RBI: अनुमान से तेज होगी भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार, ज्यादातर देशों में आर्थिक विकास धीमी पड़ने की आशंका।
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घरेलू रेटिंग एजेंसी इक्रा ने 2023-24 की अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 8.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने ताजा रिपोर्ट में कहा कि पहली तिमाही में विकास दर 8.3 फीसदी रह सकती है।
दुनिया के ज्यादातर देशों में आर्थिक विकास की रफ्तार भले ही धीमी पड़ने की आशंका जताई जा रही है, लेकिन भारत के लिए इस मोर्चे पर अच्छी खबर है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून में देश की आर्थिक वृद्धि दर 8.5 फीसदी तक रह सकती है, जो आरबीआई के 8 फीसदी के अनुमान से ज्यादा है।
घरेलू रेटिंग एजेंसी इक्रा ने 2023-24 की अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 8.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने ताजा रिपोर्ट में कहा कि पहली तिमाही में विकास दर 8.3 फीसदी रह सकती है। क्रिसिल ने 8.2 फीसदी का अनुमान जताया है।
पिछली तीन तिमाहियों से बेहतर रहेगी गति
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था के बढ़ने की रफ्तार पिछली तीन तिमाहियों के मुकाबले तेज रहेगी। 2022-23 की दूसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 6.2 फीसदी, तीसरी तिमाही में 4.5 फीसदी और चौथी तिमाही में 6.1 फीसदी रही थी। हालांकि, 2022-23 की पहली तिमाही में विकास दर 13.1 फीसदी रही थी। एसबीआई और रेटिंग एजेंसी इक्रा दोनों ही संस्थाओं के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चुनावी साल के दौरान केंद्र व राज्य सरकारों के पूंजीगत खर्च में तेजी आई है। इससे न सिर्फ मांग को मजबूती मिली है बल्कि विकास की रफ्तार तेज होने की उम्मीद है।
एसबीआई के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा, सरकार अप्रैल-जून में 2.78 लाख करोड़ का पूंजीगत खर्च कर चुकी है। यह एक साल पहले की समान अवधि से 59 फीसदी ज्यादा है। मध्य प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे चुनावी राज्यों में पहली तिमाही के दौरान पूंजीगत खर्च में 41 फीसदी तक की भारी वृद्धि दर्ज की गई है। इक्रा ने कहा, पिछले वर्षों के कम आधार प्रभाव के अलावा सेवा क्षेत्र के शानदार प्रदर्शन और कंपनियों के मुनाफा मार्जिन में सुधार से भी जीडीपी की रफ्तार बढ़ने की उम्मीद है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की अर्थशास्त्री कनिका पसरीचा ने कहा कि पहली तिमाही में वृद्धि दर 8 फीसदी के आसपास रह सकती है। इसमें मजबूत घरेलू मांग और सरकार के पूंजीगत खर्च की बड़ी भूमिका होगी।
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