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    April 20, 2025

    क्या है 72000 करोड़ का ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट, जिसे रद्द करवाना चाहती है कांग्रेस?

    1 min read
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    इस प्रोजेक्ट में ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट, पावर प्लांट और टाउनशिप बनाने की प्लानिंग है. इस प्रोजेक्ट को ‘होलिस्टिक डेलेपमेंट ऑफ ग्रेट निकोबार आइलैंड एट अंडमान एंड निकोबार आइलैंड्स’ का नाम दिया गया.

    मार्च 2021 की बात है. नीति आयोग ने 72000 करोड़ रुपये का एक प्रोजेक्ट पेश किया, जिसमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के ‘विकास’ का खाका पेश किया गया. इसमें ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट, पावर प्लांट और टाउनशिप बनाने की प्लानिंग है. इस प्रोजेक्ट को ‘होलिस्टिक डेलेपमेंट ऑफ ग्रेट निकोबार आइलैंड एट अंडमान एंड निकोबार आइलैंड्स’ का नाम दिया गया.

    इसे लागू करने का कामकाज सरकारी कंपनी अंडमान एंड निकोबार आइलैंड इंटीग्रेटेड डेवेलपमेंट कॉरपोरेशन (ANIIDCO) को दिया गया. लेकिन अब इस प्रोजेक्ट को लेकर सवाल उठने लगे हैं.

    कांग्रेस ने किया विरोध, उठाए सवाल
    इसी महीने की 17 जून को कांग्रेस ने मांग उठाई कि ग्रेट निकोबार आइलैंड में नीति आयोग के मेगा प्रोजेक्ट को जो भी मंजूरी दी गई है, उसे तुरंत प्रभाव से रद्द किया जाए. कांग्रेस पार्टी का कहना है कि इसमें आदिवासी समुदायों और पर्यावरण की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों, कानूनों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया है. कांग्रेस ने कहा कि इस प्रस्तावित प्रोजेक्ट का पारदर्शी तरीके से संसद की संसदीय कमेटी से रिव्यू कराया जाना चाहिए.

    साल 2024 के चुनावी मेनिफेस्टो में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) ने वादा किया था कि वह पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली और पर्यावरण के लिए खतरनाक इस योजना को रद्द कर देगी. इतना ही नहीं, ट्राइबल काउंसिल ऑफ ग्रेट निकोबार एंड लिटिल निकोबार के अलावा कई पर्यावरण के जानकार, वन्यजीव संरक्षणवादी भी इस प्रोजेक्ट का विरोध कर चुके हैं.

    ग्रेट निकोबार कहां हैं और कौन से समुदाय वहां रहते हैं?
    ग्रेट निकोबार आइलैंड भारत के सबसे दक्षिणी छोर पर है और यह अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का हिस्सा है, जिसमें 600 द्वीप हैं. यह पहाड़ी इलाका हरे-भरे वर्षावनों का घर है, जहां हर साल 3500 मिलीमीटर बारिश होती है. इतना ही नहीं ये जंगली इलाका और बीच कई दुर्लभ प्रजातियों का आशियाना है, जिसमें विशाल लेदरबैक कछुआ भी शामिल है. इसका क्षेत्रफल 910 वर्ग किमी है और इसके तट पर मैंग्रोव और पांडन वन हैं.

    इस द्वीप पर दो आदिवासी समुदाय रहते हैं- शोमपेन और निकोबारी. शोमपेन की आबादी कुल 250 लोगों की है और ये जंगलों के बहुत अंदर रहते हैं और बाकी दुनिया से इनका कोई नाता नहीं है. ये शिकार करके अपना पेट पालते हैं और इनको हिंसक आदिवासी समूह माना जाता है और अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है.

    वहां का भूगोल क्या है?
    जबकि निकोबारी समुदाय खेती और मछली पकड़ने का काम करते हैं. इनमें भी दो ग्रुप हैं- ग्रेट निकोबारी और दूसरा लिटिल निकोबारी. इन लोगों की शोमपेन की तरह अपनी अलग भाषा है. साल 2004 में सुनामी आने से पहले तक ग्रेट निकोबारी द्वीप के साउथ ईस्ट और वेस्ट तट पर रहते थे. इसके बाद सरकार ने उनका कैंपबेल बे में पुनर्वास कराया. आज 450 ग्रेट निकोबारी द्वीप पर रहते हैं. जबकि लिटिल निकोबारी की संख्या करीब 850 के आसपास है और ये ग्रेट निकोबार में आफरा खाड़ी में रहते हैं. कुछ पुलोमिलो और लिटिल निकोबार में रहते हैं.

    ग्रेट निकोबार में अधिकतर लोग वही हैं जो मेनलैंड इंडिया से आकर यहां बसाए गए. साल 1968 से लेकर 1975 तक भारत सरकार ने पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु से मिलिट्री से रिटायर हुए लोगों और उनके परिवारों को यहां बसाया. करीब 330 लोगों को द्वीप के पूर्वी तटों पर बसे सात गांवों में 15 एकड़ जमीन दी गई. ये सात गांव थे- कैंपबेल बे, गोविंदनगर, जोगिंदरनगर, विजयनगर, लक्ष्मी नगर, गांधी नगर.

    कैंपबेल बे एक प्रशासनिक हब है, जिसमें अंडमान निकोबार प्रशासन और पंचायत के स्थानीय लोग रहते हैं. यहां इंजीनियर, टीचर, मछुआरे, बिजनेसमैन और प्रशासनिक लोग भी रहते हैं. साल 2004 की सुनामी के बाद कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्टर्स भी यहां आकर बस गए. द्वीप पर आज आबादी करीब 6000 लोगों की है.

    नीति आयोग का प्रोजेक्ट क्या कहता है?
    जिस प्रस्तावित बंदरगाह की बात प्रोजेक्ट में की गई है, उससे क्षेत्रीय और वैश्विक मैरिटाइम इकोनॉमी में ग्रेट निकोबार की हिस्सेदारी बढ़ेगी और वह कार्गो शिपमेंट में एक बड़ा प्लेयर बनकर उभरेगा. एयरपोर्ट के बनने से मैरिटाइम सर्विसेज को ग्रोथ मिलेगी और ग्रेट निकोबार आइलैंड से देशी और विदेशी पर्यटकों की आवाजाही बढ़ेगी, जिससे टूरिज्म को बूस्ट मिलेगा. हालांकि नीति आयोग ने इस प्रोजेक्ट को इसके मौजूदा स्वरूप में पेश किया है. ग्रेट निकोबार में बंदरगाह बनाने की योजना साल 1970 से चल रही है, जब ट्रेड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, जो अब इंडिया ट्रेड प्रोमोशन ऑर्गनाइजेशन है, उसने टेक्नो-इकोनॉमी रूप से व्यवहारिक स्टडी कराई. इसका मकसद दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग (मलक्का जलडमरूमध्य) के करीब एक बंदरगाह बनाना था, जिससे दुनिया के समुद्री व्यापार में उसकी हिस्सेदारी बढ़ सके.

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