राष्ट्रपति भवन: 70 करोड़ ईंटों से बना, ट्रेन से लाए गए पत्थर… जयपुर के राजा की जमीन पर कैसे बना महल?
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राष्ट्रपति भवन अचानक से चर्चा में है. इसके भव्य ‘दरबार हॉल’ का नाम बदलकर ‘गणतंत्र मंडप’ कर दिया गया है. ‘अशोक हॉल’ को आगे ‘अशोक मंडप’ के नाम से जाना जाएगा. राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली स्थित रायसीना हिल पर बना है. भारत का राष्ट्रपति भवन दो लाख वर्ग फुट में फैली चार मंजिला इमारत है जिसमें लगभग 340 कमरे हैं. इतने चैंबर, कॉरिडोर, कोर्ट, गैलरी, सैलून, सीढ़ियां हैं कि पैदल पूरा कवर करने में कम से कम तीन घंटे लग जाएं. राष्ट्रपति भवन को बनाने में कुछ 70 करोड़ ईंटों इस्तेमाल हुआ था. इतना ही नहीं, इस आलीशान महल के निर्माण में 30 लाख घन फीट पत्थर भी लगा. राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट के अनुसार, एक समय इस ऐतिहासिक इमारत को बनाने में 23 हजार से ज्यादा मजदूर साथ काम कर रहे थे. तस्वीरों में कहानी राष्ट्रपति भवन के निर्माण की.
दिल्ली दरबार से निकला एक महल का विचार
12 दिसंबर को 1911 का दिल्ली दरबार किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया. दरबार की सबसे महत्त्वपूर्ण घोषणा जिसे लगभग एक लाख लोगों ने सुना, ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली करना थी. उस दौर का कलकत्ता आज के मुंबई जैसे वाणिज्य केंद्र के रूप में जाना जाता था. जबकि दूसरी ओर, दिल्ली शक्ति और शान का प्रतीक थी. इस घोषणा के बाद, दिल्ली में एक शाही आवास की खोज बेहद जरूरी हो गई थी.
एडविन लुट्यन्स ने रायसीना हिल ही क्यों चुना?
भारत की नई राजधानी की योजना बनाने के लिए ब्रिटिश वास्तुकार, सर एडविन लुट्यन्स को चुना गया. वह दिल्ली नगर योजना समिति का हिस्सा थे, जिसे जगह और लेआउट के बारे में फैसला करना था. स्वाभाविक रूप से, उत्तर का किंग्जवे कैंप पहली पसंद थी. लेकिन लुट्यन्स और उनके साथियों – जो सैनिटेशन के एक्सपर्ट थे – को लगा कि उत्तर के इलाके में बाढ़ का खतरा है क्योंकि वह यमुना नदी के करीब है. इस वजह से लुट्यन्स ने दक्षिणी भाग में मौजूद रायसीना पहाड़ी को चुना. यह एक खुली और ऊंची जगह थी जहां बेहतर जल निकासी हो सकती थी. लुट्यन्स को वायसराय हाउस के लिए रायसीना हिल ही सही जगह लगी. इस क्षेत्र की अधिकतर भूमि जयपुर के महाराजा की थी.
ट्रेन से लाया गया कंस्ट्रक्शन का सामान
साइट की चट्टानी पहाड़ियों को विस्फोट से तोड़कर वायसराय के आवास और अन्य इमारतों के लिए भूमि समतल की गई. शिलाओं ने मजबूत नींव के रूप में अतिरिक्त फायदा पहुंचाया. कंस्ट्रक्शन मैटेरियल को लाने-ले जाने के लिए साइट के चारों तरफ खास तौर पर एक रेलवे लाइन बिछाई गई. चूंकि यह जगह नदी से दूर थी, इसलिए पानी की सभी जरूरतों के लिए जमीन के भीतर से पंपिंग का इंतजाम किया गया.
वायसराय हाउस के निर्माण में सत्रह साल से अधिक समय लगा. तत्कालीन गवर्नर जनरल और वायसराय – लॉर्ड हार्डिंग – जिनके शासन काल में काम शुरू हुआ था, वे चाहते थे कि इमारत चार साल में पूरी हो जाए. लेकिन 1928 के शुरू में भी इमारत को अंतिम रूप दे पाना असंभव था. तब तक प्रमुख बाहरी गुंबद बनना शुरू भी नहीं हुआ था.
यह देरी मुख्य रूप से प्रथम विश्व युद्ध के चलते हुई थी. अंतिम शिलान्यास भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया और वह 6 अप्रैल, 1929 को नवनिर्मित वायसराय हाउस के प्रथम आवासी बने. 23,000 मजदूरों की मेहनत से बने वायसराय हाउस के निर्माण की अनुमानित लागत 1.4 करोड़ रुपए आई.
लुट्यन्स का विजन
सर एडविन लुट्यन्स एक ऐसा भवन बनाना चाहते थे जो आने वाली शताब्दियों तक खड़ा रहे. अधिकांश अन्य महलों और हवेलियों के उलट, राष्ट्रपति भवन में ऐसी जगहें नहीं हैं जो बाद की जरूरतों के हिसाब से बनाई गई हों. लुट्यन्स इस भवन के वास्तुशिल्प के बारे में बहुत संजीदा थे और प्राचीन यूरोपीय शैली को पसंद करते थे. लुटियन को ऐसी इमारत नहीं चाहिए थी जिसमें आगे बहुत सारी जगह हो और गहराई थोड़ी हो. उन्होंने एच-आकार की संरचना का विकल्प चुना. भव्यता उनका लक्ष्य थी.
