स्टीव जॉब्स ने 19 वर्ष की आयु में लिखे अपने एक पत्र को ‘इतने’ करोड़ रुपये में नीलाम करने तथा कुंभ मेले में जाने की इच्छा व्यक्त की थी।
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स्टीव जॉब्स द्वारा लिखा गया एक पत्र हाल ही में नीलाम हुआ।
विश्व प्रसिद्ध स्मार्टफोन निर्माता कंपनी एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स द्वारा 1974 में 19 वर्ष की आयु में लिखा गया एक पत्र हाल ही में चर्चा में आया है। जॉब्स द्वारा लिखे गए इस पत्र की नीलामी में 500,312 डॉलर यानी करीब 4.32 करोड़ रुपये की बोली लगी। स्टीव जॉब्स ने यह पत्र अपने बचपन के मित्र टिम ब्राउन को लिखा था। जिसमें जॉब्स ने भारत में कुंभ मेले में जाने की इच्छा व्यक्त की थी।
स्टीव जॉब्स के जन्मदिन से कुछ पहले लिखे गए इस पत्र में जॉब्स ने अपने मित्र से कुंभ मेले में जाने की इच्छा व्यक्त की थी। “मैं अप्रैल में शुरू होने वाले कुंभ मेले के लिए भारत जाना चाहता हूं। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, “मैं मार्च में किसी समय जा रहा हूँ, अभी निश्चित नहीं हूँ।”
अपनी भारत यात्रा के दौरान स्टीव जॉब्स उत्तराखंड में नीम करोली बाबा के आश्रम गये। नीम करोली बाबा की मृत्यु के बाद जॉब्स भारत आये। इस यात्रा के दौरान वे कैंची धाम में ठहरे थे। इन सात महीनों के दौरान जॉब्स ने स्वयं को भारतीय संस्कृति और आध्यात्म में डुबो लिया।
इस वर्ष महाकुंभ मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा है। यह पूर्ण कुंभ मेला प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है। स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स ने भी इस वर्ष कुंभ मेले में भाग लिया। लॉरेन पॉवेल का नाम कमला उनके आध्यात्मिक गुरु कैलाशानंद गिरि ने रखा था। भारत यात्रा के दौरान एलर्जी से पीड़ित होने के बावजूद लॉरेन ने गंगा स्नान अनुष्ठान में भाग लेने का निर्णय लिया। उनकी भारत यात्रा की मीडिया में खूब चर्चा हुई।
कुंभ मेला क्या है?
इस वर्ष महाकुंभ का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में किया जा रहा है। हर 12 साल में आयोजित होने वाले इस मेले को पूर्ण कुंभ भी कहा जाता है। यह विश्व में भक्तों का सबसे बड़ा समागम है। इसके लिए लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। इन भक्तों का मानना है कि इस पवित्र अवधि के दौरान नदियों में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और आध्यात्मिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
कुंभ मेले की शुरुआत की बात करें तो इसकी उत्पत्ति पौराणिक कथाओं, इतिहास और आस्था के मिश्रण में पाई जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और राक्षसों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला अमृत पृथ्वी पर चार स्थानों – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक-त्र्यंबकेश्वर पर छलक गया था, जहां अब यह त्योहार मनाया जाता है।
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