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    April 24, 2025

    जिस यूनिवर्सिटी में 6 महीने तक जलती रहीं किताबें, 800 साल बाद आज आया है बड़ा दिन.

    1 min read
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    भारत का गौरव नालंदा विश्वविद्यालय, जहां दुनियाभर से छात्र अध्ययन के लिए आते थे. 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किए जाने से पहले यह प्राचीन विश्वविद्यालय 800 वर्षों तक फलता-फूलता रहा…

    5वीं शताब्दी में नालंदा यूनिवर्सिटी, जिसने पूरे विश्व से बेहतर शिक्षा हासिल करने के लिए दुनिया के कोन-कोने से छात्रों को आकर्षित किया. 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों की बुरी नजर लगने से पहले तक यह प्राचीन विश्वविद्यालय 800 वर्षों तक फलता-फूलता रहा और भारत अपने इस उपलब्धि की बदौलत विश्व में गौरव पाता रहा. आज भी इसका गौरवशाली इतिहास पढ़कर हर भारतीय गर्व से भर जाता है, लेकिन इस प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर बनने की कहानी एक भारतीय को बहुत कुछ बेहतरीन खो देने का बार-बार एहसास दिलाती है.

    वर्तमान सरकार ने इस प्राचीन विश्वविद्यालय को शिक्षा और अध्ययन के एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के तौर पर स्थापित करने का बीड़ा उठाया, जो 21वीं सदी के लोगों को प्राचीन भारत की महानता की याद दिलाए. आज, 19 जून को नया इतिहास बनने जा रहा है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नालंदा यूनिवर्सिटी के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन करेंगे. देश के इस पहले विश्वविद्यालय का इतिहास बहुत ही दिलचस्प रहा है. आइए जानते हैं कि कैसे एक दौर में शिखर पर रहने वाले इस विश्वविद्यालय को कितनी क्रूरता से जला कर राख दिया गया…

    825 साल बाद बनाने जा रहा है नया इतिहास
    इस विश्वविद्यालय की स्थापना 427 ईस्वी में हुई, जिसका निर्माण गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त (प्रथम) ने करवाया. इसके बाद साल-दर-साल इसकी ख्याति दुनिया भर में फैलती गई. इस तरह लगभग 800 साल बाद तक यह पूरे विश्व में शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र रहा. बख्तियार खिलजी ने नालंदा यूनिवर्सिटी में आग लगा दी. इतिहासकारों के मुताबिक इसकी लाइब्रेरी में इतनी किताबें थी कि कई महीनों तक आग बुझी नहीं. अब 825 साल बाद नालंदा विश्वविद्यालय नया इतिहास बनाने जा रहा है.

    खिलजी ने मिलाया खाक में
    मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी तत्कालीन दिल्ली शासक कुतुबुद्दीन ऐबक का सेनापति था, जो बाद में बिहार का पहला मुस्लिम शासक बना. खिलजी ने हजारों धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला और नालंदा विश्वविद्यालय को खाक में मिला दिया. इतिहासकारों के मुताबिक जब खिलजी ने यूनिवर्सिटी को जलाया, तब इसकी 3 मंजिला लाइब्रेरी में करीब 90 लाख किताबें और पांडुलिपियां थीं.

    इन विषयों की होती थी पढ़ाई
    नालंदा विश्वविद्यालय में दुनिया भर से 10,000 छात्र एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे. बताया जाता है कि यहां छात्रों के रहने और भोजन की व्यवस्था पूरी तरह से निशुल्क थी. यहां धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र, चित्रकला, वास्तु, अंतरिक्ष और धातु विज्ञान, अर्थशास्त्र जैसे विषय पढ़ाए जाते थे. यहां आधुनिक चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेद का ज्ञान दिया जाता था. इतना ही नहीं विश्वविद्यालय में गणित और खगोल विज्ञान की पढ़ाई के लिए भी ख्याति प्राप्त कर रहा था. भारतीय गणित के जनक आर्यभट्ट 6वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे. इतिहास के मुताबिक 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री और स्कॉलर ह्वेन सांग ने भारत की यात्रा की. इस दौरान वह नालंदा विश्वविद्यालय गया और यहां पढ़ाया भी. 645 ईस्वीं में अपने साथ लेकर गए कई बौद्ध धर्म ग्रंथों का उसने चीनी भाषा में ट्रांसलेशन भी किया था.

    नेट ‘0’ कार्बन कैम्पस
    अब नए यूनिवर्सिटी कैंपस को राजगीर में वैभारगिरि की तलहटी के 455 एकड़ एरिया में इसे तैयार किया गया है. विश्व के सबसे बड़े नेट जीरो कार्बन कैम्पस वाले इस विश्वविद्यालय का निर्माण ‘पंचामृत’ सूत्र के आधार पर किया गया है. तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 19 सितंबर 2014 को इसके नवनिर्माण की नींव रखी थी.

    नालंदा विश्वविद्यालय का नया परिसर नालंदा के प्राचीन खंडहर स्थल के करीब है. नए कैंपस की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के तहत की गई थी. इस अधिनियम में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 2007 में फिलीपीन में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए फैसले को लागू करने का प्रावधान किया गया है.

    इन देशों की भी है भागीदारी
    विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू हुआ. भारत के अलावा इस विश्वविद्यालय में जिन 17 अन्य देशों की भागीदारी है उनमें ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. इन देशों ने विश्वविद्यालय के समर्थन में समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं.

    इन देशों के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप
    साल 2014 में नए विश्वविद्यालय ने 14 छात्रों के साथ अस्थायी जगह से काम करना शुरू किया. विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को 137 छात्रवृत्तियां प्रदान करता है. एकेडमिक ईयर 2022-24, 2023-25 ​​के लिए पीजी कोर्सेस और 2023-27 के पीएचडी के लिए अर्जेंटीना, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, घाना, इंडोनेशिया, केन्या, लाओस, लाइबेरिया, म्यांमार, मोजाम्बिक, नेपाल, नाइजीरिया, कांगो गणराज्य, दक्षिण सूडान, श्रीलंका, सर्बिया, सिएरा लियोन, थाईलैंड, तुर्किए, युगांडा, अमेरिका, वियतनाम और जिम्बाब्वे के छात्र नामांकित हैं.

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