रामभद्राचार्य को पसंद नहीं आई मोहन भागवत की ‘हिंदुओं के नेता’ वाली बात, जताया ऐतराज।
1 min read
|








मोहन भागवत ने पिछले दिनों मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर ‘‘हिंदुओं के नेता’’ बन सकते हैं.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद विवादों के माध्यम से कुछ लोगों के हिंदुओं के नेता बनने संबंधी बयान पर स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने कड़ा ऐतराज जताया है. उन्होंने कहा कि मैं मोहन भागवत के बयान से बिल्कुल सहमत नहीं हूं. मोहन भागवत अनुशासक रहे हैं, लेकिन उनका विचार इस मामले में उनके साथ नहीं मिलता. उन्होंने ये भी कहा कि हम भागवत के अनुशासक हैं वो हमारे अनुशासक नहीं हैं. इसी तरह ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वानंद सरस्वती ने भी आरएसएस प्रमुख के बयान से असहमति जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि मोहन भागवत राजनीति के हिसाब से अपनी सुविधा को देखकर चलते हैं.
संभल में मंदिर होने के प्रमाण मिले
संभल विवाद सामने पर स्वामी रामभद्राचार्य ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि संभल में जो कुछ भी हो रहा है, वह बुरा हो रहा है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में एक सकारात्मक पहलू यह है कि वहां मंदिर होने के प्रमाण मिले हैं. उन्होंने आगे कहा कि हम इसे लेकर रहेंगे, चाहे वह वोट से हो, कोर्ट से हो, या फिर जनता के सहयोग से हो. मंदिर के मुद्दे पर उनका संघर्ष जारी रहेगा और वह इसके लिए सभी संभव रास्तों का उपयोग करेंगे.
दरअसल मोहन भागवत ने पिछले दिनों मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को ऐसा लग रहा है कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर ‘‘हिंदुओं के नेता’’ बन सकते हैं. उन्होंने पुणे में सहजीवन व्याख्यानमाला में ‘भारत-विश्वगुरु’ विषय पर गुरुवार को व्याख्यान देते हुए ये भी कहा कि अगर सभी खुद को भारतीय मानते हैं तो ‘‘वर्चस्व की भाषा’’ का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है. आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक? यहां सभी समान हैं. इस देश की परंपरा है कि सभी अपनी-अपनी पूजा पद्धति का पालन कर सकते हैं. आवश्यकता केवल सद्भावना से रहने और नियमों एवं कानूनों का पालन करने की है.’’
महत्वपूर्ण है धर्म, अच्छे से दी जानी चाहिए शिक्षा : मोहन भागवत
इसके बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को अमरावती में महानुभाव आश्रम के शताब्दी समारोह में कहा कि धर्म महत्वपूर्ण है और इसकी शिक्षा ठीक से दी जानी चाहिए. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए कहा, “धर्म के नाम पर होने वाले सभी उत्पीड़न और अत्याचार गलतफहमी और धर्म की समझ की कमी के कारण होते हैं. धर्म महत्वपूर्ण है और इसकी शिक्षा ठीक से दी जानी चाहिए.”
मोहन भागवत ने आगे कहा, “धर्म को समझना पड़ता है और धर्म को समझना बहुत कठिन है. मनुष्य समझ नहीं पाता है, जो बहुत ज्ञानी होगा वही समझेगा. वो बातों को बहुत ध्यान से सुनता है और जो अज्ञानी होता है, वो बोलने वाले को ज्ञानी समझता है और इसलिए उसे सुनता है.”
उन्होंने कहा, “बहुत से लोग होते हैं, जिन्हें आधा-अधूरा ज्ञान होता है. ऐसे लोगों को लगता है कि मुझे सब मालूम है, जबकि वह उसका अहंकार होता है.
मोहन भागवत ने कार्यक्रम के दौरान कहा, “धर्म को पूरा समझना पड़ता है, जो पूरा नहीं समझा तो उसे धर्म के आधे ज्ञान के चलते उससे अधर्म होता है. दुनिया में धर्म के नाम पर जितना अत्याचार हुआ है, यह अधूरे ज्ञान के चलते हुआ है. धर्म को समझाने के लिए संप्रदाय की जरूरत होती है, बिना उसके पंथ भी नहीं चलता है और बाबा ने बताया है कि उसके लिए बुद्धि चाहिए.. जिस पंथ के पास बुद्धि है, उसे हम संप्रदाय बोलते हैं.”
About The Author
Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space
Recent Comments