Ozone Layer: भरती ओजोन परत से उम्मीद, अगले चार दशक में होगी पूरी तरह ठीक |
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वर्ष 1987 में कनाडा के मॉन्ट्रियल में सीएफसी पर प्रतिबंध लगाने वाले प्रोटोकॉल पर 46 देशों ने हस्ताक्षर किए, जिसमें 1999 तक दुनिया भर में सीएफसी में 50 फीसदी कटौती की मांग की गई।
ओजोन परत अगले चार दशकों में पूरी तरह से ठीक होने के रास्ते पर है, यह सुखद समाचार पर्यावरण-प्रेमियों और हमारे ग्रह के शुभचिंतकों को रोमांचित कर रहा है। इसने नई संभावनाएं और नई आशाएं भी जगाईं हैं। इतनी विराट आकाशीय समस्या का समाधान हो सकता है, तो पृथ्वी की पारिस्थितिकी, पर्यावरणीय और जलवायु समस्याओं का समाधान क्यों नहीं हो सकता! 1980 का दशक पृथ्वी की जीवन रक्षक ओजोन परत में छेद होने और फलस्वरूप जीवन के लिए बड़े खतरों के समाचारों से सराबोर था। वह चिंता आज भी मानव मन में समाई हुई है। ओजोन का क्षय होते-होते उसकी जीवन रक्षक परत इतनी पतली पड़ गई कि लोग उसे छेद कहने लगे। लेकिन इस वर्ष जनवरी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) द्वारा जारी रिपोर्ट में जब यह बताया गया कि ओजोन परत का छेद धीरे-धीरे भर रहा है, तो पर्यावरण प्रेमियों और धरती पर जीवन के चिंतकों की बांछें खिल गईं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, 2018 स्तर की तुलना में ओजोन परत की मोटाई में महत्वपूर्ण वृद्धि पाई गई है और यह निष्कर्ष निकाला गया है कि आने वाले चार दशकों में यह परत पूरी तरह से अपनी सामान्य अवस्था में आ जाएगी। ओजोन परत के पुनः स्वस्थ होने के क्या कारण हैं? संयुक्त राष्ट्र समर्थित वैज्ञानिकों का समूह ओजोन परत के घाव भरने की प्रक्रिया के लिए वायुजनित रसायनों में गिरावट को श्रेय देता है। रिपोर्ट से पता चलता है कि लगभग 99 फीसदी ओजोन-क्षयकारी प्रतिबंधित पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया है। उसी के चलते पृथ्वी के वायुमंडल के स्ट्रेटोस्फियर प्रभाग में ओजोन की सांद्रता बढ़ रही है और उसकी परत मोटी हो रही है। दशकों से लगभग 15 से 30 किलोमीटर उच्च वायुमंडलीय ओजोन परत, जो मनुष्यों और अन्य सभी जीवों को सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) और हैलोन द्वारा क्षतिग्रस्त हो रही थी। क्षतिग्रस्त ओजोन परत त्वचा के कैंसर और मोतियाबिंद के बढ़ते प्रसार, कृषि उत्पादकता में कमी, और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के विघटन जैसे घातक परिवर्तनों से जुड़ी है।
यूएनईपी के अनुसार, ‘यदि वर्तमान नीतियां बनी रहती हैं, तो अंटार्कटिका पर 2066 के आसपास, आर्कटिक पर 2045 तक और शेष दुनिया के लिए 2040 तक ओजोन परत की 1980 की स्थिति (ओजोन छिद्र की उपस्थिति से पहले) तक पहुंचने की आशा है।’ ओजोन के क्षय और उसके समाधान के विश्वव्यापी प्रयासों की कहानी बहुत ही रोचक और जानने योग्य है। 