क्या सुधर रही है गांवों की अर्थव्यवस्था, MGNREGS कि रिपोर्ट में हुए कई बड़े खुलासे।
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MGNREGS भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जो ग्रामीण गरीब परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन का गारंटीड रोज़गार देती है.
पिछले कुछ महीनों से जहां ग्रामीण भारत में मनरेगा (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme MGNREGS) के तहत काम मांगने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही थी, वहीं मार्च महीने में इसमें तेज गिरावट देखने को मिली. सरकार के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक मार्च में 186.4 मिलियन परिवारों ने मनरेगा के तहत काम मांगा, जो कि फरवरी के मुकाबले करीब 14.5 फीसदी कम है. जनवरी में ये संख्या 224.9 मिलियन थी, फरवरी में 217.9 मिलियन और दिसंबर में 215.7 मिलियन.
क्या अब ग्रामीण भारत में हालात सुधर रहे हैं?
द मिंट से बात करते हुए एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि नवंबर से फरवरी के बीच मनरेगा की मांग में जो उछाल देखा गया, वो ज्यादातर मौसमी कारणों से था. अब खेती और गैर-कृषि क्षेत्रों में काम बढ़ा है, इसलिए लोग मनरेगा की ओर कम रुख कर रहे हैं. यह बदलाव दिखाता है कि गांवों में अब रोज़गार के अन्य विकल्प उभर रहे हैं.
दिलचस्प बात ये है कि देश की अर्थव्यवस्था भी इस बदलाव को दिखा रही है. अक्टूबर-दिसंबर 2024 (Q3 FY25) में GDP ग्रोथ 6.2 फीसदी रही, जो पिछली तिमाही के 5.6 फीसदी से बेहतर थी. इस ग्रोथ में गांवों की खपत और सरकारी खर्च का बड़ा योगदान रहा. कृषि क्षेत्र ने भी 5.6 फीसदी की मजबूती दिखाई, पिछले साल की तुलना में यह कहीं बेहतर है.
सरकार का बजट वही, लेकिन खर्च ज़्यादा!
FY26 के बजट में मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो पिछले साल जितना ही है. लेकिन FY24 में शुरू में सिर्फ 60,000 करोड़ का अनुमान था, जबकि वास्तविक खर्च 1.06 लाख करोड़ तक पहुंच गया. यह दिखाता है कि पिछले साल ग्रामीण भारत में भारी बेरोज़गारी थी, खासकर अनियमित बारिश की वजह से.
सरकार की योजना है कि इस साल अच्छे मानसून और बढ़ते सरकारी खर्च के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाए. भारत मौसम विज्ञान विभाग ने इस बार सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान जताया है, जो खेती और रोजगार दोनों के लिए राहत ला सकती है.
क्या है मनरेगा?
मनरेगा भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जो ग्रामीण गरीब परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन का गारंटीड रोज़गार देती है. इसमें मिलने वाला काम ज़्यादातर गैर-कुशल मज़दूरी होती है, जैसे कि सड़कों का निर्माण, जल संरक्षण, वृक्षारोपण वगैरह.
इस योजना की मांग तब बढ़ती है जब गांवों में खेती, मज़दूरी या असंगठित क्षेत्रों में रोजगार की किल्लत होती है. इसलिए मनरेगा को अक्सर “ग्रामीण संकट का थर्मामीटर” कहा जाता है. जब हालात खराब होते हैं, तो लोग बड़ी संख्या में इस योजना की ओर आते हैं. लेकिन अब, इस गिरती मांग का मतलब है कि शायद गांवों में चीज़ें धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही हैं.
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