भारत से 7556 किमी दूर जमीन में धंसी मिली ‘टाइम मशीन’, वैज्ञानिकों को भी नहीं हो रहा यकीन; अब खुलेंगे सारे सीक्रेट।
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वैज्ञानिकों का तर्क है कि यह खोज पृथ्वी और मानवता के इतिहास को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक क्रांतिकारी कदम है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह टाइम मशीन हमारी जलवायु प्रणाली को समझने और भविष्य में आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार होने में मदद करेगी.
भारत से करीब साढ़े सात हजार किमी दूर अंटार्कटिका की बर्फीली जमीन के नीचे छिपा एक ऐसा रहस्य खोजा गया है, जिसे देखकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं. 12 लाख साल पुरानी बर्फ का यह टुकड़ा पृथ्वी के जलवायु इतिहास को समझने की चाबी हो सकता है. इसे वैज्ञानिक टाइम मशीन भी कह रहे हैं. एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने चार सालों के कठिन परिश्रम के बाद -35 डिग्री सेल्सियस के तापमान में 2.8 किलोमीटर गहरी बर्फ से इस नमूने को निकाला है. यह खोज ‘बियॉन्ड एपिका’ नामक परियोजना का हिस्सा है, जिसे यूरोपियन यूनियन ने वित्त पोषित किया है.
आखिर कैसे हुई यह खोज?
दरअसल, इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वैज्ञानिकों की टीम ने 9,186 फीट लंबा आइस कोर निकाला है, जिसमें लाखों साल पुराने वायुमंडल के बुलबुले फंसे हुए हैं. ये बुलबुले उस समय की वायुमंडलीय स्थिति की सटीक झलक देंगे. यह नमूना पृथ्वी के जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए एक अनमोल डेटा प्रदान करेगा. बर्फ को 1 मीटर के छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा गया है ताकि इसे गहराई से अध्ययन किया जा सके.
बर्फ में छिपा जलवायु परिवर्तन का रहस्य
वैज्ञानिकों ने साफ कहा है कि इस बर्फ में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों की जानकारी छिपी हुई है. इसके विश्लेषण से पता चलेगा कि सूर्य की किरणों, ज्वालामुखी गतिविधियों और पृथ्वी की कक्षीय स्थिति में बदलाव जैसे कारकों ने जलवायु को कैसे प्रभावित किया. यह शोध उस समय का विवरण देगा जब पृथ्वी पर बर्फ युगों का स्वरूप अचानक बदल गया था और इसका असर मानव प्रजातियों पर भी पड़ा.
इंसान और बर्फ युग के बीच की कड़ी
करीब 10 लाख साल पहले पृथ्वी पर बर्फ युग के चक्र में बदलाव आया था. जिसने आदिम मानव प्रजातियों के अस्तित्व को चुनौती दी थी. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस आइस कोर के अध्ययन से यह समझने में मदद मिलेगी कि उस समय पृथ्वी के पर्यावरण ने कैसे प्रतिक्रिया दी और जीवों ने कैसे खुद को बचाया.
25 साल पुरानी खोज का विस्तार
यह खोज 1996 में शुरू हुए एक प्रोजेक्ट का विस्तार है. उसमें वैज्ञानिकों ने 8 लाख साल पुराने जलवायु और ग्रीनहाउस गैसों के संबंध को समझा था. अब यह नई खोज पृथ्वी के और भी पुराने जलवायु इतिहास का खुलासा कर सकती है. इस प्रयास में 12 यूरोपीय संस्थानों के विशेषज्ञों ने मिलकर 200 दिनों से अधिक समय तक काम किया.
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