1930 के दशक में आविष्कारक थॉमस मिजले ने दुनिया को ओजोन परत के सबसे बड़े दुश्मन क्लोरोफ्लोरोकार्बन से परिचित कराया। सस्ते, गैर-ज्वलनशील शीतलक का उपयोग रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनिंग, फास्ट फूड पैकेजिंग, प्रणोदक में किया जाता है। गौरतलब है कि औद्योगिक युग से पहले सीएफसी नामक प्रदूषक अस्तित्व में नहीं था। सीएफसी रसायन औद्योगिक युग की उपज है। सीएफसी समताप मंडल में बढ़ते और जमा होते हैं, हां वे सूर्य के पराबैंगनी प्रकाश से टूट जाते हैं, इस प्रक्रिया में क्लोरीन परमाणुओं को मुक्त करते हैं। क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के 10,000 से अधिक अणुओं को नष्ट कर सकता है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन के दो रसायनज्ञों-वैज्ञानिक मारियो मोलिना और शेरवुड रॉलैंड ने 1974 में नेचर पत्रिका में एक लेख प्रकाशित कराया, जिसमें मानव-जनित सीएफसी के कारण ओजोन क्षरण का विवरण दिया गया था। वर्ष 1985 में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के तीन वैज्ञानिकों ने 1980 के दशक में अंटार्कटिका में वसंत ऋतु के दौरान दिखाई देने वाले ओजोन छिद्र की घटना पर रिपोर्ट करते हुए नेचर पत्रिका में एक शोधपत्र प्रकाशित किया। इसी वर्ष से प्रारंभ हुआ ओजोन परत के क्षय को लेकर दुनिया भर में चिंतन, चिंताओं, मंथनों, गोष्ठियों, निराकरण नीतियों और रणनीतियों का एक अंतहीन सिलसिला। तब यह आशंका भी व्यक्त की गई कि 1990 और 2000 के दशक में ओजोन परत में छेद और बढ़ेगा और ऐसा हुआ भी।
वर्ष 1987 में कनाडा के मॉन्ट्रियल में सीएफसी पर प्रतिबंध लगाने वाले प्रोटोकॉल पर 46 देशों ने हस्ताक्षर किए, जिसमें 1999 तक दुनिया भर में सीएफसी में 50 फीसदी कटौती की मांग की गई। मॉन्ट्रियल के बाद इसमें कई संशोधन किए गए, जैसे लंदन (1990), कोपेनहेगन (1992), वियना (1995), मॉन्ट्रियल (1997), बीजिंग (1999)। फिर 2016 में किगाली में अनुसूचियों को चरणबद्ध तरीके से आगे लाने और नियंत्रित पदार्थों की सूची में नए पदार्थ जोड़ने के लिए समझौते हुए और हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्रों की सूची 200 तक बढ़ गई। ओजोन का क्षय करने वाले रसायनों के नियंत्रण से पृथ्वी की ओजोन परत की सुरक्षा से संबंधित सबसे पहला प्रयास (मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल) एक जनवरी, 1989 से प्रभाव में आया। लेकिन कुछ देशों ने इस पहल पर पानी फेर दिया, जबकि अधिकांश देशों ने सीएफसी उत्सर्जन की कटौती को प्रभावी बनाने पर जोर दिया। 1990 के दशक में चीन, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस जैसे कुछ देशों ने सीएफसी उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि की।
कुल मिलाकर लगता है कि अंततोगत्वा दुनिया ओजोन छतरी में पैबंद लगाकर पुनः अपने रक्षा कवच को सुदृढ़ कर ही लेगी। शोधकर्ताओं के अनुसार, अंटार्कटिका के ऊपर फैली ओजोन की महीन हो चुकी परत वर्ष 2021 में 2.33 करोड़ वर्ग किलोमीटर तक भरने लगी थी। ओजोन परत के छेद का शनैः शनैः भरना दुनिया भर के देशों के मिल-जुलकर किसी समस्या के समाधान का एक अद्भुत और अनुकरणीय उदाहरण है और यह सफलता जलवायु परिवर्तन की दिशा में कार्रवाई के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। हम आकाश को बचा सकते हैं, तो अपनी धरती को क्यों नहीं! डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी तालस इस अभूतपूर |
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