इलेक्ट्रिक शॉक लगने से खोया एक हाथ, इस लड़की के जज्बे को सलाम; ICSE में हासिल किए 92 परसेंट।
1 min read
|








Success Story: आपने बहुत सारे युवाओं की सफलता की कहानियां पढ़ी और सुनी होंगी, जो विपरित परिस्थितियों में अपने लक्ष्य पर अडिग रहते हैं और आखिरकार सफलता हासिल कर ही लेते हैं. आज पढ़िए अनामता अहमद की कहानी…
मुंबई की रहने वाली अनामता अहमद को लगभग दो साल पहले 11 केवी केबल को छूने के बाद बिजली का झटका लगा और वह बुरी तरह जल गई. अलीगढ़ में अपने चचेरे भाइयों के साथ खेलते समय उनके साथ यह हादसा हुआ और तब वह 13 साल की थी.
इसके बाद उसका दाहिना हाथ काटना पड़ा और बायां हाथ केवल 20 फीसदी ही काम करने लायक बचा था. वह लंबे तक बिस्तर पर रहीं और बहुत बड़े ट्रॉमा से गुज़रीं. इतनी तकलीफ से गुजरने के बाद भी इस लड़की ने हार नहीं मानी और न अपने जज्बे को कम होने दिया. पढ़िए उनकी सफलता की कहानी…
10वीं में किया स्कोर किया 92 परसेंट
आखिरकार, वह ठीक हो गई और धीरे-धीरे अपनी बिखरी हुई लाइफ को जानी शुरू कर दिया. वहीं, बीते सोमवार को जारी हुए ICSE बोर्ड के नतीजे ने सभी को हैरान कर दिया, उनके परिवार वालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, उसने अपनी कक्षा 10 की परीक्षा में 92 परसेंट मार्क्स हासिल करके सभी को चौंका दिया. वह 98 फीसदी अंकों के साथ अपने स्कूल में हिंदी में शीर्ष स्कोरर भी थीं.
पॉजिटिविटी ने बढ़ाया आगे
जैसे ही सीआईएससीई के नतीजों की खबर आई मुंबई के अंधेरी में स्थित सिटी इंटरनेशनल स्कूल जश्न में डूब गया, जहां अनमता पढ़ती है. वह हमेशा से ही एक मेधावी छात्रा रही है, लेकिन जिस आघात से वह गुजरी, उससे कोई भी डिप्रेशन में जा सकता था. इतने शारीरिक दर्द के बावजूद यह उसकी पॉजिटिविटी ही थी जिसने उसे आगे बढ़ाया.
अनामता ने टीओआई को बताया, “डॉक्टरों ने मेरे माता-पिता को सुझाव दिया था कि मुझे पढ़ाई से एक या दो साल के लिए छुट्टी ले लेनी चाहिए, लेकिन मैं ऐसा करने को तैयार नहीं थी, क्योंकि मैं घर और स्कूल में नहीं बैठना चाहती थी.”
धीरे-धीरे खुद को किया तैयार
परीक्षा की तैयारी की चुनौती के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, “हॉस्पिटल से वापस आने के बाद पहली बात जो मेरे दिमाग में आई वह थी अपने बाएं हाथ को पूरी तरह कार्यात्मक बनाना. मुझे डॉक्टरों द्वारा कुछ एक्सरसाइज की सिफारिश की गई थी. हालांकि, बड़ी चुनौती मेरे बाएं हाथ से लिखने की थी, क्योंकि मुझे इसकी आदत नहीं थी और इसमें मुझे कुछ महीने लग गए.
वह आगे कहती है, “मैं बाएं हाथ को मैनेज करने में सक्षम थी, लेकिन मेरे टीचर्स ने जोर दिया कि परीक्षा के दौरान मुझे एक राइटर रखना चाहिए और स्पीड से समझौता नहीं करना चाहिए और मुझे एक राइटर उपलब्ध कराया गया.”
खुद से नहीं रखी कोई सहानुभूति
उन्होंने आगे कहा, “मुझे इस सदमे से बाहर आना पड़ा, क्योंकि मैं अकेली बच्ची हूं और मैंने अस्पताल में ही मन बना लिया था कि मैं इस ट्रेजेडी को खुद पर हावी नहीं होने दूंगी. मैंने जलने की चोटों के और भी भयानक मामले देखे और मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं कि मैं जीवित हूं, जिसने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. घर आने के बाद मैंने अपने दरवाजे पर एक नोट चिपका दिया: ‘सावधान -कोई सहानुभूति नहीं’.”
उनके पिता अकील अहमद एक विज्ञापन फिल्म निर्माता हैं. वह कहते हैं, “अनमता मेरी जिंदगी है और अपने इकलौते बच्चे को अस्पताल के बिस्तर पर दर्द से कराहते हुए देख रहा था, जहां डॉक्टरों ने उसके ठीक होने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन वह एक प्रतिभाशाली लड़की है, जिसने दिखाया है कि उसकी नसें फौलादी हैं.”
About The Author
Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space
Recent Comments