शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन आज, शास्त्रों से जानें मां कूष्मांडा की कथा और पूजा का महत्व।
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शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर 2023 से हो चुकी है और आज चौथी देवी मां कूष्मांडा की पूजा होगी , धार्मिक ग्रंथों के जानकार अंशुल पांडे से जानते और समझते हैं, मां कूष्मांडा की कथा और पूजन का महत्व।
चौथा दिवस:– मां कूष्मांडा
शारदीय नवरात्रि में चौथे दिवस की अधिष्ठात्री देवी कूष्मांडा हैं. नवदुर्गा ग्रंथ (एक प्रतिष्ठित प्रकाशन) के अनुसार इनकी आठ भुजाएं हैं, जिनमें इन्होंने कमण्डल, धनुष–बाण, कमल अमृत कलश चक्र और गदा धारण कर रखा है , इन अष्टभुजा माता के आठवें हाथ में सिद्धियों और निधियों की जप माला है और इनकी सवारी भी सिंह है।
ये स्रुष्टि का निर्माण करनेवाली देवी हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं था तब कूष्मांडा देवी ने अपनी हंसी से इस सृष्टि का निर्माण किया था, कुष्मांडा कुम्हड़े (Pumpkin) को भी कहते हैं. देवी को कुम्हड़े की बलि अति प्रिय है. इनका मंत्र निम्नलिखित है ।
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु।।
मां कूष्मांडा का दैदिप्यमान तेज इन्हें सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता देता है , इतना तेज और किसी मे नहीं ये अतुलनीय हैं ,समस्त दिशाएं एवं ब्रह्मांड इनके प्रभामण्डल से प्रभावित है , मनुष्य इनकी आराधना से हर प्रकार की पीड़ा दुख और कष्टों से मुक्ति पाता है , रातदिन इनकी उपासना से व्यक्ति स्वयं ही इनकी आभा को अनुभव कर सकता है , वह हमें सुख समृद्धि और यश दिलाता है।
माता अपने भक्त की आराधना से जल्दी ही प्रसन्न हो जाती हैं , इहलोक (इसलोक) से ऊहलोक (उसलोक) में सुख की प्राप्ति इन्ही की अनुकंपा से मिलती है , देवी पुराण के अनुसार आज के दिन 4 कुमारी कन्याओं को भोजन कराना चाहिए , मान्यताओं के अनुसार आज के दिन स्त्रियां हरी साड़ी पहनती हैं , हरा रंग प्रकृति का माना गया है , ब्रह्म ववर्तव पुराण प्रकृति खंड अध्याय एक के अनुसार, भगवती प्रकृति भक्तों के अनुरोध से अथवा उनपर कृपा करने के लिए विविध रूप धारण करती है।
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