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    April 22, 2025

    आसान भाषा में समझ‍िए क्‍या है यूएस और सऊदी अरब की पेट्रोडॉलर डील, र‍िन्‍यू नहीं होने से क्‍या होगा असर?

    1 min read
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    पेट्रोडॉलर डील के तहत अमेर‍िका और सऊदी अरब के बीच 50‍ साल पहले एक करार क‍िया गया था. अगर यह डील र‍िन्‍यू नहीं होती तो इसका असर आने वाले समय में ग्‍लोबल मार्केट पर भी देखने को म‍िल सकता है.

    अमेरिका और सऊदी अरब के बीच चली आ रही पेट्रोडॉलर डील (Petrodollar Deal) पूरी हो गई है. हाल ही में मीड‍िया में आई कुछ खबरों में ऐसा दावा क‍िया जा रहा है. बताया जा रहा है क‍ि दोनों देशों के बीच प‍िछले 50 साल से चली आ रही यह डील जून 2024 में पूरी हो गई, इसे जून 1974 में लागू क‍िया गया था. मीडिया र‍िपोर्ट में यह भी दावा क‍िया गया क‍ि सऊदी अरब ने पेट्रोडॉलर करार (Petrodollar Deal) को र‍िन्‍यू करने से इनकार कर द‍िया है, यह चिंता का एक बड़ा कारण बन गया है.

    क्‍या है पेट्रोडॉलर डील?
    इस करार के तहत सऊदी अरब जैसे बड़े तेल उत्पादक देश को क्रूड ऑयल सिर्फ अमेरिकी डॉलर में ही बेचना था. अब यह करार आगे नहीं बढ़ पाने से वैश्‍व‍िक वित्तीय बाजार में इस बात को लेकर चिंता है कि डॉलर की स्थिति कमजोर हो सकती है. इसका असर आने वाले समय में दूसरे मार्केट पर भी पड़ेगा. सहयोगी चैनल जी ब‍िजनेस के अनुसार इस करार के तहत सऊदी अरब अमेरिका को तेल अमेरिकी डॉलर (USD) में बेचने के लिए सहमत हुआ था. बदले में अमेरिका की तरफ से उसे सैन्य सहायता और हथियार द‍िये जाते थे. ‘पेट्रोडॉलर’ का मतलब है वो डॉलर जो तेल बेचने वाले देशों जैसे सऊदी अरब को तेल का व्यापार करने से मिलते हैं.

    क्‍यों क‍िया गया था करार?
    सऊदी अरब ने यह करार 1970 के दशक में मुख्य रूप से ईरान और अन्य देशों से सुरक्षा हासिल करने के लिए किया था. उस समय अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बढ़ रहा था. सऊदी अरब को यह डर था क‍ि ईरान उस पर हमला कर सकता है. इस हालात में अमेरिका ने सऊदी अरब को सुरक्षा देने के बदले तेल की केवल अमेरिकी डॉलर में ब‍िक्री पर सहमति बनाई. इसके बाद यूएस डॉलर ग्‍लोबल मार्केट में प्रमुख मुद्रा बन गया.

    डॉलर के अलावा दूसरी करेंसी में भी होगी ब‍िक्री
    ऐसे में इस करार के पूरा होने के बाद सऊदी अरब को सिर्फ अमेरिकी डॉलर में ही तेल बेचने की बाध्यता नहीं है. सऊदी अरब अब अपनी पसंद से किसी भी मुद्रा में तेल बेच सकता है. खास बात यह है क‍ि अब सऊदी अरब सिर्फ अमेरिकी डॉलर के अलावा चीनी युआन, जापानी येन, भारतीय रुपया और यूरो जैसी अलग-अलग मुद्रा में तेल की ब‍िक्री करेगा.

    इस बात को 2016 तक छ‍िपाकर रखा गया
    यूबीएस ग्लोबल वेल्थ मैनेजमेंट के चीफ इकोनॉम‍िस्‍ट पॉल डोनोवन (Paul Donovan) ने एक ब्लॉग पोस्ट में बताया कि अमेरिका और सऊदी अरब ने जून 1974 में आर्थिक सहयोग के लिए ज्‍वाइंट कमीशन की स्थापना की थी. इसका मकसद सऊदी अरब को अचानक मिलने वाले ढेर सारे डॉलर को अमेरिकी उत्पादों पर खर्च करने में मदद करना था. उसी साल जुलाई में सऊदी अरब अमेरिकी ट्रेजरी बिल (सरकारी बॉन्ड) में अपने तेल से कमाए डॉलर निवेश करने के लिए सहमत हुआ. इस बात को 2016 तक छ‍िपाकर रखा गया था.

    पॉल डोनोवन ने यह भी कहा क‍ि ऑयल हमेशा नॉन-डॉलर करेंसी में बेचा जाता रहा है. जनवरी 2023 में सऊदी अरब ने संकेत दिया था कि वह दूसरी मुद्राओं में तेल बेचने के लिए बात करने के ल‍िए तैयार है. इससे फाइनेंश‍ियल मार्केट में बहुत कम असर पड़ेगा. सऊदी अरब की मुद्रा रियाल अभी भी डॉलर से जुड़ी हुई है और उसकी वित्तीय संपत्ति ज्यादातर डॉलर में ही है. डॉलर की वैश्‍व‍िक आरक्षित मुद्रा की स्थिति इस पर निर्भर करती है कि पैसा कैसे जमा किया जाता है न क‍ि लेनदेन किस मुद्रा में क‍िया जाता है.

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