“हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत ‘कन्यादान’ की आवश्यकता नहीं है, यदि…”; इलाहबाद हाई कोर्ट का फैसला
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कोर्ट ने यह फैसला लखनऊ के आशुतोष यादव नाम के शख्स की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाया है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ‘कन्यादान’ की आवश्यकता नहीं है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह समारोह में ‘सप्तपदी’ एक महत्वपूर्ण संस्कार है. कोर्ट ने यह फैसला लखनऊ के आशुतोष यादव नाम के शख्स की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया.
खबरों के मुताबिक, कुछ दिन पहले आशुतोष यादव के ससुराल वालों ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. इसके बाद इस मामले में सेशन कोर्ट में सुनवाई हुई. हालांकि, सेशन कोर्ट ने यादव के खिलाफ फैसला सुनाया था. इसके बाद यादव ने सेशन कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की. महत्वपूर्ण बात यह है कि सत्र अदालत में बोलते हुए, यादव ने दावा किया था कि उनकी शादी में कन्यादान आवश्यक था और यह समारोह नहीं किया गया था।
इस बीच, यादव की याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच के सामने सुनवाई हुई. इस समय कोर्ट ने कहा कि कानून के मुताबिक शादी के दौरान ‘सप्तपदी’ एक जरूरी रस्म है और ‘कन्यादान’ कोई जरूरी रस्म नहीं है. यादव की पुनर्विचार याचिका भी रद्द कर दी गई.
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