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    April 21, 2025

    मालदीव में चीन समर्थक राष्ट्रपति मुइज्जू के चुनाव पर है भारत की सतर्क नजर, जल्द बढ़ाएगा दोस्ती का हाथ।

    1 min read
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    मुइज्जू खुले तौर पर चीन के समर्थक हैं , 2013 में जब अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति बने तब भी वह मंत्री रहे , मुइज्जू ने मंत्री रहते जिन परियोजनाओं पर काम किया है, वे चीन के दिए हुए पैसे से बनी हैं।
    भारत के लिए विदेशी मोर्चे पर एक और फ्रंट खुल गया है. वहां चीन के समर्थक और चीन द्वारा समर्थित मोहम्मद मुइज्जू ने जीत हासिल कर ली है , उनकी जीत के साथ ही निवर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद सालेह ने हार मान ली है , हालांकि मुइज्जू के शपथ लेने की तारीख 17 नवंबर है , इसलिए तब तक इब्राहिम सालेह ही कार्यकारी राष्ट्रपति बने रहेंगे , भारत के लिए चिंता की बात इसलिए है क्योंकि इब्राहिम सालेह के कार्यकाल के दौरान भारत के साथ मालदीव के रिश्ते मजबूत हुए थे , मुइज्जू को सीधे तौर पर चीन का समर्थक माना जाता है , हिंद महासागर के इस द्वीपीय देश पर चीन और भारत दोनों की नजर इसलिए है, क्योंकि यह रणनीतिक और सामरिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है।

    भारत के लिए चिंता का विषय
    मुइज्जू खुले तौर पर चीन के समर्थक हैं , उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है , वह 2012 में राजनीति में आए और मंत्री बने , 2013 में जब अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति बने तब भी वह मंत्री रहे , उनके बारे में कहा जाता है कि मुइज्जू ने मंत्री रहते जिन परियोजनाओं पर काम किया है , वे चीन के दिए हुए पैसे से बनी हैं. 2013 से 2018 तक उन्होंने कई पुल , मस्जिद और सड़कें बनवाई , 2021 के चुनाव में वह राजधानी माले के मेयर बने और जब पिछले राष्ट्रपति यामीन को कोर्ट से सजा मिली, तब मुइज्जू को विपक्षी गठबंधन ने राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया , मुइज्जू को चीन का समर्थक माना जाता है, वह कई बार खुल तौर पर चीन के समर्थन और भारत के विरोध में बयान दे चुके हैं , सालेह को भारत समर्थक माना जाता है और उन्होंने ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति पर काम करना शुरू किया था , इसी वजह से भारत के लिए फिलहाल चिंता की वजहें बढ़ गयी हैं।

    निवर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद सालेह ने हमेशा ही भारत के साथ मजबूत रिश्तों की पैरवी की है , 61 वर्षीय इब्राहिम साल 2018 से सत्ता में थे और मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े रहे हैं , अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने ‘इंडिया फ़र्स्ट’ यानी भारत को प्राथमिकता देने की नीति लागू की , भारत के मालदीव के साथ पहले से ही सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं , भारत का काफी समय से मालदीव पर प्रभाव भी रहा है , वहांअपनी मौजूदगी बनाये रखकर भारत हिंद महासागर के बड़े हिस्से पर निगरानी रखता रहा है , इसी रास्ते से चूंकि खाड़ी के तेल का भी आना-जाना होता है, इसलिए यह आर्थिक तौर पर भी काफी महत्वपूर्ण है , चीन अपनी विस्तारवादी और आक्रामक नीति की वजह से मालदीव को अपने प्रभाव में लाना चाहता है, भारत की मंशा चीन को जहां का तहां रखने की है।

    बेहद अहम है मालदीव

    मालदीव हिंद महासागर में स्थित एक प्रायद्वीपीय देश है , इसके लोकेशन की वजह से ही यह इतना अहम है , यह दुनिया के सबसे व्यस्त पूर्व-पश्चिम शिपिंग लेन पर स्थित है और इसी कारण इस देश का व्यापारिक महत्व है, साथ ही रणनीतिक लिहाज से भी मालदीव भारत के लिए अहम है, क्योंकि यहां से हिंद महासागर के बड़े इलाके पर नजर रखी जा सकती है , वैसे, भारत का मालदीव से पुराना संबंध भी है, यहां तक कि 1988 में भारत ने यहां ऑपरेशन कैक्टस भी चलाया था , तब तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम ने अपने खिलाफ भड़के विद्रोह से निबटने के लिए भारत से मदद मांगी थी , भारत ने तब करीब 400 सैनिक मालदीव की राजधानी भेजे थे, जिन्होंने विद्रोह पर काबू पाकर राष्ट्रपति गयूम को भी सुरक्षित किया , तब अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन थे , भारत के लिए चिंता की बात यह है कि अपनी आक्रामक और विस्तारवादी नीति के तहत इस इलाके में चीन दखल बढ़ा रहा है , इसके पहले से ही भारत यहां कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है, इसीलिए सत्ता-परिवर्तन भारत के लिए ठीक नहीं है , अगर सालेह ही राष्ट्रपति रहते तो भारत के लिए हर लिहाज से अच्छा होता , चीन ने अपने बीआरआई प्रोजेक्ट के लिए मालदीव को जोड़ा है और काफी कर्ज दिया है , यहां तक कि वहां की राजधानी माले में काफी बड़े स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर चीन ने ही दिया है , चीन का करीबन एक बिलियन डॉलर कर्ज मालदीव पर है , चीन की डेट डिप्लोमेसी कोई छिपी बात नहीं है , वह कर्ज के जाल में फंसाकर श्रीलंका सहित पाकिस्तान को भी बर्बाद कर चुका है , अब उसकी नजर मालदीव पर है , भारत की कई परियोजनाएं वहां है , इसके अलावा भारत ने कुछ विमान और अपने सैनिक भी मालदीव में रखे हैं, इसके खिलाफ ही मुइज्जू ने आउट इंडिया का नारा दिया था।

    वैसे, मुइज्जू तुरंत भारत से सारे संबंध खत्म नहीं कर लेंगे और भारत के लिए यही मौका है , जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ अभिषेक श्रीवास्तव कहते भी हैं , ‘ऐसा नहीं है कि चीन तुरंत ही मालदीव पर प्रभावी हो जाएगा , भारत से तुरंत ही मुइज्जू दामन नहीं खींच लेंगे , यही भारत के लिए आपदा में अवसर के जैसा है , मालदीव चाहेगा कि वह चीन और भारत दोनों से संतुलन बनाकर चले और यहीं भारत की डिप्लोमेटिक चालाकी काम आएगी।

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