आज मेडलिस्ट के पास जॉब नहीं है… यह कहते हुए भावुक हो गए बैडमिंटन के द्रोणाचार्य।
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आज के दौर में खेल जगत सागर है. करोड़ों युवा खेल जगत में बुलंदियों को छूने के सपने देखते हैं. जिसमें से कुछ खिलाड़ी जीरो से हीरो बन जाते हैं तो कई बेताज बादशाह की तरह इस सागर में डूब जाते हैं. बैडमिंटन हेड कोच पुलेला गोपीचंद ने खेल के सागर की कड़वी हकीकत सभी के सामने रख दी है. कहानी बताते हुए उनके आंखों में आंसू भी आ गए.
आज के दौर में खेल जगत सागर है. करोड़ों युवा खेल जगत में बुलंदियों को छूने के सपने देखते हैं. जिसमें से कुछ खिलाड़ी जीरो से हीरो बन जाते हैं तो कई बेताज बादशाह की तरह इस सागर में डूब जाते हैं. बैडमिंटन हेड कोच पुलेला गोपीचंद ने खेल के सागर की कड़वी हकीकत सभी के सामने रख दी है. कहानी बताते हुए उनके आंखों में आंसू भी आ गए. उन्होंने भारत में बच्चों को यह स्पष्ट सलाह दे दी कि वे खेलों में तभी अपना करियर बनाएं जब उनका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न हो. उन्होंने कहा कई ऐसे मेडलिस्ट हैं जिनके पास आज नौकरी नहीं है.
कैसा है खेल का भविष्य?
एएनआई के साथ एक विशेष साक्षात्कार में गोपीचंद ने खेल जगत की सच्चाई साफ कर दी. उन्होंने कहा, ‘मैं खिलाड़ियों को दिन-प्रतिदिन असफल होते देखता हूं. मेरा दिल उनके लिए दुखी है. आज, जब मैं राष्ट्रीय चैंपियनों को देखता हूं, जब मैं राष्ट्रमंडल पदक विजेताओं को देखता हूं, जब मैं एशियाई खेलों के पदक विजेताओं को देखता हूं इन सभी के पास नौकरी नहीं है. मुझे दुख होता है कि उनका भविष्य क्या है? लेकिन मुझे पता है कि सौ लोगों में से कोई एक सफल हो सकता है. तो सुरक्षा जाल कहां है? और मुझे बस इसी बात की चिंता है.
नौकरियां जवाब नहीं…
उन्होंने आगे कहा, ‘नौकरियां इसका जवाब नहीं हैं. उन्हें कौशल प्रदान करें, उन्हें शिक्षित करें, उनका मार्गदर्शन करें. उन्होंने खेल के वर्षों से परे स्थायी करियर योजना की आवश्यकता पर बल दिया. क्योंकि लोग थोड़े समय के लिए आते हैं. उनका विचार अगला ओलंपिक है. उनका विचार छोटा, छोटा, छोटा है और यह एक लंबा मुद्दा है. इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है. 35 की उम्र में, जब आप सभी एक ही उम्र के होते हैं तो आप शायद उनसे बेहतर होते हैं. आपके पास उनसे बड़ी कार होती है, इससे कोई नुकसान नहीं होता. लेकिन 50 की उम्र में, जब आप अपने बच्चे से कहते हैं, मैं एक ओलंपियन हूं तो वह कहता है, आप किस बारे में बात कर रहे हो? आपने कुछ भी नहीं कमाया. तुम्हारे पास कोई सम्मान नहीं है. तुम्हारा अधिकारी तुम्हें बुलाता है, सर, मैं क्या करूं? हर बार जब आपको… किसी अधिकारी के साथ ऐसा करना पड़ता है तो इससे तुम्हें दुख होता है और यह दुख अगली पीढ़ी को खेल में शामिल होने से रोकेगा.
कैसा रहा गोपीचंद का करियर?
गोपीचंद 2001 में ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतकर अपने खेल के शिखर पर पहुँच चुके हैं. उन्होंने साइना नेहवाल और पीवी सिंधु जैसी स्टार खिलाड़ियों को ओलंपिक के लिए तैयार किया है. वे जानते हैं कि भारत में खेल में सफल होने के लिए क्या करना पड़ता है. लेकिन अब उन्होंने अपने बयान से युवाओं के लिए खेल में करियर बनाने के लिए एक सवालिया निशान छोड़ दिया है.
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