क्या है ‘डार्क नेट’, जिस पर लीक हुआ NEET एग्जाम का पेपर?
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देश के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि नीट और यूजीसी नेट का पेपर डार्क नेट पर लीक किया गया है. लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि आखिर डार्क नेट क्या होता है, और यहां पेपर लीक करने वाले अपराधी आसानी से पकड़े क्यों नहीं जाते?
भारत में हर साल लाखों छात्र किसी ना किसी कॉम्पिटिटिव परीक्षा की तैयारी करते हैं, ताकि वे उसमें सफलता हासिल करते अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें. कई परीक्षाएं तो इतनी कठिन हैं कि जिनके लिए छात्रों को दो से तीन साल तक भी तैयारी करनी पड़ती है. लेकिन समाज में कुछ लोग ऐसे हैं, जो कुछ घंटों के अंदर ही इन परीक्षाओं के पेपर लीक कर देते हैं और छात्रों की सालों की मेहनत बर्बाद हो जाती है.
भारत में हर साल लाखों छात्र किसी ना किसी कॉम्पिटिटिव परीक्षा की तैयारी करते हैं, ताकि वे उसमें सफलता हासिल करते अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें. कई परीक्षाएं तो इतनी कठिन हैं कि जिनके लिए छात्रों को दो से तीन साल तक भी तैयारी करनी पड़ती है. लेकिन समाज में कुछ लोग ऐसे हैं, जो कुछ घंटों के अंदर ही इन परीक्षाओं के पेपर लीक कर देते हैं और छात्रों की सालों की मेहनत बर्बाद हो जाती है.
दरअसल, पिछले कुछ समय से देश की कई बड़ी परीक्षाओं के पेपर लीक हो चुके हैं. हाल ही में नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) का पेपर लीक हुआ था, जिसको लेकर पूरे देशभर के छात्रों में आक्रोश देखने को मिला. वहीं, नीट का मामला अभी थमा भी नहीं था कि यूजीसी नेट (UGC NET) का पेपर भी लीक हो गया, जिससे लाखों छात्रों का भविष्य अंधकार में चला गया है.
इन परीक्षाओं के पेपर लीक मामले पर देश के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि ये पेपर डार्ट नेट (Dark Net) पर लीक हुए थे. अब सवाल यह आता है कि आखिर यह डार्ट नेट क्या है, जिस पर पेपर लीक होने के बाद अपराधियों का पता नहीं लग पाता है? वहीं, इसी का फायदा उठा कर स्कैमर लगातार देश की कई बड़ी परीक्षाओं के पेपर लीक कर रहे हैं.
क्या होता है Dark Net?
दरअसल, डार्क नेट इंटरनेट का वो हिस्सा है, जहां वैध या अवैध, हर तरीके के काम को अंजाम दिया जाता है. आपको जानकार काफी हैरानी होगी कि इंटरनेट का जितना हिस्सा हम लोग इस्तेमाल करते हैं, वह केवल 4% है, जिसे सरफेस वेब (Surface Web) कहा जाता है. जबकि, इंटरनेट का 96% हिस्सा डार्क वेब (Dark Web) या डीप वेब (Deep Web) के अंदर आता है. यहां मौजूद किसी भी कंटेंट को एक्सेस करने के लिए पासवर्ड की जरूरत पड़ती है.
यहां अवैध कामों को दिया जाता है अंजाम
साइबर एक्सपर्ट डार्क वेब को ओपन करने के लिए टॉर ब्राउजर का इस्तेमाल करते हैं. डार्क वेब का खासकर इस्तेमाल अवैध कामों को करने के लिए किया जाता है. यहां केवल पेपर ही लीक नहीं होते, बल्कि यहां ड्रग्स, हथियार की तस्करी, किसी की सुपारी देना, कॉन्फिडेंशन पासवर्ड और डॉक्यूमेंट शेयर करना, यहां तक कि चाईल्ड पॉर्न शेयर करने जैसे अवैधे कामों को अंजाम दिया जाता है. डार्क वेब पर मौजूद स्कैमर्स बेहद सस्ते में उन चीजों को बेच देते हैं, जो ओपन मार्केट में बैन होती हैं.
इस टेक्नोलॉजी के कारण बच जाते हैं स्कैमर्स
वहीं, बात करें कि आखिर यहां अवैध काम करने वाले लोग अक्सर क्यों नहीं पकड़े जाते, तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है वो टेक्नोलॉजी, जिस पर पूरा डार्क वेक काम करता है. दरअसल, डार्क वेब ओनियन राउटिंग टेक्नोलॉजी पर काम करता है. ये टेक्नोलॉजी यूजर्स को ट्रैकिंग और सर्विलांस से बचाती है. इसके अलावा यह टेक्नोलॉजी यूजर की गोपनीयता भी बरकरार रखने के लिए रूट और री-रूट करती है. अगर आसान भाषा में समझाएं, तो डार्क वेब बहुत सारे आईपी एड्रेस से कनेक्ट और डिस्कनेक्ट होता है, जिससे यूजर को ट्रैक कर पाना काफी मुश्किल होता है. इसके अलावा यहां पर की जाने वाली डीलिंग के लिए वर्चुअल करेंसी जैसे बिटकॉइन का इस्तेमाल किया जाता है. जिससे इन्हें पकड़ पाना मुश्किल होता है.
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