मिल गया वो ज्वालामुखी जिसने किया था पृथ्वी को ठंडा, 200 साल से वैज्ञानिक कर रहे थे माथापच्ची.
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वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रहस्यमयी ज्वालामुखी खोज निकाला है, जिसने धरती को ठंडा करने में अहम भूमिका निभाई थी. साथ ही प्राकृतिक आपदाओं से जलवायु पर पड़ने वाले असर को समझने में खासी मदद की.
Zavaritski Caldera: 200 साल पहले जिस ज्वालामुखी ने गरम धरती के तापमान को कम किया था, उसे वैज्ञानिकों ने अब खोज निकाला है. रूस और जापान के बीच विवादित क्षेत्र कुरिल द्वीपों में स्थित जवारित्सकी कैल्डेरा नाम के इस ज्वालामुखी ने धरती के तापमान केा कम करके वैश्विक जलवायु पर बड़ा असर डाला था. हाल ही में प्रतिष्ठित मैग्जीन ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका’ में रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है.
विस्फोट से बना था बड़ा गड्ढा
जवारित्सकी कैल्डेरा कुरिल द्वीपसमूह के एक ज्वालामुखी का नाम है. कैल्डेरा एक ऐसा भू-आकृतिक ढांचा है, जो ज्वालामुखी में बड़े विस्फोट के बाद जमीन के एक बड़े हिस्से के अंदर धंसने से बनता है. इससे एक बड़ा गड्ढा बन जाता है. जवारित्सकी कैल्डेरा 1831 में हुए विस्फोट से बना था. जिसने धरती के बड़े हिस्से के तापमान को कम कर दिया था.
उत्तरी गोलार्ध पर घटा था 1 डिग्री तापमान
1831 में हुआ यह ज्वालामुखीय विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि इसने उत्तरी गोलार्ध पर तापमान को 1 डिग्री सेल्सियस तक कम कर दिया था. इसने धरती को ठंडा किया, साथ ही बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड गैस (SO₂) वातावरण में छोड़ी, जिसने सूर्य की किरणों को ब्लॉक कर दिया और वैश्विक तापमान में गिरावट का कारण बना.
सल्फर डाइऑक्साइड गैस ने घटाई सूरज की गर्मी
दरअसल, इस गैस में पाए जाने वाले सल्फेट एयरोसोल्स बहुत छोटे और चमकीले कण होते हैं, जो कि सूर्य के प्रकाश को अंतरिक्ष में परावर्तित कर देते हैं. इससे पृथ्वी तक पहुंचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा कुछ कम हो जाती है. जिससे धरती के वायुमंडल की गर्मी कम हो जाती है.
पता लगाने में लग गए 200 साल
साल 1831 में जिस तरह जलवायु का परिवर्तन दर्ज हुआ, वह अपनेआप में एक अनोखी घटना थी. साथ ही इस ओर साफ इशारा कर रही थी कि इसके पीछे कोई बड़ी ज्वालामुखी विस्फोट की घटना शामिल है. क्योंकि इस विस्फोट के कारण माहौल में बढ़ी ठंडक के चलते कुछ इलाकों में असामान्य ठंड पड़ी थी. साथ ही फसलों पर भी बुरा असर देखा गया था.
फिर भी वैज्ञानिकों को उस रहस्यमयी ज्वालामुखी तक पहुंचने में 200 साल लग गए, जिसने धरती पर इतना बदलाव लाया था. जब वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड की बर्फ की परतों का अध्ययन किया तो वहां मिली ज्वालामुखीय राख, कांच, और सल्फर आइसोटोप की गहन जांच-परख से पता चला कि यह 1831 के हैं. इसके बाद भू-विज्ञान को लेकर कड़ी जुड़ती गईं और आखिरकार वैज्ञानिक उस रहस्यमयी ज्वालामुखी तक पहुंच गए.
हिमयुग में हुआ था विस्फोट
एक और आश्चर्यजनक बात यह है कि जवारित्सकी का यह विस्फोट उस समय हुआ, जब लिटिल आइस एज यानी छोटा हिमयुग चल रहा था. ऐसे में इस विस्फोट के कारण 1 डिग्री तापमान और कम हो गया था.
बता दें कि इस रहस्यमयी ज्वालामुखी की खोज ने वैज्ञानिकों को ना केवल 200 साल पुरानी घटना का रहस्य खोला है, बल्कि भविष्य में भी ज्वालामुखी विस्फोटों से जलवायु पर पड़ने वाले असर की स्थितियों को समझने के लिए बड़ी संभावनाएं खोली हैं.
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