चंद्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण अंतरिक्ष स्टार्टअप और उद्यमियों के लिए है सुनहरा मौका, स्पेस इकोनॉमी पर भारत की नज़र।
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Space Startups: चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण से स्पेस इकोनॉमी में भारत को प्रभुत्व बढ़ाने में मदद मिलेगी. इससे स्पेस स्टार्टअप और इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले कारोबारियों को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
Chandrayaan 3: अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत तेजी से उस मुकाम को हासिल करने की ओर बढ़ रहा है, जहां तक फिलहाल दुनिया के चंद देश ही पहुंचे हैं | इस लिहाज से चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण के बाद पूरी दुनिया की नज़र अब भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान पर टिकी है |
इसरो के वैज्ञानिकों ने 14 जुलाई को देश के तीसरे चांद मिशन के तहत चंद्रयान-3 को एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजा , इसके साथ ही स्पेस इकोनॉमी में भारत की ताकत को नया आयाम मिला |
अंतरिक्ष स्टार्टअप और उद्यमियों को बढ़ावा
स्पेस इकोनॉमी के लिहाज से भविष्य में अंतरिक्ष स्टार्टअप और उद्यमियों का सबसे ज्यादा महत्व होने वाला है , चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण से अंतरिक्ष स्टार्टअप और अंतरिक्ष उद्यमियों को बढ़ावा मिलेगा , केंद्रीय अंतरिक्ष राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह का भी यही कहना है |
जी20 युवा उद्यमी गठबंधन शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए 15 जुलाई को केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि चंद्रयान-3 के सफल प्रक्षेपण से अंतरिक्ष स्टार्टअप और अंतरिक्ष उद्यमियों को बढ़ावा मिलेगा , उन्होंने जी20 देशों के युवा वैज्ञानिकों और युवाओं से अंतरिक्ष उद्यमिता के लिए एक नए युग की शुरुआत का आह्वान किया इसके लिए संयुक्त मिशन मोड में आकर्षक स्टार्टअप उद्यमों के जरिए अंतरिक्ष क्षेत्र की संभावनाओं का पता लगाने पर बल दिया है |
स्पेस इकोनॉमी का आकार तेजी से बढ़ रहा है |
स्पेस इकोनॉमी का आकार बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है | 2020 में स्पेस इकोनॉमी का आकार 447 अरब डॉलर तक था | अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के मुताबिक इसके 2025 तक 600 अरब डॉलर से ज्यादा होने की उम्मीद है | हम सब जानते हैं कि भारत स्पेस सेक्टर तेजी से उभरती हुई ताकत बनने की ओर बढ़ रहा है | स्पेस इकोनॉमी में अपना रकबा बढ़ाने के लिए भारत पिछले कुछ सालों से निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने पर फोकस कर रहा है |
कुछ वक्त पहले ‘डेवलपिंग द स्पेस इको सिस्टम इन इंडिया’ के ना से एक रिपोर्ट इंडियन स्पेस एसोसिएशन और अर्न्स्ट एंड यंग ने प्रकाशित किया था | इसमें भी कहा गया था कि स्पेस लॉन्चिंग का बाजार 2025 तक बहुत ही तेजी से बढ़ेगा रिपोर्ट में भारत में इसके सालाना 13 फीसदी के हिसाब से वृद्धि का अनुमान लगाया गया था | स्पेस के क्षेत्र में निजी भागीदारी के बढ़ने के साथ ही नई-नई तकनीक आने और लॉन्चिंग सेवाओं की लागत में कमी होने की वजह से स्पेस इकोनॉमी तेजी से बढ़ेगी |
स्पेस इकोनॉमी पर है भारत की नज़र
‘डेवलपिंग द स्पेस इको सिस्टम इन इंडिया’ रिपोर्ट में कहा गया था कि 6% की सालाना वृद्धि दर से भारत के स्पेस इकोनॉमी का आकार 13 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है और इसमें निजी उद्योग की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी 2020 में ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में भारत का हिस्सा करीब 2.6% था और ये 9.6 अरब डॉलर के बराबर था. ये देश के जीडीपी का 0.5% था | स्पेस इकोनॉमी में भारत के लिए सैटेलाइट लॉन्च सर्विस और एप्लीकेशन सेगमेंट को सबसे बड़ा हिस्सा माना जाता है. इसकी हिस्सेदारी 2025 तक भारतीय स्पेस इकोनॉमी में 36% होगी |
स्पेस सेक्टर में निजी भागीदारी को प्रोत्साहन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अंतरिक्ष क्षेत्र को और भी बढ़ावा दिया गया है. स्पेस इकोनॉमी के बढ़ते आकार को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2020 में निजी भागीदारी के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोल दिया था | अंतरिक्ष और इससे संबंधित दूसरे क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों को तेजी से लाने के मकसद से सार्वजनिक-निजी भागीदारी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है |इससे अंतरिक्ष स्टार्टअप की संख्या बढ़ाने में मदद मिल रही है , निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने से इसरो की प्रक्षेपण क्षमता को भी बढ़ाने में मदद मिल रही है | निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोलने का ही नतीजा है कि वर्तमान में इसरो करीब 150 निजी स्टार्टअप के साथ काम कर रहा है | इस दिशा में नवंबर 2022 में इसरो ने एक पड़ाव पार करते हुए इतिहास रचा था, जब इसरो ने भारत के पहले निजी सब ऑर्बिटल (VKS) रॉकेट विक्रम को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था |
स्टार्टअप क्रांति का फायदा स्पेस सेक्टर को
दरअसल देश में स्टार्टअप क्रांति का फायदा स्पेस सेक्टर को भी मिल रहा है. केंद्र सरकार की ओर से 2016 में विशेष स्टार्टअप योजना शुरू करने के बाद देश में स्टार्टअप की संख्या 90 हजार से ज्यादा हो गई है. इनमें 100 से अधिक यूनिकॉर्न हैं | इसी का नतीजा है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम वाला देश है. निजी क्षेत्र के लिए खोलने के बाद इसका सीधा फायदा स्पेस क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाले कारोबारियों को मिल रहा है |
निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए कदम
स्पेस इकोनॉमी का आकार बढ़ाने के लिए केंद्र ने निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं| इस तरह के उपाय किए गए हैं कि निजी क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां और कारोबारी रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण और विकास, लॉन्चिंग सेवाएं मुहैया कराने और उपग्रहों के स्वामित्व जैसी गतिविधियों में हिस्सा ले सकें , इसके लिए एक नोडल एजेंसी बनाया गया है | इसका नाम भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) है | इसरो की कमर्शियल एक्टिविटी सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियां – न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) और एंट्रिक्स (Antrix) के जिम्मे है |
IN-SPACe ही वो एजेंसी है, जो अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी फर्मों और संस्थाओं को अधिकृत करने और बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है |
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