रूस-यूक्रेन जंग पर संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग, भारत ने किस तरफ किया मतदान?
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भारत ने पहले भी ऐसे प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया है और इस बार भी अपनी स्थायी नीति के तहत ऐसा ही किया है. भारत का मानना है कि यह युद्ध सैन्य समाधान की बजाय कूटनीति और बातचीत से सुलझाया जाना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस-यूक्रेन युद्ध के तीन साल पूरे होने पर दो अलग-अलग प्रस्तावों पर मतदान हुआ जिनमें से एक अमेरिका द्वारा और दूसरा यूरोपीय देशों और यूक्रेन द्वारा पेश किया गया था. दोनों प्रस्तावों को 93 देशों के समर्थन से मंजूरी मिल गई लेकिन भारत ने मतदान से दूरी बनाए रखी. खास बात यह रही कि अमेरिका ने खुद एक प्रस्ताव पेश किया था. उसने भी खुद अपने ही प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया.
असल में यूरोप समर्थित प्रस्ताव में रूस से अपनी सेनाओं को यूक्रेन से तुरंत हटाने की मांग की गई थी जबकि अमेरिका के प्रस्ताव में युद्ध को जल्द समाप्त करने पर जोर दिया गया था. यूरोपीय देशों ने अमेरिकी प्रस्ताव में कुछ संशोधन जोड़े. इसमें रूस-यूक्रेन संघर्ष को रूसी संघ द्वारा यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण के रूप में परिभाषित किया गया. इसमें यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता को फिर से स्थापित करने पर भी जोर दिया गया था. इन संशोधनों के चलते ही शायद भारत को भी मतदान से दूरी बनानी पड़ी.
मतदान से भारत दूर क्यों?
भारत ने पहले भी ऐसे प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया है और इस बार भी अपनी स्थायी नीति के तहत खुद को मतदान से अलग रखा. भारत का मानना है कि यह युद्ध सैन्य समाधान की बजाय कूटनीति और बातचीत से सुलझाया जाना चाहिए. इसी कारण भारत ने यूरोपीय देशों द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर भी मतदान से दूरी बनाए रखी. जिसमें रूस की निंदा करते हुए उसकी सेना को तुरंत यूक्रेन से वापस बुलाने की मांग की गई थी.
मतदान के परिणाम US के लिए झटका
इस मतदान के परिणामों को अमेरिका के लिए झटका माना जा रहा है. क्योंकि उसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूरोपीय देशों के मुकाबले कम समर्थन मिला. अब अमेरिका सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर समर्थन जुटाने की कोशिश करेगा जहां उसे उम्मीद है कि फ्रांस और ब्रिटेन वीटो का इस्तेमाल नहीं करेंगे. संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते लेकिन वे वैश्विक जनमत का संकेत देते हैं. इससे पहले हुए मतदानों में 140 से अधिक देशों ने रूस के हमले की निंदा की थी.
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