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    April 18, 2025

    अंतरिक्ष डॉकिंग के लिए इसरो तैयार, उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण, अब परीक्षण का इंतजार

    1 min read
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    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को जोड़ने की तकनीक में महारत हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

    श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश): भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को जोड़ने की तकनीक में महारत हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। इस ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट’ (SPADEX) के लिए सोमवार को दो उपग्रहों को अंतरिक्ष प्रक्षेपण बेस से उड़ान भरी गई। ये उपग्रह अपनी-अपनी कक्षाओं में स्थापित हो गए हैं और अगले कुछ दिनों में इनके बीच की दूरी कम करने और इन्हें एक-दूसरे से जोड़ने के लिए परीक्षण किया जाएगा। यह तकनीक भविष्य के मानव अंतरिक्ष अभियानों के साथ-साथ उपग्रहों के रखरखाव और मरम्मत के लिए भी महत्वपूर्ण है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो भारत यह तकनीक विकसित करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा।

    ‘पीएसएलवी सी-60’ लांचर की मदद से इन दोनों उपग्रहों के साथ कुछ अन्य उपग्रहों को सोमवार रात 10 बजे लॉन्च किया गया। 15 मिनट के बाद, यह पृथ्वी की सतह से 475 किलोमीटर की ऊंचाई पर अपनी नियोजित कक्षा में स्थापित हो गया। इसकी जानकारी देते हुए अभियान निदेशक एम. जयकुमार ने कहा कि ‘स्पेडेक्स’ में इस्तेमाल किए गए दोनों उपग्रह एक-दूसरे के पीछे अपनी निर्धारित कक्षाओं में पहुंच गए हैं। आने वाले दिनों में इनके बीच का फासला कम होगा. इनके बीच की दूरी 20 किलोमीटर होने के बाद इन्हें जोड़ने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. यह प्रक्रिया एक सप्ताह में पूरी होने की उम्मीद है और आमतौर पर 7 जनवरी की तारीख मानी जा रही है।

    प्रयोग क्या है?
    इसरो की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, यह प्रयोग अंतरिक्ष यान ए (एसडीएक्स01) या ‘चेज़र’ और अंतरिक्ष यान बी (एसडीएक्स02) या ‘टारगेट’ पर किया जाएगा। ये दोनों उपग्रह जमीन से 470 किमी की ऊंचाई पर यात्रा करते समय एक-दूसरे से जुड़े रहेंगे। यह तकनीक भविष्य के चंद्रयान मिशन, वहां से नमूनों की स्वदेश वापसी, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण, मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक मानी जाती है।

    दुनिया का चौथा देश
    यदि यह प्रयोग सफल रहा तो भारत यह तकनीक विकसित करने वाला दुनिया का चौथा देश होगा। अभी तक केवल अमेरिका, रूसी और चीनी अंतरिक्ष एजेंसियों के पास ही यह तकनीक है। यह तकनीक इसरो को भविष्य में बेहद महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अभियानों में मदद करेगी।

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