मंकी के नाम से चिढ़ाते, अब पैरालंपिक में मेडल जीतकर रचा इतिहास… कौन हैं दीप्ति?
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भारत की पैरालंपिक एथलीट दीप्ति जीवनजी ने पेरिस में पैरालंपिक में इतिहास रच दिया है। दीप्ति ने महिलाओं की 400 मीटर टी0 स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। दीप्ति ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की पहली एथलीट बन गई हैं।
पेरिस पैरालिंपिक 2024 का छठा दिन भारत के लिए ऐतिहासिक रहा। 3 सितंबर को, भारतीय एथलीटों ने पांच पदक जीतकर टोक्यो ओलंपिक रिकॉर्ड तोड़ दिया। भारत ने पेरिस पैरालंपिक में अब तक 21 पदक जीते हैं। पैरालंपिक इतिहास में यह भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. भारत के इस ऐतिहासिक प्रदर्शन में तेलंगाना की दीप्ति जीवनजी ने अहम भूमिका निभाई है. दीप्ति ने महिलाओं की 400 मीटर टी0 स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। यह श्रेणी मानसिक रूप से विकलांग खिलाड़ियों के लिए आरक्षित है। दीप्ति ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की पहली एथलीट बन गई हैं। 20 साल की दीप्ति ने 55.82 सेकेंड में रेस पूरी की. वह महज 0.66 सेकंड से पहले स्थान से चूक गईं।
दीप्ति की प्रेरक यात्रा
दीप्ति का ओलंपिक पदक तक का सफर बेहद कठिन रहा है. दीप्ति मूल रूप से आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के कलेडा गांव की रहने वाली हैं। दीप्ति जन्म से ही मानसिक रूप से विकलांग थी। उसे अपनी योग्यता साबित करने के लिए न केवल अपनी मानसिक बीमारी से बल्कि समाज से भी लड़ना पड़ा।
चूंकि दीप्ति मानसिक रूप से बीमार थी, इसलिए उसके लिए बोलना या काम करना मुश्किल था। दीप्ति का सिर छोटा था, उसके होंठ और नाक सामान्य बच्चों से अलग थे, इसलिए उसे न केवल गांव के लोग बल्कि उसके रिश्तेदार भी चिढ़ाते थे। उन्होंने सलाह दी, ‘हमारे कई रिश्तेदार और गांव वाले दीप्ति को मंदबुद्धि और बंदरिया कहते थे, इसे अनाथालय में छोड़ दो।’ आज उसकी सफलता देखकर दीप्ति की मां को लगता है कि वह वाकई एक खास लड़की है। दीप्ति की मां धनलक्ष्मी जीवनजी ने कहा है कि आज हमारे लिए बहुत खुशी का दिन है.
संघर्षमय जीवन
दीप्ति की मां धनलक्ष्मी ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. दीप्ति के दादाजी की मृत्यु के बाद खेती की ज़मीन बेचनी पड़ी। दीप्ति के पिता प्रतिदिन 100 से 150 रुपये कमाते थे। ऐसे में पूरे परिवार के लिए दो वक्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो गया था। परिवार को सहारा देने के लिए दीप्ति की मां ने भी मजदूरी करना शुरू कर दिया। दीप्ति बचपन से ही शांत स्वभाव की थीं। गांव के लड़के उसके लुक के कारण उसे चिढ़ाते थे। दीप्ति की मां ने बताया कि उस वक्त वह घर आकर खूब रोती थीं।
पैरालिंपिक की यात्रा?
दीप्ति बचपन से ही खेलों में प्रतिभावान थीं। 15 साल की उम्र में भारतीय खेल प्राधिकरण के कोच एन रमेश की नजर उन पर पड़ी। उन्होंने उसकी प्रतिभा को पहचाना और दीपली को प्रशिक्षण देना शुरू किया। आख़िरकार एन रमेश की मेहनत रंग लाई. दीप्ति ने 2022 एशियाई पैरा गेम्स में स्वर्ण पदक जीता है। इस प्रतियोगिता में उन्होंने एशियाई रिकॉर्ड भी तोड़ा. दीप्ति ने 2024 में आयोजित विश्व पैरा एथलेटिक्स में चैंपियन का खिताब भी जीता। अब दीप्ति ने पेरिस पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया है।
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