जिरो से हिरो बनने का सफर बडाही प्रेरणादायी है, ज्ञानेश्वरजी का मानना है की इश्वर सदैव उनके साथ है।
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जिद कडी मेहनत और इमानदारी से यदी हम कीसी भी काम को करे तो सफलता अपने कदम जरूर चुमती है।
ज्ञानेश्वरजी का जन्म 25 जुलाई 1974 में छत्रपती संभाजीनगर(औरंगाबाद) जिले के फुलब्री तहसिल में चिंचोली नामक एक छोटसे गांव में हुआ। चिचोली गांव बोहतही पिछडाहुआ गांव है। जहाॅ 4थी कक्षा तक ही पढाई होती थी। उसके बाद उन्हें आगेकी पढाई करने उनके मांमा के गांव जाना पडा। वहा उन्होंने 10वी कक्षातक पढाई की। उनके दादाजी खेती किया करते थे। उनके पीताजी सिलाई बुनाई का काम किया करते। दसवी कक्षा की पढाई होने के बाद काम करने के लिए ज्ञानेश्वर ने शहर का रास्ता चुना। बिल्डींग कन्स्ट्रक्शन के काम में उन्होंने मजदुरी करना शुरू कीया।
मातापीता के संस्कारो में पलेबढे ज्ञानेश्वरजी की कोई भी काम करने की तैयारी थी। उसी दौरान परमपुज्य पांडूरंग शास्त्री आठवले जी के स्वाध्याय परीवार से जुडने का मौका मिला। उनके सानिध्य में वे निरंतर रहने लगे। और उनपर अच्छे संस्कार होने लगे। दुनिया में केवल एकही स्वाध्याय परिवार है जो पुरी दुनिया में एक परिवार का नारा लगाता है और उसपर अमल भी करता है। दुसरों के प्रती प्रेमभाव, दुसरो का सम्मान करना ये सारे गुण उन्होंने वहीसें सिखे। उन्ही गुणों के आधारपर वे अपने बिझनेस में अच्छी सफलता हासिल करने लगे। उन्होंने कई कंपनीयों के लिए भी काम किया था। और उसी अनुभव के आधारपर उन्होंने 1995 में जय इंडस्ट्री नामक युनिट की शुरूआत की। लेकीन उनकी आर्थिक समस्याओंसे उन्हें निजात नही मिल रही थी। तो उन्हे उनका बिझनेस बंद करना पडा। उसके बाद उन्होंने फिरसे नोकरी करना प्रारंभ किया। काफी साल नोकरी करने के बाद उन्होंने नोकरी छोडने का फैसला लिया ताकी खुदका व्यवसाय शुरू कर सके और अपना सपना पुरा कर सके। उन्होंने 2003 मे कावेरी इंजिनीयरींग नाम से बिझनेस की शुरूआत की। गरवारे, स्टरलाईट, गुड इयर, एनएलएमके, एैसी अन्य कई कंपनीयों मे फेब्रिकेशन का काम शुरू कीया। उन्होंने वाळुज मे किराएपर जगह ली। वहा उनके काम में उनके छोटे भाई कृष्णा जोगदंड जी ने बडा साथ दिया।
उनके बिझनेस में उनकी पत्नी सौ.सरला ज्ञानेश्वर जोगदंड जी ने हर मुष्किल घडी में उनका साथ दिया। उसके बाद उन्होनें गट नंबर में खुद की जगह खरीदी वहा शेड बनाकर अपना बिझनेस शुरू कीया। सन 2021 में एमआयडीसी में आरीक आरीक सिटी शेंद्रा में 10 हजार स्क्वे.फि. का प्लाॅट खरीदा। वहा कन्स्ट्रक्शन करने के बाद रोलींग शटर तथा इंजिनियरींग फेब्रिकेशन का बिझनेस शुरू किया। इस काम में उन्हे विश्वास था की यदी इमादारी और कडी मेहनत के साथ काम किया जाए जो सफलता जरूर प्राप्त होगी।
वे आज युवांओको मार्गदर्शन करते है। यदी हम हनुमानजी की पुॅछ को पकडते है तो प्रभु रामतक पहुॅंच सकते है। और यदी कीसी गधे की पुॅंछ पकड ले तो वो आपको कचरे में ही लेकर जाएगा। यह बात परमजुज्य दादाजी वारंवार कहते है। उन्होंने इस बाद को हमेशा के लिए अपने जहन में डाल दिया है। अच्छे लोगों की संगत में हम अच्छें ही बनते है।
छत्रपती संभाजीनगर शहर बडाही सुंदर शहर है। यहाॅं के उदयोजक बडी इमानदारी से काम करते है। मेहनत और जिद से वे आगे बढते रहते है। इन सभी गुणों के आधारपर नगर की चारो और वाळूज, चिखलठाणा, शेंद्रा, चितेगांव, बिडकीन जैसे भांगोमें उदयोग फुल रहे है। कई कंपनीयाॅ यहाॅ टु.व्हिलर की पार्टस भी बनाती है। उन्हे इस बात की खुषी है की यहाॅ के उदयोजक कभी किसी बात मे कम नही है। किंतू उन्हे इस बात का एहसास भी है की, यदी सरकार की और से सारे कामं बिना कीसी रूकावट हो तो नगर का उदयोग समुह तरक्की की राह पर तेज गती से आगे बढ सकता है।
उन्हे भगवानपर 100 प्रतीशत विश्वास है, के भगवान उन्हे मदत करते रहेंगे और वे आगे बढते रहेंगे। साथही भविष्य में खेती उदयोग में काम करने का उनका इरादा है। हम उन्हे उनके अच्छे और सफलतापुर्ण भविष्य के लिए रिसील की और से ढेरसारी शुभकामनाए देते है।
लेखक : सचिन आर जाधव
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