बलात्कार पर नए कानून: बंगाल से पहले आंध्र और महाराष्ट्र भी ला चुके बिल, आज तक एक को भी नहीं मिली सजा.
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पश्चिम बंगाल विधानसभा ने बलात्कार के लिए मौत की सजा का प्रावधान करने वाले ‘अपराजिता’ बिल को पारित कर दिया है. इससे पहले, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की विधानसभाएं भी ऐसे ही बिल पास कर चुकी हैं.
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में युवा डॉक्टर के रेप और हत्या के खिलाफ धरना-प्रदर्शन जारी है. जनता के आक्रोश को देखते हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा ने सर्वसम्मति से बलात्कार के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान करने वाले विधेयक को पारित किया है. मंगलवार को पारित विधेयक में, बलात्कार के ऐसे मामलों में अनिवार्य मृत्युदंड का प्रावधान है, जहां पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से कोमा में चली जाती है. अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024 बलात्कार के सभी मामलों में अधिकतम सजा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान करता है.
मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा बिल
प्रस्तावित बदलावों को प्रभावी बनाने के लिए ‘अपराजिता’ विधेयक भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS), भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) और राज्य में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के प्रावधानों में संशोधन करता है.
‘अपराजिता’ विधेयक को अब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के सामने रखा जाएगा. वे अपनी स्वीकृति देने के बाद इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजेंगे. अंतिम निर्णय राष्ट्रपति लेंगी कि विधेयक को लागू होने दिया जाए या नहीं.
कई अन्य राज्य भी पारित कर चुके ऐसे बिल
पश्चिम बंगाल से पहले, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की विधानसभाओं से भी ऐसे ही विधेयक पारित हो चुके हैं. लेकिन किसी भी विधेयक को अभी तक राष्ट्रपति की अनिवार्य स्वीकृति नहीं मिली है.
इससे पहले, मध्य प्रदेश विधानसभा ने 2017 में और अरुणाचल प्रदेश असेंबली ने 2018 में ‘बारह वर्ष तक की आयु की महिला’ (भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376एए और 376डीए) के साथ बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया था.
आंध्र के दिशा विधेयक और महाराष्ट्र का शक्ति बिल
नवंबर , 2019 में हैदराबाद में एक वेटरनरी डॉक्टर की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई थी. गिरफ्तार किये गये चार लोगों को उसी साल 6 दिसंबर को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था. दिसंबर 2019 में, विधानसभा ने सर्वसम्मति से आंध्र प्रदेश दिशा अधिनियम – आपराधिक कानून (आंध्र प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2019 और आंध्र प्रदेश दिशा (महिलाओं और बच्चों के खिलाफ निर्दिष्ट अपराधों के लिए विशेष न्यायालय) विधेयक, 2019 पारित किया.
इस बिल के जरिए, आंध्र प्रदेश राज्य के लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) में संशोधन किया गया था. दिशा विधेयक में बलात्कार के अपराधों के लिए मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है, जिसमें 16 वर्ष से कम आयु के नाबालिगों के खिलाफ बलात्कार भी शामिल है.
2020 में, महाराष्ट्र विधानसभा ने शक्ति आपराधिक कानून (महाराष्ट्र संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया. शक्ति बिल ने भी बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड की शुरुआत की और जांच और मुकदमे को समाप्त करने के लिए कम समयसीमा का प्रावधान किया. शक्ति बिल के तहत भी IPC, CrPC और POCSO से जुड़े कानूनों में बदलाव किया गया.
राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलना क्यों अहम?
संविधान की सातवीं अनुसूची में ऐसे विषय शामिल हैं जिन पर केंद्र और राज्य, दोनों ही कानून पारित कर सकते हैं. आपराधिक कानून और आपराधिक प्रक्रिया इस समवर्ती सूची में एंट्री 1 और 2 के रूप में दर्ज हैं. तीनों विधेयक- अपराजिता, दिशा और शक्ति; आपराधिक कानूनों में इस तरह के संशोधन करते हैं कि वे संसद द्वारा पारित मूल कानून के साथ असंगत या ‘विपरीत’ हो जाते हैं.
संविधान का अनुच्छेद 254 कहता है कि समवर्ती सूची में शामिल विषयों से संबंधित केंद्रीय कानूनों (जैसे BNS, BNSS और POCSO) में राज्यों के संशोधन, जो मूल कानून के प्रतिकूल हैं, को लागू होने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की जरूरत होती है. बिना सहमति के, राज्यों द्वारा ‘प्रतिकूलता की सीमा तक’ पारित कानून अमान्य हो जाएंगे.
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