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    April 23, 2025

    जम्मू कश्मीर चुनाव में अलगाव-आजादी के नारे-पत्थरबाजी खत्म, 10 साल बाद किन मुद्दों पर बंपर वोटिंग?

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    जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बंपर वोटिंग के साथ बदलते पॉलिटिकल पैटर्न और इश्यूज को देखकर देश और दुनिया को अच्छा लग रहा है. घाटी में लंबे समय बाद चुनाव अलगाववाद, आजादी की नारेबाजी और पत्थरबाजी के साए से बचा रहा और बदले हुए चुनावी मुद्दे पर फोकस रहा.

    जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार को पहले चरण के मतदान ने पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. जम्मू-कश्मीर में सात जिलों की 24 विधानसभा सीटों के लिए शाम 6 बजे तक होने वाले मतदान में दोपहर 3 बजे तक ही 50.65 प्रतिशत से ज्यादा का आंकड़ा सामने आ गया. वहीं, बूथों पर कतार में बड़ी संख्या में युवा खड़े दिखे.

    जम्मू कश्मीर चुनाव के पहले चरण में बंपर वोटिंग के साथ नई शुरुआत
    दोपहर तीन बजे तक अनंतनाग में 46.67 फीसदी मतदान हुआ था. वहीं, डोडा में 61.90 प्रतिशत वोटिंग, किश्तवाड़ में 70.03 फीसदी मतदान, कुलगाम में 50.57 प्रतिशत वोटिंग, पुलवामा में 36.90 फीसदी मतदान, रामबन में 60.04 प्रतिशत वोटिंग और शोपियां में 46.84 फीसदी मतदान किया गया. जम्मू कश्मीर में इस तरह की बंपर वोटिंग के साथ ही देश और दुनिया बदलते पॉलिटिकल पैटर्न और इश्यूज से भी दो-चार हुआ.

    अनुच्छेद 370 और राज्य के दर्जे की बहाली मांग, काफी बदले चुनावी मुद्दे
    इससे पहले के चुनावों में कश्मीर घाटी में ‘आज़ादी’ और अधिक स्वायत्तता के बहाने अलगाव के नारे गूंजते रहे हैं, लेकिन इस बार 18 सितंबर से शुरू होकर 1 अक्टूबर तक होने वाले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों से पहले अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जे और राज्य के दर्जे की बहाली मांग बढ़ गई. वहीं, देश के बाकी इलाकों की तरह यहां भी रोजगार, विकास, शिक्षा और शांति जैसे चुनावी मुद्दे छाए रहे. पहले चरण की वोटिंग से यह फैक्ट और उभरकर सामने आया है.

    बीजेपी के गुप्त सहयोगी या बीजेपी/आरएसएस प्रायोजित बताकर हमला
    केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को संसद में बताया कि राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2023 में संसद के इस फैसले को बरकरार रखा था. इसके बाद जम्मू कश्मीर में जैसे-जैसे “आज़ादी” और अलगाववाद के नारे फीके पड़ते जा रहे हैं. मौजूदा चुनाव में जम्मू-कश्मीर की दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां, फारूक की नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी, अपने अभियान को मुख्य रूप से विरोधियों को बीजेपी के गुप्त सहयोगी या बीजेपी/आरएसएस द्वारा प्रायोजित बताकर उन पर ताना कसने पर केंद्रित कर रही हैं.

    गंदेरबल और बडगाम से चुनाव लड़ रहे एनसी नेता उमर अब्दुल्ला
    जम्मू कश्मीर में इस सियासी बदलाव के संकेत के तौर पर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के अध्यक्ष और पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने सोमवार को विशेष दर्जे की वापसी के लिए लड़ने और फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने की कसम खाई. फारूक अबदुल्ला गंदेरबल में बोल रहे थे. यह उन दो विधानसभा सीटों में से एक है जहां से उनके बेटे और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला चुनाव लड़ रहे हैं. उमर की दूसरी सीट बडगाम है.

