अरबों एटम बम मानों एक साथ फटेंगे! सूर्य पर होने वाला है सबसे बड़ा धमाका, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी।
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पहले यह माना जाता था कि सूर्य पर हजारों साल में एक बार ऐसा भयानक विस्फोट होता है जो अरबों एटम बम जितना शक्तिशाली होता है. नई रिसर्च में दावा किया गया है कि ऐसा शायद हर 100 साल में एक बार होता है.
सूर्य से आने वाले सौर तूफानों और सौर ज्वालाओं से तो हम अच्छी तरह वाकिफ हैं. लेकिन सूर्य की सतह पर होने वाली एक घटना ऐसी है जिसके बारे में माना जाता था कि यह हजारों साल में एक बार होती है. इन्हें ‘सुपर फ्लेयर्स’ कहते हैं. ये सूर्य की सतह पर आने वाले ‘सोलर फ्लेयर्स’ (सौर ज्वालाओं) से हजारों गुना अधिक शक्तिशाली होते हैं. एक सुपर फ्लेयर में अरबों एटम बम के बराबर ताकत होती है. एक नई स्टडी में दावा किया गया है कि सुपरफ्लेयर्स हजारों साल में नहीं, लगभग 100 साल में ही एक बार आते हैं. इस रिसर्च के मुताबिक, सूर्य पर ऐसा सुपरफ्लेयर आने ही वाला है और उससे पृथ्वी की संचार व्यवस्था के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है.
सूर्य जैसे हजारों तारों की स्टडी का नतीजा
शुक्रवार को ‘साइंस’ जर्नल में छपी स्टडी के रिसर्चर्स सूर्य जैसे 56 हजार तारों पर एनालिसिस करके इस नतीजे पर पहुंचे हैं. सोलर फ्लेयर्स में ही हाई-एनर्जी वाला रेडिएशन होता है, उससे धरती के कम्युनिकेशन सिस्टम और पावर इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान होता है. ऐसे में उससे हजारों गुना अधिक शक्तिशाली सुपर फ्लेयर के आने पर होने वाले नुकसान का बस अनुमान ही लगाया जा सकता है.
सौर ज्वालाएं क्या होती हैं?
सूर्य असल में बेहद गर्म प्लाज्मा की एक विशाल गेंद है जिसके आवेशित आयन इसकी सतह पर घूमते हैं और शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनाते हैं. क्यूंकी चुंबकीय-क्षेत्र रेखाएं एक-दूसरे को पार नहीं कर सकतीं, इसलिए कभी-कभी ये क्षेत्र अचानक से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं और रेडिएशन के विस्फोट शुरू कर देते हैं जिन्हें Solar Flares या सौर ज्वालाएं कहा जाता है. इनके साथ कभी-कभी भयानक कोरोनल मास इजेक्शन (CME) भी होते हैं.
धरती की तरफ रुख हुआ तो…
अगर इन धमाकों का रुख पृथ्वी की तरफ हो तो, फ्लेयर्स से निकलने वाला एक्स-रे और अल्ट्रावायलेट रेडिएशन ऊपरी वायुमंडल के परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों को उड़ा देता है, जिससे एक आयनित स्क्रीन बनती है. इस स्क्रीन के चलते हाई फ्रीक्वेंसी वाली रेडियो तरंगें टकराकर वापस नहीं आ पातीं, जिससे रेडियो ब्लैकआउट हो जाता है. ये ब्लैकआउट ज्वाला के समय सूर्य द्वारा प्रकाशित क्षेत्रों में होते हैं और एक या दो घंटे तक चलते हैं.
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