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    April 23, 2025

    ये सिर्फ संयोग नहीं.. शपथ लेते ही चीन जा रहे पुतिन, भारत-अमेरिका के लिए क्या है संदेश।

    1 min read
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    पुतिन की यह यात्रा चीन-रूस के बीच प्रगाढ़ होते संबंधों की एक नई बानगी है. दोनों के संबंध जटिल भी हैं, मजबूत साझेदारी भी है लेकिन कुछ संभावित चुनौतियां भी हैं. इधर भारत और अमेरिका के लिए इस दौरे के क्या मायने हैं, इसे भी समझने की जरूरत है.

    दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार व्लादिमीर पुतिन ने फिर से रूस के राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो दुनियाभर की निगाहें उनके ऊपर थीं. अब ताजा मामला यह है कि वे अपने पहले दौरे पर चीन जा रहे हैं. शपथ लेते ही चीन जाने वाले पुतिन का यह कदम महज संयोग नहीं है. यह चीन और रूस के बढ़ते और प्रगाढ़ होते संबंधों की भी एक बानगी है. इस दौर पर भारत की निगाहें तो होंगी ही साथ ही साथ अमेरिका की भी निगाहें बनी रहेंगी. यह समझने की जरूरत है कि क्या इस दौरे को लेकर भारत-अमेरिका के लिए भी संदेश छिपा है या फिर महज एक औपचारिक यात्रा है.

    असल में पुतिन इसी सप्ताह चीन की दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर आएंगे. चीन के विदेश मंत्रालय ने भी मंगलवार को यह जानकारी दी. विदेश मंत्रालय ने बताया कि पुतिन गुरुवार से शुरू हो रही अपनी यात्रा के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात करेंगे. दोनों नेता द्विपक्षीय संबंधों के अनेक क्षेत्रों में सहयोग पर और साझा चिंता वाले अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय मुद्दों पर बातचीत करेंगे.

    पुतिन की चीन यात्रा के मायने
    उधर रूस ने भी एक बयान में यात्रा की पुष्टि करते हुए कहा कि शी के निमंत्रण पर पुतिन चीन की यात्रा करेंगे. कहा गया कि यह पुतिन का पांचवां कार्यकाल शुरू होने के बाद उनकी पहली विदेश यात्रा है. दरअसल इस यात्रा को अमेरिका नीत पश्चिमी उदारवादी वैश्विक व्यवस्था के खिलाफ दो आधिपत्यवादी सहयोगी देशों के बीच एकजुटता के प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है.

    चीन-रूस… यूक्रेन युद्ध.. और फिर पश्चिमी देश..
    रूस और चीन के संबंधों को कई नजरिए से देखने की जरूरत है. चीन ने यूक्रेन युद्ध में राजनीतिक रूप से रूस का समर्थन किया है और वह हथियारों का निर्यात किए बिना रूस के युद्ध के प्रयासों में योगदान के रूप में मशीन कलपुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य वस्तुओं का निर्यात जारी रखे हुए है. साथ ही चीन ने रूस-यूक्रेन युद्ध में खुद को तटस्थ दिखाने की कोशिश की है, लेकिन पश्चिमी देशों के खिलाफ रूस के साथ अपने संबंधों को ‘असीमित’ घोषित किया है. दोनों पक्षों ने शृंखलाबद्ध तरीके से संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किए हैं और चीन ने यूक्रेन के खिलाफ दो साल पुराने अभियान के जवाब में रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों का लगातार विरोध किया है.

    नाटो और अमेरिका के साथ विवाद..
    इसके अलावा चीन और रूस दोनों का दुनिया के कई लोकतंत्रों और नाटो के साथ विवाद बढ़ रहा है. दोनों ही अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण अमेरिका में प्रभाव स्थापित करना चाहते हैं. पुतिन की यह यात्रा ताईवान के नए राष्ट्रपति के रूप में विलियम लाई चिंग-ते के सोमवार को आयोजित शपथ ग्रहण समारोह से कुछ दिन पहले होने जा रही है. चीन स्वशासी द्वीपीय लोकतंत्र ताईवान पर अपने क्षेत्र के रूप में दावा करता है और जरूरत पड़ने पर उस पर जबरन कब्जा करने की धमकी देता है. अमेरिका के साथ दोनों देशों का टकराव होता रहता है. ऐसे में दोनों अमेरिकी महाशक्ति को काउंटर करने के लिए लंबे समय से साथ आ रहे हैं.

    पुतिन की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब शी जिनपिंग पिछले ही सप्ताह यूरोप की पांच दिवसीय यात्रा करके लौटे हैं. वह हंगरी और सर्बिया भी गए थे जिन्हें रूस के करीब माना जाता है. पांच साल में शी की पहली यूरोप यात्रा को चीन का प्रभाव बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा गया है. फिलहाल चीनी विदेश मंत्रालय बे बताया है कि पुतिन के साथ दोनों देशों के राजनयिक संबंध की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ की पृष्ठभूमि में द्विपक्षीय संबंध, विभिन्न क्षेत्रों के सहयोग और समान चिंता वाले अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे.

    भारत के नजरिए से..
    अब सवाल है कि भारत का नजरिया क्या है. यह बात सही है रूस ऐतिहासिक तौर पर भारत का जांचा और परखा मित्र है. रूस एकमात्र ऐसा देश है जिसके साथ भारत के संबंधों में कभी तल्खी नहीं आई है. लेकिन उधर चीन हमेशा से ही भारत को अपने लिए खतरा मानता है और संबंधों में टकराव भी रहे हैं. भारत के लिए फिलहाल वेट एंड वॉच की रणनीति सही है. क्योंकि भारत और अमेरिका के भी संबंध दुनियाभर में जगजाहिर हैं. जबकि अमेरिका चीन को अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी और रूस को अपने सबसे बड़े खतरे के रूप में देखता है. भारत के साथ फिलहाल ऐसा नहीं है, भारत को सिर्फ चीनी पैंतरे से सावधान रहने की जरूरत है.

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