    ‘प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी और आवामी इत्तेहाद पार्टी में सांठगांठ’
    गंदेरबल में फारूक ने बारामुला के सांसद शेख अब्दुल रशीद उर्फ ​​इंजीनियर रशीद के नेतृत्व वाली आवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) पर प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ तालमेल करने का आरोप लगाया. फारूक ने कहा, “रशिद उनके (बीजेपी के) उत्पाद हैं. मुझे बताएं कि उन्हें (रशिद) चुनाव से कुछ दिन पहले क्यों रिहा किया गया. लेकिन लोग ऐसी चालों से वाकिफ हैं.”

    इंजीनियर रशीद की रिहाई की टाइमिंग पर फारूक ने उठाया सवाल
    रशीद को हाल ही में दिल्ली की तिहाड़ जेल से अंतरिम जमानत पर चुनाव प्रचार के लिए रिहा किया गया था, जहाँ उन्हें आतंकवाद के लिए फंड रेजिंग के मामले में कैद रखा गया है. रशीद ने इस साल गर्मियों में हुए लोकसभा चुनावों में बारामुला सीट पर उमर अब्दुल्ला को हराया था. फारूक ने कहा, “रशीद को मुसलमानों को बांटने के लिए भेजा गया है.” उन्होंने रशीद की रिहाई की टाइमिंग पर बार-बार सवाल उठाया.

    निजाम-ए-मुस्तफा की लाने वाले बीजेपी से मिले, फारूक का नया आरोप
    एनसी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला के मुताबिक, जो लोग कभी “निजाम-ए-मुस्तफा (इस्लामी शासन)” लाने की बात करते थे, वे अब बीजेपी के साथ मिल गए हैं. फारूक ने चुनाव लड़ रहे अलगाववादी तत्वों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “एनसी ने अलगाववाद नहीं फैलाया. वे पाकिस्तान के बारे में बात कर रहे थे और उसके पक्ष में नारे लगा रहे थे. हालांकि, अब वे बीजेपी में शामिल हो गए हैं.”

    मुस्लिम बहुल घाटी में बीजेपी/आरएसएस से जुड़े होने से सियासी नुकसान
    मुस्लिम बहुल घाटी में बीजेपी/आरएसएस से जुड़े होने के आरोपों के कारण मतदाता ऐसी पार्टियों या उम्मीदवारों से दूर हो जाते हैं. अल्ताफ बुखारी की एपीएनआई पार्टी और सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस को बीजेपी से संबंधों के दावों के कारण लोकप्रियता में कमी का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस से अलग हुए नेता गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी घाटी में और जम्मू संभाग की चेनाब घाटी में मुश्किल से दिखाई देती है. क्योंकि वहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या दूसरों से अधिक है.

    महबूबा की पीडीपी और फारूक की एनसी भी बीजेपी की पुरानी साथी
    महबूबा मुफ्ती की पीडीपी भी बीजेपी से नजदीकी का बोझ ढो रही है क्योंकि दोनों जम्मू-कश्मीर में इस तरह के आखिरी चुनाव यानी साल 2014 के विधानसभा चुनावों के बाद एक साथ सरकार में आए थे. इस बार, महबूबा बीजेपी पर अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य का दर्जा समाप्त करने की आलोचना करके इस धारणा को दूर करने की पूरी कोशिश कर रही हैं.

    फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी दो दशक पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में बेटे उमर अब्दुल्ला के मंत्री बनाने पर बीजेपी का साथ दिया था. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि समय के साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बीजेपी से नजदीकी की धारणा को खत्म कर दिया है.

    हिंदू बहुल जम्मू तक सीमित इमेज से उबरने की कोशिश में जुटी बीजेपी
    इन सबके बीच, बीजेपी अपनी ओर से हिंदू बहुल जम्मू क्षेत्र तक सीमित अपनी इमेज से उबरने का प्रयास कर रही है. आने वाले हफ्तों में पीएम नरेंद्र मोदी श्रीनगर में एक रैली को संबोधित कर सकते हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले से ही वहां मौजूद हैं. शाह जम्मू में लगातार रैलियां संबोधित कर रहे हैं और पार्टी की बैठकें कर रहे हैं.

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