरी कर लेता है, जबकि पृथ्वी को 365 दिन और वरुण ग्रह यानी नेपच्यून को 60,000 से ज्यादा दिन लग जाते हैं. हमारे नजरिए से बुध आकाश में तेज रफ्तार आगे बढ़ता हुआ नहीं दिखेगा. उसकी उल्टी चाल को देखने के लिए, आपको हर रात अन्य तारों की तुलना में इसकी स्थिति पर ध्यान से नजर रखनी होगी.
ग्रहों की वक्री चाल
भ्रम को सही मानेंगे तो सौरमंडल के हर ग्रह की वक्री गति होती है. यानी रात के समय में, कभी न कभी हर ग्रह हमें उल्टा चलता हुआ नजर आएगा. वक्री गति वास्तव में इस तथ्य का नतीजा है कि हर ग्रह – बुध से लेकर वरुण तक – अपनी कक्षा में अलग गति से घूमता है.
ज्योतिष और विज्ञान
आज से कोई छह शताब्दी पहले तक, ज्योतिष और खगोल विज्ञान के कमोबेश एक ही मायने थे. आधुनिक विज्ञान की प्रगति ने दोनों के फर्क को साफ जाहिर कर दिया है. ब्रह्मांड का वैज्ञानिक अध्ययन अब खगोल विज्ञान कहलाता है, मगर ज्योतिष विज्ञान के कठोर पैमाने पर खरा नहीं उतरता.
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