मधुरा कुलकर्णी के पास है अनोखी नजर, जो दुनियाॅ की नायाब खुबसूरती को अपने नजरीयेंसे कॅमेरा की मेंमरी में समेट लेती है
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दुनियाॅ बेहद खुबसूरत है, यहाॅ के फुल पौधें, नदी, सागर, पहाड, पंछी, रास्ते, गांव, शहर और इनके बिच कुछ होता है जो हमें नजर नही आता, वो नजर आता है एैसे इन्सान को जो दुनियाॅं को अलग नजरीयें से देखता है! और अपनी आँखो में सुनहरी तस्वीर समेट लेता है! वो इन्सान हर चिज में कुछ नया औय नायब ढुंडने की कोशीष करता है, वही इन्सान हमारी नजरोंमें महान बन जाता है! क्योकी वो नजारा जो उन आँखो ने देखा है हम कई बार सामने होते हुए देख नही पाते!
मधुरा कुलकर्णी एैसीही एक कलाकार है जो दुनियाॅ को कल्पनाओंसे परे देखती है! उनके लिए फोटोग्राफी प्रकाश का एक एैसा खेल है, जहाॅ किरदार मंच पर अपनी भुमिका निभाने उस प्रकाशकी लेहर में आते है! और निखरकर लोगोंके सामने पेश होते है! उनके हिसाब से हजारो शब्दोंसे बेहतर होती है एक तस्वीर, जो सारी बातें बिना कहे बता सकती है! और ऐसीही अनोखी तस्वीरे लोगोंके सामने लाने के लिए उन्होनें फोटोग्राफी को अपना हमसफर बना लिया! वे मानती है भगवान ने खुबसूरत दुनिया बनाई है और मेरी आँखो ने कॅमेरा के जरीयाॅ उस दुनियाॅ को मेहसूस किया है!
बचपन में वे जब भी कीसी मेले मे जाती तो गुडीयों से ज्यादा उन्हे प्लॅस्टीक का कॅमेरा बेहद पसंद आता, वे उसी के साथ खेला करती, बचपन का वो खेल कब उनकी हाॅबी बन गई हाॅबी कब उनका बिझनेस उन्हेभी समझ नही आया, क्योंकी वो कॅमेरा की नजर से दुनियाॅ को देखना सिख चुकी थी, उन्हे कॅमेरा से निकाली तस्वीरें लोगोंको दिखाने में बडा आता था, उनकी पसंद ही उनका प्रोफेशन बन गया तो काम अनायास ही परफेक्ट होने लगा! और वो खुषी से इस काम को करने लगी!
उन्होंने पुणे के अभिनव कला विदयालय से फोटोग्राफी विषय में कर्मशीयल आर्टस् की डिग्री हासील की, उस वक्त कॅमेरा उनके पास नही था! तो वे अपने दोस्तों के कॅमेरा से बोहतसारे फोटोज निकाला करते! और फोटोग्राफी के लिए उन्हे कईबार सफर करना होता था! नये नये लोगोंसे मिलना, बातें करना, हरवक्त फोटोग्राफी के बारे मे सोचना, उन्हे बेहद पसंद था! उनका मन हमेशा फोटोग्राफी में लगा रेहता! कॅमेरा की नजर से खुबसूरती को दिखाने की खुषी बोहत खास होती है! पीताजीनें उनके जुनन को देखते हुए उन्हे पेहला कॅमेरा गिफट किया! और वहीसें उनकी जिंदगी का सफर शुरू हुआ! खुषी खुषी उन्होंने उनके सफर की शुरूआत तो की लेकीन कई मुश्किलें, मुसीबते आती रही, उन सबसे मुकाबला करते हुए वे आगे बढती रही! जिवन की समस्याओंसे उन्होंने बोहतकुछ सिख लिया था!
जब हम अपनी कला को अपना प्रोफेशन बना लेते है तो हम बिना रूके निरंतर विकास की राह पर चल सकते है! उन्हे सबसे ज्यादा खुषी तब मिली जब पुणे के बालगंधर्व कलादालन में उनके फोटोज की प्रदर्शनी लगी थी! उस समय इत्तफाक से उनके नासिक के बडे ससुर विनायक वाघमारेजी के शिल्पकला की प्रदर्शनी भी उसी कलादालन में लगी थी! जिसे देख वे गौरवान्वीत मेहसुस कर रही थी! उसके बाद उनके फोटोग्राफ कई अलग अलग प्रदर्शनीयोंमे दिखाए गये! गणेशउत्सव में जो उन्होंने फोटोग्राफी की थी, उस फोटोग्राफी का जिक्र सकाळ जैसे बडे न्युजपेपर में भी किया गया! रोटरी क्लब में भी उनकी प्रदर्शनी लगाई गई!
फॅशन स्टायलीस्ट के सहयोग से उन्होने अपने फ्रोफेशनल करीयर की शुरूआत की थी! कुद्रत की नायाब खुबसूरती हो या अलग अलग व्यक्तीयोंके फोटोज् वे हमेशा अपने बेहतर कला का प्रदर्शन करती रही! उसी अनुभव के आधारपर उन्होंने स्वतंत्र फोटोग्राफी का बिझनेस शुरू किया! 5 वर्षोतक कडी मेहनत करती रही और उन्ही पैसोसें फोटोग्राफी की सारी सामग्री खरीद ली! जिससे उनके बिझनेस में उन्हें फायदा होने लगा!
उन्होेंने अपने काम को ही सर्वोपरी रखा, कमीटमेंट, क्रिएटीव्हीटी, जिद और मिठे बोल ही उनकी सफलता की कुंजी है! जो उन्हें जिवन में आगे बढने और सफलता की राह पर चलने के लिए बेहद कारगार साबीत हुए है!
उन्हे लगता है हमारा जिवन एक खुबसूरत चित्र है जिसे अपने कल्पनाओंसे परे होकर अपनी नजरोंसे समेटना चाहीए, यदी जिवन की कोई तस्वीर हम चाहकर भी सही नही कर सकते तो उसके लिए दुसरा कोई तरीका जरूर अपनाना चाहीए शायद दुसरे तरीके से हम अपने जिवन की खुबसूरत तस्वीर खिच सकते! हम रिसिल.इन की और से सौ.मधुराजीको खुबसूरत जिवन के लिए शुभकामना देते है!
लेखकः सचिन आर. जाधव
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