IIT ने ब्रांच बदलने का ऑप्शन क्लोज करने का लिया फैसला, लेकिन अब क्यों नहीं मिलेगा स्टूडेंट्स को ये मौका? जानें।
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देश के कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने ब्रांच चेंज करने की सुविधा को बंद करने का फैसला किया है. अब स्टूडेंट्स पहले साल के बाद अपनी पसंदीदा ब्रांच में दाखिला नहीं लें सकेंगे, लेकिन क्यों? यहां जानिए…
इंजीनियरिंग करने की इच्छा रखने वाले स्टूडेंट्स चाहते हैं कि बस किसी तरह से आईआईटी में सीट पक्की हो जाए, चाहे ब्रांच जो भी मिले बाद में तो बदल ही ली जाएगी, लेकिन अब छात्रों के पास ये विकल्प नहीं रहेगा. अगर आप भी आईआईटी से पढ़ने का सपना देख रहे हैं तो यह आपके लिए काम की खबर हो सकती है.
दरअसल, देश के कुछ आईआईटी संस्थानों ने फर्स्ट ईयर के बाद स्टूडेंट्स को दिए जाने वाले ब्रांच चेंज करने के ऑप्शन को क्लोज करने का फैसला लिया है. यह आपने भी खबरों में सुना और पढ़ा होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों आईआईटी ने यह फैसला लिया और क्यों अब स्टूडेंट्स को यह सुविधा नहीं मिलेगी…
ब्रांच चेंज करने का विकल्प
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा अंडर ग्रेजुएट कोर्सेस में एडमिसन लेने वाले फर्स्ट ईयर स्टूडेंट्स को पहले साल के बाद अपनी कोर ब्रांच बदलने के लिए एक अपॉर्चुनिटी दी जाती है, लेकिन अब देश के 23 आईआईटी में से 9 संस्थानों ने इस सुविधा को बंद करने का फैसला लिया है.
ये IIT बंद करेंगे ब्रांच बदलने का ऑप्शन
आईआईटी जम्मू
आईआईटी हैदराबाद
आईआईटी बॉम्बे
आईआईटी मद्रास
आईआईटी खड़गपुर
आईआईटी धनबाद
आईआईटी धारवाड़
आईआईटी मंडी
आईआईटी भुवनेश्वर
आखिर क्यों लिया ये फैसला?
आईआईटी के दावे के अनुसार इस ऑप्शन को क्लोज करने के पीछे की वजह पहले से ही तनावग्रस्त छात्रों पर पड़ रहे दबाव को कम करना है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि करीब 50 प्रतिशत न्यू एडमिशन ब्रांच चेंज करने का ऑप्शन चुनना चाहते हैं, लेकिन महज 10 प्रतिशत ही इसका इस्तेमाल कर पाते हैं. इस पीछे की वजह यह है कि फर्स्ट ईयर में स्टूडेंट का सीजीपीए 7.50 (जनरल कैटेगरी) से ज्यादा होना चाहिए, तभी वह ब्रांच चेंज करने के लिए अप्लाई कर सकता है.
किताबों के साथ गुजारते हैं पूरा साल
स्टूडेंट्स को अपने पहले एकेडमिक सेशन के फाइनल में 32 से ज्यादा क्रेडिट लाने होते हैं. इतना ही नहीं ब्रांच बदलने की मंजूरी से पहले साल के आखिर में सीजीपीए द्वारा तय योग्यता क्रम में सख्ती बरती जाती है. अफसोस की बात यह है कि इस क्राइटेरिया को पूरा करने के लिए कई स्टूडेंट्स अक्सर अपने फर्स्ट ईयर का ज्यादातर समय बुक्स के साथ कमरों और लाइब्रेरी में ही गुजार देते हैं.
लिमिटेड सीटें और हाई सीजीपीए की जरूरत स्टूडेंट्स के लिए कॉम्पीटिशन टफ कर देती है, नतीजतन फ्रेशर्स किसी भी एक्टिविटी में शामिल होने, क्लब/ग्रुपों के मेंबर बनने, एक्स्ट्रा कैरिकुलम एक्टिविटीज और कॉलेज फेस्ट में पार्टिसिपेट करने और नए दोस्तों के साथ समय बिताने से बचते नजर आते हैं.
स्टूडेंट्स पर पड़ता है नकारात्मक प्रभाव
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे स्टूडेंट्स पर नेगेटिव इफेक्ट पड़ सकता है. खासतौर पर तब जब इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स अपने (मिनिमम) स्कूल एजुकेशन के आखिरी दो साल जेईई मेन्स और जेईई एडवांस क्लियर करने की फिक्र में गुजार देते हैं. वहीं, अगर इतनी कोशिशों और त्याग के बाद भी उन्हें उनकी पसंदीदा ब्रांच में एडमिशन नहीं मिल पाता, तो निराश रहने लगते हैं और अपनी डिग्री के बाकी बचे साल बहुत ही असंतुष्ट रहते हैं.
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