डूबने वाला है ये देश, बच्चे पैदा करने से डर रहे लोग; ऑस्ट्रेलिया देगा पनाह।
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प्रशांत महासागर में नौ छोटे-छोटे द्वीपों (Atoll) पर बसा तुवालु द्वीप समूह अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. 11 हजार आबादी वाले इस देश की आबादी के हाथों से समय सरक रहा है.
प्रशांत महासागर में नौ छोटे-छोटे द्वीपों (Atoll) पर बसा तुवालु द्वीप समूह अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. 11 हजार आबादी वाले इस देश की आबादी के हाथों से समय सरक रहा है. दरअसल तुवालु की समुद्र तल से ऊंचाई महज 2 मीटर (6.56 फीट) है. पिछले तीन दशकों में ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेंट चेंज के कारण समुद्र तल 15 सेमी (5.91 इंच) बढ़ चुका है. यानी करीब छह इंच समुद्र का स्तर बढ़ा है जो वैश्विक औसत का डेढ़ गुना है. इसको देखते हुए नासा ने अनुमान व्यक्त किया है कि समुद्र के नियमित ज्वार के कारण 2050 तक यहां का सबसे बड़ा द्वीप फुनाफुटी आधा जलमग्न हो जाएगा. इस द्वीप पर ही तुवालु के सर्वाधिक 60 प्रतिशत लोग रहते हैं.
रॉयटर्स से बातचीत करते हुए यहां की नागरिक फुकानोई लाफाई (29) ने कहा कि वो फैमिली प्लानिंग कर रही हैं लेकिन उनको इस बात का डर है कि जब तक उनके बच्चे बड़े होंगे तब तक ये द्वीप समुद्र में डूब चुका होगा. ये इतना बड़ा डर है जिसकी वजह से बच्चे की चाहत होने के बावजूद उनको भविष्य की चिंता है क्योंकि आबादी को अपनी जगह छोड़कर विस्थापित होना पड़ेगा.
तुवालु में खतरे की आहट साफ सुनी जाने लगी है क्योंकि समुद्री जलस्तर बढ़ने से पानी ग्राउंट वाटर में घुस रहा है. फसलें चौपट हो जा रही हैं लिहाजा यहां के निवासियों को रेनवाटर टैंकों और एक केंद्रीकृत विकसित किए गए फार्म से सब्जियां उगाई पड़ रही हैं.
कहां जाएंगे लोग
तुवालु को 1978 में ब्रिटेन से आजादी मिली थी. इसका कुल क्षेत्रफल 26 वर्ग किमी है. इसको पहले एलिस आइलैंड के नाम से भी जाना जाता था. ये प्रशांत महासागर में हवाई और ऑस्ट्रेलिया के मध्य स्थित है. ये वेटिकन सिटी के बाद दुनिया में सबसे कम आबादी वाला देश है. 2021 के आंकड़ों के मुताबिक यहां की आबादी 11, 900 है.
विस्थापन का दंश
जलवायु और सुरक्षा के बढ़ते खतरे को देखते हुए तुवालु और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2023 में एक समझौता हुआ. इसके तहत ये तय हुआ कि 2025 से हर साल 280 लोगों को ऑस्ट्रेलिया में स्थायी रूप से विस्थापित किया जाएगा ताकि जलमग्न होने से पहले ही इस एरिया को छोड़ दिया जाए. हालांकि यहां के नागरिक अपनी पुरखों की मिट्टी को नहीं छोड़ना चाहते लेकिन उनके पास फिलहाल कोई और दूसरा विकल्प नहीं है.
यहां की सरकार एक अन्य संकट से जूझ रही है. दरअसल वो चाहती है कि यदि तुवालु डूब भी जाए तब भी संयुक्त राष्ट्र उसको एक अलग संप्रभु राष्ट्र के रूप में कानूनी मान्यता दे. दरअसल तुवालु अपने समुद्री क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखना चाहता है क्योंकि ये पूरा एरिया इकोनॉमिक जोन के रूप में करीब नौ लाख वर्ग किमी का बनता है. फिशिंग के अधिकार समेत तमाम सामुद्रिक गतिविधियों के लिहाज से ये बहुत बड़ा एरिया है. तुवालु की इसी आकांक्षा को 25 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में वहां के प्रधानमंत्री व्यक्त भी करेंगे.
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