अरे बाप रे! प्रदूषण कम करने के लिए AAP ने बस 30% पैसा खर्च किया, बाकी रकम कहां गई?
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Delhi News: साल 2019 में शुरू किया गया एनसीएपी स्वच्छ वायु लक्ष्य निर्धारित करने का भारत का पहला राष्ट्रीय प्रयास है. इसका लक्ष्य 2017 को आधार वर्ष मानकर 2024 तक पीएम10 प्रदूषण में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना है.
देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है और यहां देश दुनिया लोग आकर रहते हैं और आते-जाते भी रहते हैं. यहां वायु प्रदूषण को लेकर भी कई बार चर्चाएं उठती हैं. लेकिन एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के लिए केंद्र सरकार से मिले पैसों में से सिर्फ 29.5% ही इस्तेमाल किया है. ये पैसा 2019-20 से 2023-24 के बीच का है. इस रिपोर्ट को पर्यावरण विज्ञान और केंद्र (CSE) नाम की संस्था ने जारी किया है.
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम
असल में रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि पिछले पांच सालों में NCAP को चलाने के तरीके पर सवाल उठाए गए हैं. रिपोर्ट में “राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम: सुधार के लिए एक कार्यसूची” नामक शीर्षक के जरिए बताया गया है कि दिल्ली सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है, लेकिन NCAP के तहत अधिकांश धन का उपयोग ईंधन जलाने से उत्पन्न होने वाले PM2.5 को कम करने के बजाय धूल नियंत्रण उपायों में किया गया है, जो कहीं अधिक हानिकारक हैं.
64% सड़क की धूल कम करने पर खर्च
एनसीएपी कार्यक्रम 10 जनवरी 2019 को शुरू किया गया था. इसका लक्ष्य था कि दिल्ली सहित 131 प्रदूषित शहरों में हवा में पाए जाने वाले PM10 और PM2.5 के स्तर को 2025-26 तक 40% कम किया जाए. रिपोर्ट के अनुसार, 131 शहरों के लिए कुल 10,566 करोड़ रुपये जारी किए गए थे. इस रकम का 64% सड़क की धूल कम करने पर खर्च किया गया, जबकि जलने से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए बहुत कम पैसा दिया गया.
प्रदूषण को कम करने पर बहुत कम खर्च
CSE (पर्यावरण विज्ञान और केंद्र) की प्रमुख सुनीता नारायण ने कहा कि एनसीएपी कार्यक्रम के लक्ष्य बहुत अच्छे हैं, लेकिन इस कार्यक्रम के तहत ज्यादातर ध्यान और पैसा धूल कम करने पर लगाया जा रहा है, न कि उन चीज़ों को कम करने पर जो हवा को जलाकर प्रदूषित करती हैं, जैसे कारखाने और गाड़ियाँ. उन्होंने बताया कि एनसीएपी और 15वें वित्त आयोग के तहत जो पैसा खर्च किया गया है उसका 64% सड़क की धूल कम करने पर खर्च किया गया है. वहीं हवा को जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर बहुत कम खर्च किया गया है – सिर्फ 0.6% फैक्ट्रियों के प्रदूषण को कम करने पर, 12.6% गाड़ियों के प्रदूषण को कम करने पर और 14.5% जलाने वाली चीज़ों से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर खर्च किया गया है
हवा साफ करने के लिए क्या उपाय
रिपोर्ट में बताया गया है कि एक तरफ शहरों को एनसीएपी के तहत पैसा लेने के लिए हवा में पाए जाने वाले PM10 के स्तर को कम दिखाना ज़रूरी है, वहीं दूसरी तरफ स्वच्छ वायु सर्वेक्षण नाम के कार्यक्रम में शहरों को रैंकिंग दी जाती है ये इस आधार पर कि उन्होंने हवा साफ करने के लिए क्या उपाय किए हैं, जैसे पराली जलाने पर रोक, कूड़ा प्रबंधन, सड़क की धूल कम करना, लोगों को जागरूक करना, और हां, PM10 के स्तर में सुधार भी.
एनसीएपी के मूल्यांकन में सबसे नीचे
रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली ने स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में उपायों को लागू करने के लिए नौवां रैंक हासिल किया, लेकिन PM10 के स्तर में सुधार न होने के कारण एनसीएपी के मूल्यांकन में सबसे नीचे रहा और उसे शून्य अंक मिले. 2022-23 के आंकलन के लिए श्रीनगर, गोरखपुर, दुर्गापुर, मोरादाबाद, फिरोजाबाद और बरेली जैसे 18 शहरों को सबसे अच्छे अंक मिले. वहीं दिल्ली, चंडीगढ़, झांसी, जम्मू, नोएडा और उदयपुर जैसे 53 शहर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों में शामिल रहे
सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधरी का कहना है कि हवा को साफ करने के लिए हमें अब तेजी से और बड़े पैमाने पर बदलाव करने की जरूरत है. ऐसा करने के लिए सभी क्षेत्रों में ऊर्जा के साधनों में बड़े बदलाव लाने होंगे. साथ ही गाड़ियों पर निर्भरता कम करने और लंबी दूरी के सामानों को प्रदूषित करने वाली सड़कों से हटाकर रेलवे और जलमार्गों पर लाने की ज़रूरत है. इसके अलावा कचरे के प्रबंधन में भी सुधार ज़रूरी है. ये सब तभी मुमकिन होगा जब हम इन लक्ष्यों को हासिल करने के तरीकों को मज़बूत बनाएंगे.
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