आजकल हर कोई बताना चाहता है कि कैसे उसका धर्म सर्वोच्च है… हाई कोर्ट को क्यों कहना पड़ा ऐसा?
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धर्म पर काफी कुछ कहा जाता है. संवेदनशील विषय से बचने की कोशिश होती है. हालांकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए बड़ी बात कही है. कोर्ट ने कहा कि आजकल हर कोई अपने धर्म या ईश्वर को सर्वोच्च बताने की कोशिश करता है.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने धर्म को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि हम यह देखने के लिए बाध्य हैं कि आजकल लोग अपने धर्मों के प्रति पहले की तुलना में अधिक संवेदनशील हो गए हैं. हर कोई यह बताना चाहता है कि कैसे उसका धर्म या ईश्वर सर्वोच्च है.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप में कथित रूप से धार्मिक भावना आहत करने को लेकर दो लोगों के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. हाई कोर्ट ने कहा कि आजकल लोग धर्म को लेकर संवेदनशील हो गए हैं.
उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने कहा कि चूंकि व्हाट्सऐप संदेश कूटबद्ध होते हैं और तीसरा व्यक्ति उसे हासिल नहीं कर सकता है तो ऐसे में यह देखा जाना चाहिए कि क्या वे भारतीय दंड संहिता के तहत धार्मिक भावना को आहत करने का प्रभाव डाल सकते हैं.
पीठ ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है, जहां सभी को दूसरों के धर्म और जाति का सम्मान करना चाहिए लेकिन साथ ही, लोगों को किसी भी प्रकार की जल्दबाजी में प्रतिक्रिया करने से बचना चाहिए.
न्यायमूर्ति विभा कांकणवाड़ी और न्यायमूर्ति वृषाली जोशी की खंडपीठ ने धार्मिक भावना आहत करने, शांति व्यवस्था को भंग करने की सोची समझी मंशा और धमकी देने को लेकर 2017 में एक सैन्य अधिकारी और एक डॉक्टर के खिलाफ दर्ज FIR खारिज कर दी. शिकायतकर्ता शाहबाज सिद्दीकी ने सैन्यकर्मी प्रमोद शेंद्रे और डॉक्टर सुभाष वाघे पर एक व्हाट्सऐप ग्रुप में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अपमानजनक संदेश पोस्ट करने का आरोप लगाया था. शिकायतकर्ता भी उस ग्रुप का हिस्सा था.
सिद्दीकी ने शिकायत की थी कि आरोपियों ने पैगंबर मोहम्मद के बारे में सवाल खड़े किए थे और कहा था कि जो ‘वंदे मातरम’ नहीं बोलते हैं, उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए.
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