क्या है संविधान का आर्टिकल 361? जिसके तहत राज्यपालों को आपराधिक मुकदमों से मिलती है छूट, जान लीजिए एक-एक बात.
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पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर राजभवन की एक महिला कर्मचारी के आरोपों के बाद घमासान सुप्रीम कोर्ट तक आ पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में राज्यपालों को आपराधिक मुकदमों से छूट देने वाले अनुच्छेद 361 की समीक्षा करने पर तैयार हो गया है. अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी.
पश्चिम बंगाल राजभवन में संविदा पर काम कर रही एक महिला कर्मचारी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 361 के प्रावधानों की समीक्षा करने के लिए तैयार हो गया है. ये अनुच्छेद राज्यपालों को किसी भी तरह के आपराधिक मुकदमे से ‘पूरी छूट’ प्रदान करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 12अगस्त की तारीख दी है.
सुप्रीम कोर्ट के कदम से चर्चा में है संविधान का अनुच्छेद 361
सुप्रीम कोर्ट के इस कदम के बाद से संविधान का अनुच्छेद 361 चर्चा में है. पश्चिम बंगाल में राजभवन की महिला कर्मचारी द्वारा राज्यपाल सी वी आनंद बोस पर छेड़छाड़ और वहां तैनात अधिकारियों द्वारा गलत तरीके से बंधक बनाए रखने का आरोप लगाया था. इन गंभीर आरोपों को राज्यपाल ने “इंजीनियर्ड नैरेटिव” बताते हुए खारिज कर दिया था. इस अनुच्छेद के कारण ही राज्यपाल को छूट मिली तो महिला शिकायत लेकर आगे बढ़ी.
लोकसभा चुनाव के दौरान इस घटनाक्रम से राजनीतिक टकराव
हालांकि, लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान सामने आए इस घटनाक्रम से राजनीतिक टकराव शुरू हो गया था. तृणमूल कांग्रेस शासित पश्चिम बंगाल सरकार और राजभवन के बीच मतभेद और गहरे हो गए थे. बंगाल की मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने राज्यपाल पर “महिलाओं का अपमान” करने का आरोप लगाया था. चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजभवन, कोलकाता में रुकने के कार्यक्रम पर भी उंगलियां उठाई गई थी.
राज्यपालों को आपराधिक मुकदमों से इम्यूनिटी देता है अनुच्छेद 361
राजभवन कर्मचारी के बयानों के आधार पर कोलकाता पुलिस ने शिकायत दर्ज की थी. हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत प्रदान की गई छूट के कारण पुलिस इस मामले में राज्यपाल सीवी आनंद बोस का नाम नहीं ले सकती है. इसके बाद महिला याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर पहुंची थी. आइए, जानते हैं कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361 क्या है, उसके प्रावधान क्या-क्या हैं और यह कैसे राज्यपालों को आपराधिक मुकदमों से इम्यूनिटी देता है?
अनुच्छेद 361 क्या है?
भारत के संविधान का अनुच्छेद 361 भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल को दी गई छूट से संबंधित है. यह उन्हें आपराधिक कार्यवाही और गिरफ्तारी से बचाता है. इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल “अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन के लिए या उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन में उनके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी कार्य के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे.”
अनुच्छेद 361 में दो उप-खंड क्या कहते हैं?
इसके अलावा, अनुच्छेद 361 में दो उप-खंड हैं जो कहते हैं कि 1. राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं की जाएगी, और 2. गिरफ्तारी के लिए कोई प्रक्रिया नहीं होगी. राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल को उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई कानूनी कार्यवाही नहीं चल सकती. यानी उनके पद पर रहते हुए न तो उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हो सकता है और न ही किसी अदालत में आपराधिक कार्यवाही चल सकती है.
सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते सीनियर वकीलों ने क्या बताया?
सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक सीनियर वकील ने कहा, “अनुच्छेद 361(2) में कहा गया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के खिलाफ अदालत में आपराधिक मामला शुरू नहीं किया जा सकता है. लेकिन, पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की जाती है. इसलिए, तकनीकी रूप से, पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है और जांच कर सकती है.”
एक अन्य वकील ने बताया, “संविधान के अनुच्छेद 361 के अनुसार, राज्यपाल और राष्ट्रपति को अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए अदालत में किसी भी बात का जवाब देने से छूट प्राप्त है. इसलिए, यह कानून का एक साफ-सुथरा सवाल है जिस पर अभी तक निर्णय नहीं लिया गया है कि क्या प्रतिरक्षा खंड में उन कर्तव्यों के अलावा कुछ भी शामिल है.”
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही मामले में पहले क्या कहा था?
रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने ऐतिहासिक रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ मामले में साल 2006 में संविधान द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों को प्रदान की गई छूट को बरकरार रखा है और कहा है कि “कानून में स्थिति यह है कि राज्यपाल को पूर्ण छूट प्राप्त है.” सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था, “राज्यपाल अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन के लिए या उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन में उनके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं.”
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