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    May 2, 2025

    3 बार विधायक बन चुका नेता है जर्मन नागरिक, HC ने विपक्ष में खड़े कांग्रेस उम्मीदवार को दिलवाए 25 लाख.

    1 min read
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    भारत में चुनाव लड़ने के लिए या फिर वोट देने के लिए भारत का नागरिक होना जरूरी है लेकिन हाल ही में एक विदेशी नागरिकता वाले विधायक के राज से पर्दा उठा है. जर्मन नागरिकता वाले नेता जी 3 बार विधायक बन चुके हैं. अब अदालत ने उनपर कड़ा जुर्माना लगाया है.

    भारत में चुनाव लड़ने के लिए भारत का ही नागरिक होना जरूरी है लेकिन अगर हम कहें कि एक विधायक ऐसा है जिसके पास दूसरे देश की नागरिकता है और वो तीन बार चुनाव जीत चुका है, तो क्या आप यकीन करेंगे? शायद नहीं, लेकिन ये हकीकत है. पूर्व बीआरएस नेता चेन्नामनेनी रमेश एक जर्मन नागरिक हैं और उन्होंने वेमुलावाड़ा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया. फर्जी दस्तावेज की मदद से उन्होंनेखुद को भारतीय नागरिक के रूप में पेश किया. इस संबंध में तेलंगाना हाई कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस के आदि श्रीनिवास की तरफ से दाखिल की गई याचिका पर फैसला सुनाया है

    कांग्रेस उम्मीदवार को मिलेंगे 25 लाख
    अदालत ने माना कि रमेश जर्मन दूतावास से यह पुष्टि करने वाला कोई दस्तावेज पेश करने में विफल रहे कि वह अब उस देश के नागरिक नहीं हैं. इसलिए अदालत ने उन्हें 30 लाख रुपये का जुर्माना लगाया. जिसमें से ​​25 लाख श्रीनिवास को देंगे, जिनके खिलाफ रमेश नवंबर 2023 का चुनाव हार गए थे. सोशल मीडिया पोस्ट में श्रीनिवास ने कहा,’जर्मन नागरिक के रूप में झूठे दस्तावेजों के साथ विधायक चुने गए रमेश पर 30 लाख का जुर्माना.’

    जर्मन नागरिक ने 4 बार जीता चुनाव
    कानून के मुताबिक गैर-भारतीय नागरिक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं या मतदान नहीं कर सकते हैं. लेकिन रमेश रमेश ने इससे पहले वेमुलावाड़ा सीट पर चार बार जीत हासिल की थी. 2009 में तेलुगु देशम पार्टी के हिस्से के रूप में और फिर 2010 से 2018 तक तीन बार, जिसमें पार्टी बदलने के बाद उपचुनाव भी शामिल है.

    गृह मंत्रालय की एंट्री
    2020 में केंद्र ने तेलंगाना हाई कोर्ट को सूचित किया था कि रमेश के पास जर्मन पासपोर्ट है, जो 2023 तक वैध है और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहले ही एक आदेश जारी कर दिया था, जिसमें उनके आवेदन में तथ्यों को छिपाने की बुनियाद पर उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी गई थी. गृह मंत्रालय ने कहा,’उनके (रमेश के) गलत बयान/तथ्यों को छिपाने से भारत सरकार गुमराह हुई. अगर उन्होंने बताया होता कि आवेदन करने से पहले वे एक साल तक भारत में नहीं रहे, तो इस मंत्रालय में सक्षम प्राधिकारी ने उन्हें नागरिकता नहीं दी होती.’

    इसके बाद उनसे हलफनामा दाखिल करने को कहा गया, जिसमें उनके जर्मन पासपोर्ट को सरेंडर करने से संबंधित जानकारी का खुलासा किया गया हो. साथ ही यह भी साबित किया गया हो कि उन्होंने अपनी जर्मन नागरिकता छोड़ दी है.

    2013 में तत्कालीन अविभाजित आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इसी वजह से उपचुनाव में उनकी जीत को रद्द कर दिया था. इसके बाद रमेश ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और रोक लगाने की कोशिश की थी लेकिन रोक प्रभावी रहने के दौरान उन्होंने 2014 और 2018 के चुनाव लड़े और जीते.

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