गुलाबी और क्रीम पत्थरों का शानदार इस्तेमाल
लुट्यन्स को दिल्ली की आबोहवा में गुलाबी और क्रीम बलुआ पत्थर ही सही लगा. अकबर की फतेहपुर सीकरी खदानों से निकले गुलाबी बलुआ पत्थर अपनी आभा बदलते रहते हैं, जबकि क्रीम धौलपुर पत्थर एक कंट्रास्ट दिखाते हैं. गुलाबी पत्थर ने ऊंचे चबूतरे निखार दिए, धौलपुर पत्थर से बनी दीवारों और खंभों की रंगत ही अलग है, गुलाबी छज्जों के नीचे मुगल शैली में सजावट क्या खूब है. क्रीम पत्थर की परछाई और गुलाबी छतरियों ने छत को उभारा, जिसके ऊपर एक काले रंग का गुंबद है जिस पर एक पेटिनेटेड तांबे का खोल चढ़ा है.
राष्ट्रपति भवन का फोरकोर्ट
राष्ट्रपति भवन के फोरकोर्ट को पहले वायसराय के दरबार के रूप में जाना जाता था. इसके केंद्र में, बीस आलीशान स्तंभों वाला एक बरामदा है, जिसमें बारह सामने और आठ पीछे हैं. उन तक पहुंचने के लिए इकतीस भव्य सीढ़ियां हैं, जिनमें से सबसे निचली सीढ़ी पचास मीटर चौड़ी है. प्रांगण कर्तव्य पथ (पहले राजपथ) की मुख्य धुरी का एक विस्तार है. रेत के एक विशाल और सपाट लाल बिस्तर के रूप में रास्ता बरामदे तक जाता है. फोरकोर्ट एक विस्तृत केंद्रीय छत में बंटा हुआ है, जिसके दोनों ओर पानी के चैनल और फव्वारे हैं. दोनों तरफ पेड़ों की कतारें हैं. इसके उत्तर और दक्षिण किनारों के केंद्र में, चौड़ी सीढ़ियां दोनों ओर पिछले रास्तों तक उतरती हैं. ये राष्ट्रपति भवन रोज पहुंचने का रास्ते हैं.
राष्ट्रपति भवन के फोरकोर्ट में खड़ा जयपुर स्तंभ, दिल्ली को नई राजधानी बनाने की याद में जयपुर के महाराजा, सवाई माधो सिंह ने उपहार में दिया था. यह 145 फीट (44.2 मीटर) ऊंचा है, जिसके ऊपर एक कांस्य कमल है, जिसमें से एक छह सिरों वाला कांच का सितारा निकलता है. जयपुर स्तंभ के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि पत्थर के शाफ्ट के अंदर एक स्टील ट्यूब चलती है जो कमल और सितारे को बांधती है. स्तंभ के आधार पर लुटियंस के कहे निम्नलिखित शब्द अंकित हैं:
गणतंत्र मंडप (पहले दरबार हॉल की भव्यता)
केंद्र सरकार ने गुरुवार (25 जुलाई) को दरबार हॉल का नाम बदले जाने की घोषणा की. अब इसे ‘गणतंत्र मंडप’ के नाम से जाना जाएगा. दरबार हॉल, राष्ट्रपति भवन की भव्यता का प्रतीक है. यहां आने वाले 31 चौड़ी सीढ़ियां चढ़ते हैं और ऊंचे-ऊंचे खंभों को पार करके पीतल के रंग से सजे विशाल सागौन के दरवाजे से प्रवेश करते हैं. आखिर यहां ‘दरबार’ जो लगते थे. ब्रिटिश काल के दौरान यहां अलंकरण समारोह आयोजित किए जाते थे जिनमें महाराजा और नवाब भी शिरकत करते थे. हॉल की भव्य पृष्ठभूमि बनी हुई है, लेकिन राष्ट्रपति के लिए केवल एक कुर्सी ही जगह घेरती है. हॉल का केंद्र बिंदु गौतम बुद्ध की मूर्ति है, जो भारत के स्वर्ण युग, गुप्त काल से शांति और आत्म-विजय का प्रतीक है.
राष्ट्रपति भवन में झलकता है भारत
राष्ट्रपति भवन के डिजाइन में भारतीय वास्तुशिल्प की अनेक खासियतें भी हैं. उदाहरण के रूप में, गुंबद सांची के स्तूप से प्रेरित था; छज्जे, छतरी और जाली तथा हाथी, कोबरा, मंदिर के घण्टे आदि जैसे नमूनों पर भारतीय छाप है. इस परियोजना में लुट्यन्स के सहयोगी हरबर्ट बेकर थे जिन्होंने नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक बनवाया. लुट्यन्स और बेकर ने दिल्ली के बहुत सारे डिजाइन बनाए जिनमें से अधिकांश को राष्ट्रपति भवन संग्रहालय में रखे हैं.
राष्ट्रपति भवन की भव्यता, पूर्व राष्ट्रपति की जुबानी
राष्ट्रपति भवन की आधिकारिक वेबसाइट पर उसके बनने की पूरी कहानी मौजूद है. इसके एक हिस्से में लिखा है कि, भारत के पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने सही कहा है, ‘इस पहाड़ी पर प्रासाद दृश्यावली का मुकुट लगती है. मीलों दूर से दिखने वाला यह प्रासाद क्षितिज पर एक ऐसे स्मारक की भांति स्थित है जो बिलकुल अलग प्रतीत होता है. यह इमारतों में एक कंचनजंघा है जिसे दिल्ली की गर्मी की धूल भरी धुंधलाहट तथा इसकी सर्दियों का कोहरा ढक देता है, अनावृत्त कर देता है और पुनः ढक देता है. एक आकर्षक ढांचा जो निकट भी और दूर भी लगता है, यह एकदम नजदीक प्रतीत होता है परंतु आवरण के पीछे छिप जाता है.’
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