नहीं रहे पोप फ्रांसिस, जानें गर्भपात और LGBTQ के अधिकार जैसे मुद्दों पर क्या थी उनकी राय।
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पोप फ्रांसिस ने गर्भपात के पक्ष में अपना रुख बरकरार रखा और मुसलमानों और हाशिए पर पड़े धार्मिक समुदायों तक अपनी पहुंच बनाई.
ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का 88 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्हें निमोनिया की शिकायत के बाद रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां वो 38 दिनों तक भर्ती रहे. अपनी मौत से पहले ईस्टर के मौके पर उन्होंने श्रद्धालुओं को अपने दर्शन भी दिए थे.
जबतक वो पोप रहे उन्होंने मौत की सजा और परमाणु हथियारों जैसे मुद्दों पर चर्च की एजुकेशन को नया रूप दिया. हालांकि गर्भपात जैसे विषय पर उनका रुढ़िवादी रुख दिखा लेकिन मुसलमानों और अन्य समुदायों के साथ संबंध बनाने के लिए बहुत काम किया. एबॉर्शन को लेकर उनका मानना था कि इस कल्चर को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.
दुनिया के प्रमुख मुद्दों पर क्या था पोप फ्रांसिस का रुख?
गर्भपात
पोप फ्रांसिस ने गर्भपात के खिलाफ चर्च के पारंपरिक रुख को बरकरार रखा, इसे थ्रोअवे कल्चर का हिस्सा बताया और यहां तक कि इसकी तुलना एक हत्यारे को काम पर रखने से की. हालांकि, उन्होंने निंदा के बजाय करुणा पर जोर दिया और चर्च से गर्भपात कराने वाली महिलाओं के साथ आध्यात्मिक रूप से जुड़ने का आग्रह किया. उन्होंने नियमित पादरियों को पाप के लिए क्षमा देने का अधिकार दिया. जबकि पहले केवल बिशप ही ऐसा कर सकते थे. उनका कहना था कि पादरियों को उन महिलाओं के प्रति दयालु होना चाहिए जिन महिलाओं ने एबॉर्शन कराया है.
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