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    April 30, 2025

    5 लाख लेकर मुंबई पहुंचा यह शख्‍स, ज‍िद और मजबूत इरादों से खड़ी कर दी 45000 करोड़ की कंपनी।

    1 min read
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    कुछ करने की ज‍िद और मजबूत इरादे क‍िसी भी इंसान को कामयाबी के श‍िखर तक पहुंचा सकते हैं. आज हम आपको एक ऐसे ही शख्‍स की कहानी बता रहे हैं ज‍िसने पांच लाख रुपये की पूंजी से 45000 करोड़ रुपये का कारोबार खड़ा कर द‍िया.

    अक्सर कहा जाता है कठिन परिश्रम और संकल्प से इंसान किसी भी ऊंचाई तक पहुंच सकता है. ज‍िंदगी में कुछ कर गुजरने के ल‍िए सबसे जरूरी होते हैं आपके मजबूत इरादे. खासतौर पर छोटे शहर से आने वाले लोग जब बड़े सपने लेकर महानगरों में जाते हैं और कामयाबी की इबारत ल‍िखते हैं तो उनकी यही कहानियां लोगों के ल‍िए प्रेरणादायक बन जाती हैं. ऐसी ही कहानी है बिहार के जहानाबाद जिले के साधारण परिवार में जन्मे बासुदेव नारायण सिंह (Basudeo Narayan Singh) की. उन्‍होंने मुंबई आकर फार्मा इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाई और आज हजारों करोड़ का ब‍िजनेस चला रहे हैं.

    तमाम मुश्‍क‍िलों से लड़कर हास‍िल क‍िया मुकाम
    83 साल के बासुदेव नारायण सिंह अल्केम लेबोरेट्रीज के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन हैं. अल्केम लेबोरेट्रीज देश की चुन‍िंदा फार्मा कंपनियों में से एक है. मौजूदा समय में कंपनी की मार्केट कैप 45,000 करोड़ रुपये से ज्‍यादा है. लेकिन उन्‍होंने यहां तक सफर तमाम मुश्‍क‍िलों से लड़ने के बाद हास‍िल की है. अपने इस सपने को पूरा करने के लि‍ए उनकी ज‍िद और जी-तोड़ मेहनत दोनों काम आईं. बासुदेव नारायण सिंह का बचपन बेहद साधारण पर‍िवार में गुजरा.

    अल्केम लेबोरेट्रीज शुरू करने के बाद म‍िली कामयाबी
    वह प्रोफेसर थे, लेकिन उनके मन में हमेशा ब‍िजनेस करने की इच्छा रहती थी. इसके ल‍िए उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर बड़े भाई संप्रदा सिंह के साथ बिजनेस की दुनिया में कदम रखा. संप्रदा सिंह ने ग्रेजुएशन करने के बाद कई बिजनेस में हाथ आजमाया, लेक‍िन उन्‍हें कामयाबी नहीं म‍िली. उन्‍हें असली कामयाबी तब म‍िली जब उन्होंने 1973 में अल्केम लेबोरेट्रीज की शुरुआत की. बिजनेस जमने के बाद उन्होंने छोटे भाई बासुदेव नारायण सिंह को भी अपने साथ ले ल‍िया.

    परेशान‍ियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी
    संप्रदा सिंह के निधन के बाद साल 2019 में बासुदेव नारायण सिंह और उनके परिवार को कंपनी में हिस्सेदारी मिली. फोर्ब्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया क‍ि उनकी फार्मा कंपनी की शुरुआत महज 5 लाख रुपये से हुई थी. जीरो से श‍िखर तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. दोनों भाइयों ने तमाम परेशान‍ियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी. लगातार मेहनत और संघर्ष के बाद 1973 में अल्केम लेबोरेट्रीज की नींव रखी. 11 साल बाद, 1984 में कंपनी की सालाना आमदनी 10 करोड़ रुपये तक पहुंच गई.

    एंटीबायोटिक Taxim से बदल गई क‍िस्‍मत
    अल्केम लेबोरेट्रीज को असल कामयाबी तब म‍िली उन्होंने Taxim नामक एंटीबायोटिक दवा बाजार में उतारी. इस दवा को बैक्टीरियल इन्फेक्शन के इलाज के लिए यूज क‍िया जाता है. यह देश की पहली 100 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की बिक्री करने वाली एंटीबायोटिक दवा बनी. इसके बाद कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2008 तक अल्केम लेबोरेट्रीज की हर साल कमाई का आंकड़ा 1,000 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया.

    बासुदेव नारायण सिंह की कहानी से यह साफ है क‍ि यद‍ि आपके इरादे मजबूत हो तो कोई भी इंसान बड़ी सफलता हासिल कर सकता है. बिहार के छोटे से शहर से निकलकर उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से 45,000 करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी कर दी.

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