इंडिया की प्रतिष्ठा:तीसरी सदी ईसा पूर्व सिकंदर तक पहुंची; संविधान में मिला ‘इंडिया दैट इज भारत’ नाम।
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19वीं शताब्दी तक अधिकांश राजकीय अभिलेखों में ‘हिन्दुस्तान’ नाम का उपयोग किया जाता था। इतिहासकार इयान जे. बैरो अपने लेख, ‘फ्रॉम हिन्दुस्तान टु इंडिया : नेम्स चेंजिंग इन चेंजिंग नेम्स’ में लिखते हैं कि ‘18वीं शताब्दी के मध्यकाल से इसके अंत तक हिन्दुस्तान शब्द का उपयोग अक्सर मुगल सम्राट के क्षेत्रों के संदर्भ में होता था।’ हालांकि, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से, ब्रिटिश मानचित्रों में ‘भारत’ शब्द का उपयोग तेजी से शुरू हो गया।
19वीं सदी में अंग्रेजों ने इंडिया शब्द का उपयोग बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया। अंग्रेजी दस्तावेजों और किताबों में इंडिया शब्द का उपयोग होने लगा। देशी रियासतों के राजा भी अपने राज्यों में अंग्रेजी भाषा में इंडिया शब्द का उपयोग करने लगे थे।
व्यापार के नाम पर किलेबंदी
16वीं और 17वीं सदी में यूरोपीय जातियों पुर्तगाली, फ्रेंच, डच तथा अंग्रेजों ने धीरे-धीरे भारत के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी फैक्ट्रियां स्थापित की और ये फैक्ट्रियां उनकी सत्ता की केन्द्र बन गईं। इन्होंने इनकी किलेबंदी की और सशस्त्र सेना तैनात की।
स्थानीय राजाओं को प्रलोभन देकर भारत की भूमि पर राज्य स्थापित करना शुरू किया और इस दौड़ में अंग्रेज तेजी से आगे बढ़े। इस कारण 1857 ई. तक भारत के एक बहुत बड़े क्षेत्र पर अंग्रेजों यानी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया। 1857 के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने उन इलाकों पर अधिकार कर लिया जो ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिपत्य में थे।
इस दौर में इंडिया नाम का प्रसार बढ़ता गया। जब देश आजाद हुआ तो इसके नाम पर भी चर्चा हुई। हमारे संविधान के अनुच्छेद 1(1) में देश का नाम ‘इंडिया दैट इज भारत’ रखा गया। इस तरह देश के मूल नाम ‘भारत’ का उल्लेख भी है और इंडिया का भी। नतीजतन इस तरह ये दोनों नाम साथ-साथ चलने लगे। ‘भारत का संविधान’ ‘इंडिया का संविधान’ बन गया और हर जगह ‘इंडिया’ शब्द का प्रयोग और लोकप्रिय किया गया।
दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में एक बनारस, हर दौर में संस्कृति का केंंद्र।
हिंदूकुश… हिन्द… हिन्दुस्तान नाम से हमारी कीर्ति 2500 साल पहले ही दुनियाभर में फैलने लगी थी
हिन्दुस्तान एक और नाम है, जिससे दुनिया हमें जानती है। इस भूमि को मिला यह पहला ऐसा नाम था, जिसके पीछे राजनीतिक भावना थी। हिन्द और हिन्दुस्तान शब्द का इतिहास भी लगभग 2500 साल पुराना है। 262 ईस्वी में सिंध को ईरान के सासानी सम्राट शापुर प्रथम के नक्श-ए-रुस्तम शिलालेख में हिन्दुस्तान का उल्लेख है। यह भी माना जाता है कि हिंदूकुश की पहाड़ियों के पीछे का क्षेत्र हिंदुस्तान कहा जाता था।
अरबों ने इस देश को अल-हिन्द कहा और बाद के तुर्की के आक्रांताओं, दिल्ली के सुल्तानों और बादशाहों ने अपने भारतीय प्रभुत्व वाले भू-भाग का हिन्दुस्तान के रूप में उल्लेख किया। मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भी हिन्दुस्तान शब्द का भारत के नाम के साथ अपने दस्तावेजों में उल्लेख किया।आक्रमणों के बावजूद गहरी जड़ें
विदेशी आक्रांताओं ने देश के प्राचीन नालंदा जैसे सांस्कृतिक और शैक्षणिक केंद्रों को ध्वस्त कर दिया, लेकिन इसके बाद भी भारत की संस्कृति की जड़ें गहराई से अपना विकास करती रहीं। यह भूमि प्राकृतिक रूप से अलग-अलग तीर्थ स्थलों का नेटवर्क भी है।
8वीं शताब्दी में शंकराचार्य ने दक्षिण से उत्तर भारत आकर शैव मत के प्रचार-प्रसार में योगदान किया। उन्होंने चार शैव मठों – शृंगेरी शारदा, द्वारका, ज्योतिर्मय और गोवर्धन मठ की स्थापना की। इसी दौर में जबकि दक्षिण भारत में वैष्णव मत का प्रचार-प्रसार हुआ।
इन आक्रमणों और सांस्कृतिक मेलजाेल के बीच ही रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य, रामानंद, माधवाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, निम्बार्काचार्य के विचारों ने विविध संप्रदायों की नींव रखी। नामदेव, तुकाराम, नानकजी, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, कबीर, रैदास ने भारतीय संस्कृति की बुनियाद को मजबूत किया। ये हिन्दुस्तान में भक्ति आंदोलन और सांस्कृतिक जनजागरण का दौर था।
1318 में कवि अमीर खुसरो ने हिन्दवी भाषा का उल्लेख किया। इस काल में हिन्दुस्तान ने कागज बनाना सीखा। कश्मीर, सियालकोट, जाफराबाद, पटना, मुर्शिदाबाद, अहमदाबाद, औरंगाबाद, मैसूर कागज उत्पादन के महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए। इसी दौर में हिन्दुस्तान के कई शहरों में कारखाने खुले।
16वीं सदी में भारत आए यूरोपीय यात्री बर्नियर ने ‘ट्रेवल्स इन मुगल एंपायर’ किताब में इन कारखानों के बारे में लिखा है कि उस युग में कपड़ा (सूती, रेशम व ऊनी) उद्योग, कढ़ाई, जरी, रंगाई, चित्रकारी, लाख और लकड़ी उद्योग बड़े पैमाने पर हिन्दुस्तान में विकसित हो रहे थे।
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